नोटबंदी से बिगड़ा उम्मीदवारों का ‘इलैक्शन मैनेजमैंट’

Edited By Updated: 24 Jan, 2017 10:17 AM

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नोटबंदी ने पंजाब विधानसभा चुनावों का ‘इलैक्शन मैनेजमैंट’ बिगाड़ दिया है। सैंकड़ों प्रत्याशियों के लिए छोटे से छोटे खर्च भी परेशानी बनकर उभर रहे हैं।  उन्हें कैश की कमी के चलते प्रतिदिन कोई न कोई दिक्कत झेलनी पड़ रही है। कहीं उधारी तो कहीं पर्ची...

अमृतसर(महेन्द्र): भाजपा नोटबंदी को जितना चाहे सफल बताए, लेकिन पंजाब विधानसभा चुनावों में उसके उम्मीदवारों को नोटबंदी के कहीं न कहीं नैगेटिव प्रभाव देखने को मिल रहे हैं। इससे उनमें काफी घबराहट है। ऐसा हलका नॉर्थ से तीसरी बार लगातार भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे स्थानीय निकाय मंत्री अनिल जोशी द्वारा मैडीकल एंक्लेव में एक जनसभा में दिए बयान से देखने को मिला। उनकी नोटबंदी पर की गई बयानबाजी से भाजपा में मानों एक तरह से हड़कंप  मच गया है। 

चुनाव प्रचार के दौरान नोटबंदी के मुद्दे पर चाहे भाजपा नेताओं के सामने लोग खुलकर नहीं बोल रहे, लेकिन अंदर ही अंदर इस फैसले को कोस रहे हैं, इसकी भाजपा उम्मीदवारों को भी जानकारी मिल रही है। हलका नॉर्थ से भाजपा उम्मीदवार अनिल जोशी जो अपने हलके में खुद को विकास पुरुष मानकर चल रहे हैं, गत दिवस एक जनसभा के दौरान अपने संबोधन में कहते सुनाई दिए कि कुछ लोग नोटबंदी पर तरह-तरह की अफवाहें फैला रहे हैं। कहीं ऐसा न हो कि इस तरह की अफवाहों के चलते उन्हें ही ऐसी सजा मिल जाए।

135 उम्मीदवारों से की बात, 53 प्रतिशत ने कहा हो रही भारी परेशानी

नोटबंदी ने पंजाब विधानसभा चुनावों का ‘इलैक्शन मैनेजमैंट’ बिगाड़ दिया है। सैंकड़ों प्रत्याशियों के लिए छोटे से छोटे खर्च भी परेशानी बनकर उभर रहे हैं।  उन्हें कैश की कमी के चलते प्रतिदिन कोई न कोई दिक्कत झेलनी पड़ रही है। कहीं उधारी तो कहीं पर्ची सिस्टम से रोजमर्रा के खर्चों को निपटाया जा रहा है। हालांकि चुनाव आयोग ने प्रत्येक प्रत्याशी के लिए चुनावी खर्च 28 लाख रुपए निर्धारित किया है लेकिन बैंकों में पैसों की निकासी को लेकर तय किए गए मापदंडों के चलते प्रत्याशियों की ‘टैंशन’ दोगुनी हो गई है। ‘इलैक्शन प्लान’ के तहत प्रत्याशी मनचाहा पैसा खर्च नहीं कर पा रहे हैं और प्रत्येक जरूरत पर उन्हें पार्टी वर्करों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक चुनावों के दौरान ‘कैश डोनेशन’ पर अधिक निर्भर रहना पड़ता है और इसी से चुनावों के खर्चे निकाले जाते हैं। यही वजह है कि राजनीतिक दल चुनावों से पूर्व आप्रवासी भारतीयों (एन.आर.आइज) से संपर्क साधते हैं।  बाकायदा ऐसे देशों में राजनीतिक हस्तियों को भेजकर डोनेशन कैंपेन चलाए जाते हैं। वर्ष 2017 के चुनावों के चलते राजनीतिक दलों ने डोनेशन तो इकट्ठी की लेकिन बैंकों की कड़ी रिस्ट्रक्शन के चलते यह पैसा इलैक्शन मैनेजमैंट में खर्च नहीं हो पा रहा। उधर, पंजाब के  पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के प्रत्याशी कैप्टन अमरेंद्र सिंह भी प्रत्याशियों को हो रही परेशानी को उठा चुके हैं। पिछले दिनों उन्होंने प्रत्याशियों को छूट देने और कैश की लिमिट को 4 लाख रुपए करने की मांग की।  
 

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