Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Aug, 2017 11:10 AM
भारत-पाक के बंटवारे का दर्द आज भी हमारी रूहों को कंपा देता है। बंटवारे की बातें नई पीढ़ी को अब कहीं-कहीं ही सुनने को मिलती हैं
जीरा/फिरोजपुर(अकालियां वाला): भारत-पाक के बंटवारे का दर्द आज भी हमारी रूहों को कंपा देता है। बंटवारे की बातें नई पीढ़ी को अब कहीं-कहीं ही सुनने को मिलती हैं क्योंकि बंटवारे का दर्द आंखों से देखने वाले बुजुर्ग इस दुनिया से रुख्सत हो गए हैं। रूह को कंपा देने तथा मानव जाति के इतिहास को शर्मिंदा कर देने वाली इस त्रासदी में 20 लाख से ज्यादा लोग मारे गए।
आजादी का जश्न कोई अर्थ नहीं रखता
राजनीतिज्ञों ने अपने सपनों को तो पूरा किया लेकिन धर्म व जाति के नाम पर भोले-भाले इंसानों को हिंदू व मुसलमान में बांटकर सिसायतदान यहां से चले गए। लोगों के दिलों को इस खूनी दर्द की याद जब भी सताती है तो रौंगटे खड़े हो जाते हैं। आज देश आजादी का जश्न मना रहा है, लेकिन जिन लोगों ने यह बात आंखों देखी उनके लिए आजादी का जश्न कोई अर्थ नहीं रखता। वहीं, बुद्धिजीवी वर्ग आजादी के इस सिस्टम से संतुष्ट नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि हमारे शूरवीरों के सपनों का देश चाहे निर्मित नहीं हुआ, लेकिन बंटवारे की यादों के बोल जब हमारे कानों में गूंजते हैं तो आज भी हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं। ‘पंजाब केसरी’ द्वारा उन बुजुर्गों से बातचीत की गई जिन्होंने इस बंटवारे का दर्द झेला है। पेश हैं बातचीत के कुछ अंश...
110 वर्षों की संत कौर नहीं भूली बंटवारे का दर्द
पाकिस्तान के गांव परिंदा (शेखूपुरा) की संत कौर चाहे 110 वर्षों की जिंदगी व्यतीत कर चुकी है, लेकिन उसने बंटवारे का दर्द अपनी गोद में 2 बेटियों को उठाकर झेला है। तहसील जीरा के गांव अमीर शाह में अपने 28 पारिवारिक सदस्यों के साथ रह रही संत कौर का कहना है कि उसका परिवार गांव का नंबरदार था। वे अपने गांव को छोड़कर शवों के ढेरों के पास से गुजर कर गांव बुर्ज पहुंचे थे। उसके बाद वे गांव अमीर शाह आ गए। जिस सरदारी को छोड़कर वह यहां आई थीं उसका आनंद यहां नहीं मिला। उसका कहना है कि उनके सामने इस बंटवारे दौरान छोटे बच्चे मार दिए गए। पानी वाले खूहों में जहर डाल दिया गया। जब भी संत कौर गत समय की बातें सुनाती है तो टी.वी. सीरियलों को भी मात देती है।
दिल कंपा देती हैं बंटवारे में घायल हुए जागीर सिंह की बातें
जागीर सिंह चाहे सेवामुक्त मुलाजिम है, लेकिन वह 2 वर्ष का था, जब उसको बंटवारे दौरान मां की गोद में बैठाकर बरछा मारकर घायल कर दिया गया था। उसका कहना है कि फिरोजपुर जिले में ज्यादातर पाकिस्तान से आए लोग रहते हैं। बंटवारे के बाद उसके पिता को तहसील में नौकरी मिल गई। जिस कारण उसने यहां आकर पैर जमा लिए। जागीर सिंह ने बताया कि आजादी काजश्न तो मनाया जाता है, लेकिन बिछुड़े लोगों को कभी मौन धारण करके श्रद्धांजलि क्यों नहीं दी जाती।