DSGMC चुनाव: भाजपा की बची इज्जत, दोनों सीटों पर खिला ‘कमल’

Edited By Updated: 02 Mar, 2017 02:18 AM

bjp remaining dignity both seats feeding lotus

डी.एस.जी.एम.सी. के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की इज्जत भी...

नई दिल्ली/चंडीगढ़: डी.एस.जी.एम.सी. के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की इज्जत भी बच गई। दिल्ली भाजपा के 2 नेताओं ने गुरुद्वारा चुनाव में कमल खिला दिया। शिअद (बादल) के टिकट पर चुनावी मैदान में दिल्ली भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष कुलवंत सिंह बाठ और दिल्ली प्रदेश के आऊटर दिल्ली जिला के सिख सैल के संयोजक स्वर्ण सिंह बराड़ ने ऐतिहासिक जीत हासिल की। बाठ दोबारा धार्मिक चुनाव में कमल खिलाने में कामयाब रहे। उन्होंने अपनी सीट नवीन शाहदरा पर कब्जा बरकरार रखा है। 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव परिणामों से पूर्व निकले इस धार्मिक चुनाव के रिजल्ट से दिल्ली भाजपा गद्गद् है। 


डी.एस.जी.एम.सी. के चुनाव में भाजपा सीधे तौर पर तो चुनाव नहीं लड़ रही है, लेकिन उसकी दिल्ली इकाई के 2 सिख पदाधिकारी कुलवंत सिंह बाठ और स्वर्ण सिंह गुरुद्वारा चुनाव जरूर लड़ रहे थे। बाठ अभी हाल ही में सांसद मनोज तिवारी की अगुवाई में गठित दिल्ली की प्रदेश भाजपा इकाई में उपाध्यक्ष बनाए गए हैं। बाठ वर्तमान गुरुद्वारा कमेटी के सदस्य भी हैं। साथ ही उन्हें पंजाब सरकार ने जैनको कार्पोरेशन का वाइस चेयरमैन भी बना रखा है जबकि स्वर्ण सिंह बराड़ वार्ड नं. 10 (गुरु हरिकिशन नगर) के प्रत्याशी थे। स्वर्ण सिंह भी भाजपाई हैं। भाजपा ने उन्हें दिल्ली प्रदेश के आऊटर दिल्ली जिला के सिख सैल के संयोजक बनाया है।  

 

डी.एस.जी.एम.सी. में सीधे तौर पर हस्तक्षेप नहीं करती भाजपा
बता दें कि भाजपा सीधे तौर पर डी.एस.जी.एम.सी. में किसी भी प्रकार से हस्तक्षेप नहीं करती है। वह पंजाब में गठबंधन के नाते अकालियों के बुलाने पर चुनाव एवं सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेती है। इन दोनों प्रत्याशियों के दोनों दलों में होना और चुनाव लडऩा चर्चा का विषय बना हुआ था। साथ ही पार्टी की प्रतिष्ठा भी दाव पर थी लेकिन दोनों ने कांटे की टक्कर देते हुए जीत हासिल की। 


भाजपा ने यू.पी. और उत्तराखंड चुनावों में अकाली नेताओं से बनाई दूरी 
आम तौर पर जब भी उत्तर प्रदेश या उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव होते हैं तो वहां बसते पंजाबियों और खास करके सिखों को एक साथ करने के लिए भाजपा हमेशा ही अकाली दल का सहयोग लेती रही है। उत्तराखंड और यू.पी. के कई हिस्सों में सिख वोटर फैसलाकुन स्थिति में हैं और कई विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिनका फैसला पंजाबी और सिख वोटर करते हैं। डेरा सिरसा प्रमुख को माफी देने और पंजाब विधानसभा चुनावों में डेरा सिरसा प्रमुख की हिमायत लेने के कारण पंजाब में अकाली दल की जो हालत खराब हुई और सिख वोटरों ने अकाली दल से दूरियां बनाईं, उसकी सूचना खुफिया तंत्र के द्वारा भाजपा के पास पहुंच गई थी। 


भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल, उप-मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल, अकाली दल के महासचिव प्रेम सिंह चंदूमाजरा समेत किसी भी बड़े या छोटे अकाली नेता को यू.पी. और उत्तराखंड में चुनाव प्रचार के लिए नहीं बुलाया गया। सूत्रों के अनुसार भाजपा के यू.पी. और उत्तराखंड के सिख और पंजाबी नेताओं ने हाईकमान को बता दिया था कि यदि पंजाब के अकाली दल के नेताओं को चुनाव प्रचार के लिए बुलाया गया तो इसका विपरीत प्रभाव हो सकता है, जिस कारण भाजपा ने भी अकाली नेताओं से दूरियां बना ली थीं। 
 

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