ओ मजदूर ! तू सबका कत्र्ता तू ही सभी सुविधाओं से दूर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 11 Dec, 2017 02:20 PM

worker

एक मजदूर सबसे ज्यादा शारीरिक श्रम करता है। उसी की कड़ी मेहनत की बदौलत बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी दिखाई देती हैं। चाहे वह ताजमहल हो या लाल किला हो उसी की मेहनत के बदौलत ही संभव हो पाया है। मजदूर विशाल पहाड़ को तोड़कर सड़क बनाता है। फैक्टरी में खून पसीना...

बठिंडा(विजय/ आजाद): एक मजदूर सबसे ज्यादा शारीरिक श्रम करता है। उसी की कड़ी मेहनत की बदौलत बड़ी-बड़ी इमारतें खड़ी दिखाई देती हैं। चाहे वह ताजमहल हो या लाल किला हो उसी की मेहनत के बदौलत ही संभव हो पाया है। मजदूर विशाल पहाड़ को तोड़कर सड़क बनाता है। फैक्टरी में खून पसीना बहाकर रोजमर्रा के यूज का सामान बनाता है।

यहां तक कि हम जो भोजन खाते हैं, वह भी उसी के बदौलत ही संभव हो पाता है। ऐसा लगता है कि यह विकास का मॉडल भी मजदूर के शोषण से ही संभव हो पाया है लेकिन आज एक मजदूर दो-वक्त की रोटी के लिए दर-दर भटकने पर मजबूर हो गया है। मजदूर की समस्या पर किसी का ध्यान नहींं जाता। एक मजदूर पढ़ा लिखा न होने के  कारण वह अपना अधिकार भी नहींं जानता, जिसकी वजह से तथाकथित सभ्य लोग मजदूर का आर्थिक और शारीरिक  शोषण करते हैं। शोषण करने वाला जानता है कि न तो वह किसी के सामने अपनी बात रख सकता है और न ही उसकी बात कोई सुनने वाला है। जब प्रताडऩा हद से गुजर जाती है तो कभी-कभार मजदूर फरियाद लेकर पुलिस प्रशासन के पास जाता है, लेकिन पुलिस प्रशासन उल्टा उसी को दोषी मान लेता है। न्यायालय जाने के लिए मजदूर के पास पैसा नहीं होता। इस तरह से उसका भरोसा ही इस व्यवस्था से उठ जाता है। वह अपनी मांगों को लेकर कभी सड़क पर प्रदर्शन करने नहीं जाता है क्योंकि वह जानता है कि अगर आज आंदोलन करने के लिए सड़क पर चले गए तो शाम को चूल्हा नहीं जलेगा और खुद तो भूखा सोएगा ही, साथ ही बच्चे भी भूखे सोने पर मजबूर होंगे। 

 

फायर ब्रिगेड चौक बना लेबर चौक
बठिंडा शहर में किसी को भी काम करवाने के लिए मजदूर की जरूरत होती है तो वह सीधे फायर ब्रिगेड चौक के पास चला आता है जितने मजदूर की आवश्यकता होती उसे आसानी से यहां पर मिल जाते हैं। यहां पर लोग मजदूर के लिए सुबह 7 बजे से ही चले आते हैं और लोगों के आने का सिलसिला 10 बजे तक चलता है। 10 बजे के  बाद कोई मजदूरों को काम करवाने के लिए नहीं ले जाता। मजदूर भी समझ जाता है कि अब कोई आने वाला नहीं है तो कम मजदूरी में भी काम करने को तैयार हो जाता है। जिन मजदूरों को काम नहीं मिलता तो वे निराश होकर घर लौट जाते हैं। फायर ब्रिगेड चौक का सुबह का नजारा देखने के बाद यही लगता है कि जैसे हम मजदूरोंं के बाजार में आ गए हैं। 

कई बार हो चुकी हैं चोरी की घटनाएं
फायर ब्रिगेड चौक और गोल डिग्गी के आसपास के दुकानदार मजदूरोंं की वजह से परेशान हैं। जब दुकानदार रात समय अपनी दुकान बंद कर चले जाते हैं तो दुकानों के आगे खाली जगह प्रवासी मजदूरोंं का रात को सोने का ठिकाना बन गया है। यहां की नजदीकी दुकानों में कई बार चोरी की घटनाएं भी हो चुकी हैं। तभी से यहां पर दुकानदारों ने एक चौकीदार रात को निगरानी के लिए रखा था लेकिन रात में मजदूर नशे का सेवन कर चौकीदार से झगड़ा करते हैं जिसके कारण कोई चौकीदार यहां पर रात में ड्यूटी करने को तैयार नहींं।


असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों का सबसे ’यादा शोषण 
बङ्क्षठडा शहर बहुत ही तेजी से विकास कर रहा है, यहां पर छोटे बड़े घर और भवन का निर्माण तेजी से हो रहा है। लघु उद्योग भी पैर पसारने लगे हैं, जिसके कारण यहां पर मजदूरों की मांग भी बढ़ी है। इसी के  साथ ही मजदूरों के शोषण में भी वृद्धि हुई है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के अधिकार का कोई ख्याल नहीं रखता है। जानकारी के अभाव में गंभीर से गंभीर मामले को आसानी से दबा देते हैं। ठेकेदार के अलावा व्यक्तिगत रूप से लोग काम करवाने के लिए मजदूर को लेकर जाते हैं। 1-2 सप्ताह काम करवाने के बाद तय मजदूरी से कम पैसा देते हैं। इन मजदूरों की दुर्घटना होने के बाद कोई जिम्मेदार नहींं होता है। दुर्घटना की भरपाई भी कोई नहीं करता और न ही किसी कि जवाबदेही तय की जाती है। कोई बीमा न होने पर दुर्घटना और मौत होने पर आर्थिक सहायता से भी महरूम रह जाते हैं।

खेती में तकनीक के बाद बढ़ी है खेतीहर मजदूरों की संख्या
खेतीबाड़ी अब घाटे का सौदा हो गया है और ’यादातर खेती के काम में तकनीक का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढऩे से खेतीहर मजदूर अब बङ्क्षठडा शहर की तरफ रुख करने लगे हैं। शहर के आसपास के गांव से ’यादातर मजदूर काम करने के लिए हर रोज सुबह ही निकल आते हैं और काम कर फिर सायं घर को लौटते हैं। गांव से आने वाले इन मजदूरोंं में ’यादातर अकुशल होते हैं, जिनके पास कोई टैक्निकल नॉलेज नहीं होता है, जिस कारण वे कम पैसे पर काम करने को मजबूर हो जाते हैं खेतीहर मजदूर। 

रोजगार मंत्रालय द्वारा घोषित मजदूरी 2 वर्ष बाद भी नहीं मिली 
भारत सरकार के श्रम और रोजगार मंत्रालय के मंत्री बंगारू दत्तात्रेय ने 2 साल पहले ही आधिकारिक रूप से ऐलान किया था कि जो मजदूर खेती के काम के अलावा कोई और काम करते हैं, उनकी न्यूनतम मजदूरी कम से कम &50 रुपया होनी चाहिए, लेकिन इतने वर्ष बीतने के बाद भी अभी तक इस कानून को किसी रा’य सरकार अथवा केंद्र सरकार ने लागू करवाने में कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। 

यू.पी., बिहार व राजस्थान के हैं अधिकतर मजदूर
यहां पर रात में करीब 300 प्रवासी मजदूर सोते हैं जो यू.पी., बिहार और राजस्थान से आकर यहां पर मजदूरी करते हैं। इन मजदूरों में ऐसे भी मजदूर हैं जिनके पास कोई पहचान पत्र भी नहीं है। कुछ ऐसे भी मजदूर हैं जो खतरनाक अपराध में दोषी भी हैं। पुलिस से बचने के लिए यहां आकर मजदूरी करते हैं। ये मजदूर रात को सोते वक्त यहीं पर खाना पीना खा कर गंदगी कर देते हैं, सुबह दुकानदारों को सफाई करनी पड़ती है । 

पंजाब के प्रत्येक मजदूर परिवार पर है 91 हजार 437 रुपए का कर्ज
जब एक किसान कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या करता है तो बठिंडा शहर में रोष मार्च किए जाते हैं। किसान मुख्यमंत्री के घर का घेराव करने को चले जाते हैं, मुआवजे की मांग को लेकर सड़क को जाम कर देते हैं, लेकिन उसी किसान के खेत में काम करने वाला एक खेतीहर मजदूर किसान आर्थिक तंगी की वजह से आत्महत्या करता है तो वह अपने इस दुख को किसी से व्यक्त भी नहीं कर पाता। मजदूरोंं की समस्याओं को लेकर एक सर्वे रिपोर्ट पंजाब खेतीहर मजदूर यूनियन के तत्वावधान में तैयार की गई। रिपोर्ट अनुसार बठिंडा सहित राज्य के 6 जिलों में 1364 खेतीहर मजदूर परिवारों पर 12.47 करोड़ रुपए का कर्ज है, यानी हर परिवार 91 हजार 4&7 रुपए के कर्ज से दबा हुआ है, जिसमें ’यादा कर्ज फाइनांस कंपनियों और सूदखोरों का है।

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