....मुझे तो अपनों ने मारा, गैरों में कहां दम था

Edited By Updated: 15 Mar, 2017 09:30 AM

anil joshi bjp

इस बार हुए विधानसभा चुनावों में स्थानीय निकाय मंत्री के पद पर रहते हुए अपने हलका नॉर्थ में लोगों की उम्मीद से भी कई गुणा

अमृतसर (महेन्द्र/वडै़च): इस बार हुए विधानसभा चुनावों में स्थानीय निकाय मंत्री के पद पर रहते हुए अपने हलका नॉर्थ में लोगों की उम्मीद से भी कई गुणा विकास करवाने के बावजूद अनिल जोशी को जिस तरह से चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है, उसे देख उन पर एक मशहूर शायर के शेअर की ये पंक्तियां चरितार्थ होती हैं ‘...मुझे तो अपनों ने मारा, गैरों में कहां दम था, मेरी कुश्ती वहां डूबी, जहां पानी कम था’, यही कारण है कि अपनों की ही नाराजगी ने इस चुनावी दरिया में से जोशी की किश्ती पार नहीं लगने दिया और सुनिश्चित जीत मान रहे जोशी को आखिर हार का सामना करना पड़ा। 

खुद पर ज्यादा भरोसे ने किया नुक्सान
अनिल जोशी के हलका नॉर्थ के ही कई पार्षद, पार्षद पति तथा मंडल स्तर के नेता किसी न किसी मुद्दे पर अपनी नाराजगी जताते रहे हैं। यही नहीं, चुनावों से पहले नगर सुधार ट्रस्ट के चेयरमैन सुरेश महाजन, नगर निगम के मेयर बख्शी राम अरोड़ा व भाजपा जिलाध्यक्ष राजेश हनी भी किसी न किसी मुद्दे पर जोशी के खिलाफ बयानबाजी करते रहे हैं, जिसे जोशी ने कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। जोशी यही मान कर चल रहे थे कि जिस तरह से उन्होंने अपने हलके के लोगों की उम्मीदों से कई गुणा विकास कार्य करवा दिए हैं, उसकी वजह से उनकी इस बार चुनावी जीत सुनिश्चित है, इसलिए अपनी ही पार्टी में उनके खिलाफ हो रहे भीतरघात के बारे में सब कुछ जानते हुए भी जोशी अपनी चुनावी जीत को लेकर खुद पर कुछ ज्यादा ही भरोसा कर रहे थे, जिसने उनको नुक्सान पहुंचाया। 

जोशी की बस से उतर चुकी थीं बहुत-सी सवारियां 
पहली बार चुनाव जीतने के पश्चात उनके साथ राजिन्द्र कुमार (पप्पू महाजन), अनुज सिक्का, सुखमिन्द्र सिंह सिंटू, डा. सुभाष पप्पू, अमन ऐरी, बलदेव राज बग्गा, मानव तनेजा, राजेश हनी, अकाली दल (ब) से रछपाल सिंह बब्बू सहित कई पार्षद एवं वरिष्ठ नेताओं की टीम हर समय दिखाई देती थी। जोशी की टीम में शामिल सभी सदस्यों को लोग जोशी के खास-म-खास मान कर चलते थे। लेकिन समय की नजाकत थी कि ऐसा समय आया कि जोशी के खासम-खास इन नेताओं से भरी बस में से सवारियां धीरे-धीरे उतरनी शुरू हो गई थीं। कारण वही बता सकते हैं, लेकिन इतना जरूर था कि इनमें खटास लगातार बढ़ती जा रही थी और उसका यह परिणाम हुआ कि इनमें से बहुत सारे नेताओं ने प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष तौर पर चुनावों में ऐसा विरोध किया कि जिस सीट पर सारे राज्य में भाजपा अपनी जीत सुनिश्चित मान कर चल रही थी, वह सीट भी हाथ से निकल गई और जोशी को भी आखिर हार का सामना करना पड़ा। 

बिखरी टीम कैप्टन को कर देती है धराशायी
यह हकीकत है कि कोई भी फील्ड चाहे लड़ाई का मैदान हो, चाहे क्रिकेट का या फिर चुनाव का मैदान हो, अगर टीम में एकता न हो, पूरी टीम ही बिखर जाए तो टीम का कैप्टन धराशायी हो ही जाता है। जोशी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। उनकी अच्छी-भली टीम के पखेरू धीरे-धीरे उडऩे शुरू हो गए और कैप्टन के रूप में अंदर-ही अंदर जोशी धराशायी होते गए, लेकिन जोशी खुद पर कुछ ज्यादा ही भरोसा किए हुए थे और यह नहीं जानते थे कि उनके यही नाराज चल रहे अपने ही साथी उनको भारी नुक्सान पहुंचा सकते हैं। 

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