Edited By Punjab Kesari,Updated: 30 Jan, 2018 10:43 AM
Shiv Sena, Akali Dal ,NDA
लुधियाना (हितेश): एन.डी.ए. की प्रमुख सहयोगी शिवसेना ने 2019 का चुनाव भाजपा से अलग होकर लडऩे का ऐलान कर दिया है, वहीं अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल द्वारा हरियाणा में अपने दम पर मैदान में उतरने की तैयारी करने से चर्चा छिड़ गई है कि कहीं वो भी शिवसेना की राह पर तो नहीं चल रहे हैं, क्योंकि भाजपा के अंदर भी पंजाब में अकाली दल से अलग होकर चुनाव लडऩे की मांग जोर पकडऩे लगी है।
अगर अकाली दल व भाजपा के गठजोड़ की बात करें तो केंद्र के अलावा पंजाब व नगर निगम की सत्ता के अंदर व बाहर होने के बावजूद ये दोनों पाॢटयां दशकों से इकट्ठी चली आ रही हैं। लेकिन इन दोनों पार्टियों के खट्टे-मीठे रिश्तों का भी हर कोई ग्वाह है, क्योंकि सरकार में रहते हुए फैसलों को लेकर सहमति न बनने के कारण अक्सर अलग होने की नौबत आ जाती थी जो विवाद हर बार भाजपा की सैंटर लीडरशिप के दखल से सुलझता रहा है।
अब ये दोनों पार्टियां पंजाब की सत्ता से बाहर हैं जो एक-दूसरे पर सरकार जाने का ठीकरा फोडऩे में लगी हुई है। इसमें भाजपा का आरोप है कि नशा, रेत, शराब, ट्रांसपोर्ट व केबल माफिया को अकाली दल का समर्थन होने से नाराज होकर जनता ने गठजोड़ से दूरी बना ली जबकि अकाली दल का कहना है कि शहरों का जिम्मा भाजपा के सिर पर था और उसने शहरी लोगों के हितों की तरफ ध्यान नहीं दिया तो वो लोग कांग्रेस की ओर चले गए।
इस कड़वाहट के बावजूद अकाली दल व भाजपा ने 3 बड़े शहरों के नगर निगम चुनाव मिलकर लड़े लेकिन करारी हार का सामना करना पड़ा जिसे लेकर भले ही दोनों पार्टियां कांग्रेस पर धक्केशाही का आरोप लगा रही हैं जबकि इन हालातों को लेकर भाजपा में अंदरखाते 2019 के लिए डर का माहौल पैदा हो गया है और पार्टी वर्करों द्वारा अकाली दल से अलग होकर लडऩे की मांग की जा रही है। इसके संकेत भाजपा ने नगर निगम लुधियाना के चुनाव के लिए सभी वार्डों पर टिकटों के लिए आवेदन मांग कर दे दिए थे। हालांकि बाद में अकाली दल द्वारा एतराज जताने पर आधी-आधी सीटों पर चुनाव लडऩे की सहमति बन गई लेकिन अकाली दल ने भी इस रवैये को लेकर भाजपा को झटका देने का मौका नहीं गंवाया और हरियाणा में अलग चुनाव लडऩे का ऐलान कर दिया।
अकाली दल ने हरियाणा में जिला वाइज इंचार्ज भी लगाए
अकाली दल का यह फैसला उस समय आया जब कुछ दिन पहले ही शिवसेना ने 2019 के चुनाव भाजपा से अलग होकर लडऩे की घोषणा की थी। इसके तहत अकाली दल द्वारा हरियाणा में जिला वाइज इंचार्ज भी लगा दिए गए हैं जिसे लेकर भाजपा फिलहाल चुप है और लुधियाना नगर निगम चुनाव के बाद नतीजों को देखकर अपना रुख साफ करेगी कि वो अकाली दल के साथ रहना चाहती है या नहीं?
यह भी है भाजपा के प्रति अकाली दल के रोष की वजह
अकाली दल के भाजपा के प्रति रोष की कुछ ओर वजह भी है जिसमें पहले भाजपा की केंद्र सरकार ने हरसिमरत कौर के रूप में अकाली दल का एक ही मंत्री बनाकर उसको कोई अहम विभाग नहीं दिया गया और न ही गवर्नर बनाने में कोई कोटा मिला। इसी तरह भाजपा ने प्रकाश सिंह बादल को राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति बनाने की मांग पर भीकोई विचार नहीं किया।
हद तो उस समय हो गई जब अकाली दल को गुजरात व हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए न्यौता तक नहीं मिला। शायद उसके बाद से ही अकाली दल ने पंजाब में अकेले चुनाव लडऩे की नोबत आने के मद्देनजर अभी से तैयारी शुरू कर दी है।