Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Sep, 2017 11:03 AM
जैसे ही दशहरा व दीवाली सहित अन्य त्यौहारों का सीजन शुरू होता है तो उसके साथ ही विभिन्न प्रकार की मिठाइयों की बिक्री भी बढ़ जाती है।
गुरदासपुर(विनोद): जैसे ही दशहरा व दीवाली सहित अन्य त्यौहारों का सीजन शुरू होता है तो उसके साथ ही विभिन्न प्रकार की मिठाइयों की बिक्री भी बढ़ जाती है।
मिठाई बेचने वाले हलवाई इस सीजन का सारा साल इंतजार करते रहते हैं। दीवाली के सीजन में जितनी भी मिठाई तैयार की जाती है वह अधिकतर मिलावटी दूध व खोये से तैयार की जाती है। स्वास्थ्य मंत्री व उच्च अधिकारी मिलावटी सामान बेचने वालों के खिलाफ उच्च स्तरीय मीटिंगें करके कई योजनाएं तो जरूर बनाते हैं परंतु इन योजनाओं को लागू करने हेतु जाने के लिए कोई उच्च अधिकारी तैयार नहीं होता।
जैसे ही दशहरा व दीवाली का सीजन शुरू होता है तो बाजार में भी ऐसी चीजें मिलनी शुरू हो जाती हैं जिनके नाम से ही पता चल जाता है कि ये नकली हैं। डालडा घी के मुकाबले में लाडला, वेरका के मुकाबले में वारका आदि के उत्पाद बाजार में मिलते हैं। कुछ साल पहले गुरदासपुर के बाहर जी.टी. रोड पर एक गांव में किराए की इमारत में चल रही नकली देसी घी बनाने की फैक्टरी को पुलिस ने स्वास्थ्य विभाग के सहयोग से पकड़ा था।
ऐसे ही नकली खोया व पनीर बनाने वाली फैक्टरी भी पकड़ी गई थी। कुछ वर्ष पहले सरना के पास नकली सॉस, चटनी व अन्य सामान बनाने वाली फैक्टरी भी पकड़ी गई। जब ऐसी नकली सामान बनाने वाली फैक्टरी पकड़ी जाती है तो पुलिस व स्वास्थ्य विभाग चैनलों व समाचार-पत्रों के माध्यम से झूठी वाह-वाही जरूर बटोरते हैं परंतु इन केसों में आरोपियों को सजा दिलवाने में पुलिस व स्वास्थ्य विभाग कितना सफल होता है, इस बात की जानकारी न तो पुलिस विभाग देता है और न ही स्वास्थ्य विभाग, क्योंकि आरोपी गवाहियों व टैस्ट-रिपोर्ट के आधार पर छूट जाते हैं।
साल 2011 में 30 सैम्पल फेल हुए थे
डा. सुधीर कुमार के अनुसार साल 2011 (5 अगस्त से 31 दिसम्बर तक) में जिला गुरदासपुर में 169 सैम्पल भरे गए थे जिनमें से 30 फेल पाए गए थे। इसी तरह साल 2012 में 296 सैम्पल भरे गए थे जिनमें से 32 फेल पाए गए। साल 2013 में 290 सैम्पल भरे गए जिनमें से 23 फेल हुए, साल 2014 में 279 सैम्पल भरे गए तथा 52 फेल हुए। साल 2015 में 318 सैम्पल भरे गए तथा 42 फेल हुए जबकि साल 2016 में 369 सैम्पल भरे गए तथा 43 फेल पाए गए। इस वर्ष अभी तक 191 सैम्पल भरे गए तथा 25 फेल पाए गए हैं। उन्होंने कहा कि मिलावट प्रतिशत में जिला गुरदासपुर अब भी बेहतर स्थिति में है। पंजाब भर में यह न्यूनतम मिलावट केसों में दूसरे स्थान पर है जबकि प्रथम स्थान पर जिला पठानकोट है।
सैम्पल भरने के बाद की प्रक्रिया क्या है
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार जब भी सैम्पल भरने संबंधी कोई विशेष अभियान चलाया जाता है तो फूड इंस्पैक्टर सहित अन्य डाक्टरों की टीमें गठित की जाती हैं। इन टीमों को यह जानकारी मौके पर ही दी जाती है कि वे किस इलाके में जाकर कौन-कौन सी चीजों के सैम्पल भरेंगी। जैसे ही किसी दुकान से किसी चीज का सैम्पल भरा जाता है तो तब 3 सैम्पल तैयार किए जाते हैं। एक सैम्पल तो चंडीगढ़ लैब में जांच के लिए भेज दिया जाता है जबकि एक सैम्पल दुकानदार या फैक्टरी मालिक को दिया जाता है तीसरा सैम्पल विभाग के पास पड़ा रहता है।
विभाग के अनुसार पहले तो चंडीगढ़ सैम्पल भेजने के बाद 40 दिन के अंदर-अंदर भेजे सैम्पल का रिजल्ट मिल जाता था परंतु जो नया फूड सेफ्टी एक्ट 2006 बना है, उसके अनुसार सैम्पल मिलने के 15 दिन के अंदर-अंदर लैब को जांच रिपोर्ट नीचे संबंधित जिले को भेजनी जरूरी हो गई है। विभाग के रिकार्ड के अनुसार पहले तो कुछ दिन की देरी हो जाती थी, परंतु अब ऐसा नहीं है। निर्धारित समय में सैम्पल के परिणाम मिलते हैं। सैम्पल फेल होने पर निर्धारित समय में ही कार्रवाई की जाती है।
बीते सालों में मिठाई के सैम्पल भरने में भी विभाग ने अधिक सतर्कता नहीं दिखाई
स्वास्थ्य विभाग के फूड इंस्पैक्टर कार्यालय के रिकार्ड अनुसार जिला गुरदासपुर में यह विभाग दूध व दूध से बने उत्पादों के निर्धारित लक्ष्य अनुसार सैम्पल भरने में भी असफल रहा है। इस संबंधी विभाग की कार्यप्रणाली पर कई तरह के प्रश्न-चिन्ह लग रहे हैं। फूड इंस्पैक्टर कार्यालय के रिकार्ड के अनुसार माह में केवल दूध से बने उत्पादों के कम से कम प्रति माह 9 सैम्पल दूध या दूध से बने उत्पादों के भरने जरूरी है तो साल में इन भरे सैम्पलों की संख्या 108 होनी चाहिए, जबकि गत सालों में दूध व दूध से बने उत्पादों के कभी भी 50 से अधिक सैम्पल नहीं भरे गए। मिठाइयों के सैम्पल फेल होने का प्रतिशत 80 प्रतिशत से अधिक है जबकि जिला गुरदासपुर में हलवाइयों की दुकानें 1,000 से अधिक हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो चल रही हलवाई की दुकानें किसी भी तरह से निर्धारित मापदंड को पूरा नहीं करतीं। इस संबंधी विभाग के पास कोई ठोस नीति नहीं है।