Edited By Punjab Kesari,Updated: 24 Jun, 2017 04:25 PM
वीरवार को पंजाब विधानसभा में हुए भारी हंगामे व अनुशासनहीनता ने जहां लोकतांत्रिक परम्पराओं का मजाक उड़ा कर रख दिया
फगवाड़ा (अशोक): वीरवार को पंजाब विधानसभा में हुए भारी हंगामे व अनुशासनहीनता ने जहां लोकतांत्रिक परम्पराओं का मजाक उड़ा कर रख दिया, वहीं दूसरी तरफ राज्य के नागरिकों द्वारा चुने गए विधायकों (सत्ता पक्ष व विपक्ष ) की कार्यश्रेणी, विधानसभा स्पीकर व अनेक जिम्मेदार विधायकों के गैर-लोकतांत्रिक ढंग से पंजाब विधानसभा को जनहित की बजाय राजसी रस्साकशी का केन्द्र बनाने से लोगों के दिलों में आक्रोश, निराशा व उदासीनता उत्पन्न हो गई है।
क्या निर्वाचित विधायकों को विधानसभा की कार्रवाई में भाग लेने के लिए अनुशासनात्मक ढंग अपनाना आवश्यक नहीं? क्या विधायकों को लोकतंत्र की स्तम्भ विधानसभा का बहुमूल्य समय जनहित कार्यों व मामलों पर ठोस व क्रियात्मक बहस के लिए प्रयोग नहीं करना चाहिए। वास्तव में सत्ता से उतरे अकाली दल-भाजपा गठबंधन व सत्ता तक न पहुंच पाने वाली आम आदमी पार्टी (आप) की यह राजसी निराशा व बौखलाहट का ही स्पष्ट चित्रण लग रहा रहा है, लेकिन कहीं न कहीं इस में सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के विधायकों व मंत्रियों का अहं व पूरे प्रकरण को नियंत्रित न कर पाने के लिए विधानसभा स्पीकर का दूरदॢशता से काम न ले पाना भी झलक रहा था। जनता के मन में अविश्वास की भावना उत्पन्न हो रही है।
पंजाब राज्य पहले ही भयावह वित्तीय संकट, ड्रग माफिया व राष्ट्र विरोधी तत्वों के सक्रिय होने से असमंजस व पेचीदा स्थिति में पहुंच गया है। ऊपर से निर्वाचित विधायकों की अयोग्य कार्यप्रणाली व बढ़ रहे राजसी द्वेष ने लोगों के दिलों में राजनीतिज्ञों के प्रति अविश्वास की भावना उत्पन्न करनी शुरू कर दी है। इस विकट समय में आवश्यकता है सर्वप्रथम निर्वाचित स्पीकरों को विधानसभा चलाने में सक्षम करने हेतु बाकायदा क्रियात्मक प्रशिक्षण देने की, महज खानापूॢत करने की नहीं, ताकि विधानसभाओं के स्पीकर राजसी पक्षपात से ऊपर उठकर विधानसभाओं की कारगुजारी सुचारू रूप से चला सकें।
आवश्यकता है विधानसभा सैशन और दिन बढ़ाने की
दूसरी आवश्यकता यह है सभी दलों के विधायकों के व्यापक सत्र पर विधानसभाओं की कार्रवाई में भाग लेने के लिए उचित प्रैक्टिकल ट्रेङ्क्षनग केन्द्र बनाकर उन्हें प्रशिक्षित किया जाना चाहिए ताकि विधानसभाओं की कार्रवाई सामान्य व जनहित के लिए चल सके, न कि आरोप-प्रत्यारोप के प्रकरण में ही सरकारी खजाने के करोड़ों रुपए खर्च कर समाप्त हो जाए।
तीसरी महत्वपूर्ण आवश्यकता है विधानसभा के सत्र के लम्बे सैशन व दिन बढ़ाने की ताकि जनहित मुद्दों पर सकारात्मक बहस हो सके लेकिन यह सत्र राजसी दलों के प्रमुखों, विधायकों, सत्तारूढ़ एवं विपक्ष व अंत में स्पीकरों की प्रबल इच्छाशक्ति व क्रियात्मक जनसेवा की भावना पर निर्भर करता है।