Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Feb, 2018 11:33 AM
जालंधरः महिलाओं को प्रताड़ित तब तक किया जाता है जब तक वे खुद इसके लिए आवाज नहीं उठाती। इन्हें तब तक हिंसा का शिकार होना पड़ता है जब तक ये अपने दर्द किए लिए आवाज नहीं उठाती। महिलाओं को चाहिए कि उन्हें अपने अधिकारों के लिए खुद लड़ना चाहिए ताकि कल को आपकी बेटी पर उंगली उठाने की कोई हिम्मत न कर सके जो मां खुद के लिए नहीं लड़ सकती वो बेटी को उसके अधिकार कैसे दिलाएगी।
पंजाब में हर 5वीं महिला घरेलू हिंसा की शिकार है। शहर से लेकर गांव तक घरों में भी महिलाओं के साथ अत्याचार हो रहे हैं। सास से सवाल जवाब करने पर, बच्चों की सही देखभाल न होने, दो से ज्यादा बेटियां होने पर घरों में उन्हें प्रताड़ित किया जाता है। यह खुलासा हुआ है नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-2016) की रिपोर्ट में। प्रदेश के 16,449 परिवारों पर हुए इस सर्वे में 15 से 49 वर्ष की 21 हजार महिलाओं ने बेबाकी से अपनी बात रखी है। 20.5 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हैं। इसमें 19 प्रतिशत विवाहित महिलाएं हैं। हैरानी की बात यह है कि इसमें से 63 प्रतिशत महिलाएं घरेलू हिंसा के खिलाफ न तो किसी को बताती हैं और न ही इसके खिलाफ आवाज उठाती हैं। वह चुपचाप इस दंश को झेल रही हैं। क्योंकि वे जानती हैं कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो मायके और ससुराल दोनों घरों के द्वार उन के लिए सदा के लिये बंद हो जाएंगे।
रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में 60 प्रतिशत मामलों में पाया गया, कि हिंसा के वक्त पति शराब के नशे में होते हैं। यानी नशे में छोटी-छोटी बात पर पत्नियों की पिटाई कर देते हैं। बात अगर पड़ोसी राज्य हरियाणा की करें तो यहां भी स्थिति सुखद नहीं है। हरियाणा में 34 प्रतिशत यानि हर तीसरी महिला घरेलू हिंसा से पीड़ित है। शराब के नशे में पतियों द्वारा हिंसा करने की दर 71 प्रतिशत है और इस बारे में आवाज न उठाने अथवा मदद की गुहार न लगाने का प्रतिशत 77 है। हालांकि, इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए 2006 में जोर-शोर से ‘घरेलू हिंसा अधिनियम’ लागू किया गया मगर यह दिखावे का ही है। बड़ी बात यह भी है कि घरेलू हिंसा में पिटाई को बहुत सी महिलाओं ने सहज ही स्वीकार कर लिया है। पंजाब में 19484 महिलाओं पर हुए सर्वे में 33 प्रतिशत महिलाएं विशेष परिस्थिति में पति द्वारा पिटाई को सही मानती हैं। वहीं, 21 प्रतिशत महिलाओं का कहना है कि यदि सास के साथ उन्होंने अच्छा व्यवहार नहीं किया है तो उनकी पिटाई जायज है। 15 प्रतिशत का मानना है कि बच्चों की सही देखभाल न किए जाने पर उनकी पिटाई उचित है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (2015-2016) स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के लिए अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान ने किया है। इसका उद्देश्य भारतीय समाज के प्रत्येक क्षेत्र विशेषकर स्वास्थ्य, शिक्षा, जन्म और मृत्यु दर, धर्म, जाति इत्यादि में हो रहे परिवर्तन का एक सुव्यवस्थित डाटा बैंक बनाना है।
घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर 2006 से इसे लागू किया गया। यह अधिनियम महिला बाल विकास द्वारा संचालित किया जाता है। शहर में महिला बाल विकास द्वारा जोन के अनुसार आठ संरक्षण अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। जो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की शिकायत सुनते हैं और पूरी पड़ताल के बाद मामले को कोर्ट भेजा जाता है। अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन, पत्नी व महिलाओं के हर रूप और किशोरियों से संबंधित मामलों को शामिल किया जाता है। लेकिन घरेलू मामले बाहर आ ही नहीं पाते।
घरेलू हिंसा के 7 बड़े कारण
महिलाओं में शिक्षा का अभाव
आर्थिक तौर पर उन का कमजोर होना
पति का शराबी या कोई और नशे की लत
दहेज की कुप्रथा का होना
बहू द्वारा बार-बार बेटी पैदा करना
ससुराल में दुर्व्यवहार का विरोध करना
पुरुष का उस के चरित्र पर शक करना
प्रताड़ना 4 तरीकों से
शारीरिक हिंसा: मारपीट करना, धकेलना, ठोकर मारना, लात, मुक्का मारना यानी शारीरिक पीड़ा या क्षति पहुंचाना।
यौन हिंसा: दुष्कर्म ,अश्लील साहित्य या कोई अन्य अश्लील सामग्री दिखाना, दुर्व्यवहार, अपमानित करना, पारिवारिक और सामाजिक प्रतिष्ठा आहत करना।
भावनात्मक हिंसा: चरित्र पर लांक्षन, पुत्र न होने पर अपमान, दहेज कम लाने पर अपमान, नौकरी छोड़ने को विवश, इच्छा के विरुद्ध विवाह, गाली गलौज आदि।
आर्थिक हिंसा: बच्चों के लालन-पालन के लिये धन उपलब्ध न कराना। बच्चों के लिए खाना, कपड़े और दवाइयां उपलब्ध न कराना। सैलरी अथवा पारिश्रमिक से आय लेना।