कांग्रेस सरकार में निगम हालात हुए बेकाबू, भ्रष्टाचार चरम पर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 16 Nov, 2017 08:53 AM

uncertainty in the congress government  the situation of corruption at the peak

पिछले समय दौरान जालंधर नगर निगम ने घोर वित्तीय संकट सहे हैं

जालंधर  (अश्विनी खुराना): पिछले समय दौरान जालंधर नगर निगम ने घोर वित्तीय संकट सहे हैं परन्तु आज तक कभी भी निगम कर्मचारियों की तनख्वाह लेट नहीं हुई, परन्तु इस महीने यह रिकार्ड भी टूटने जा रहा है। 15 तारीख बीत चुकी है परन्तु सफाई कर्मचारियों सहित किसी भी निगम कर्मचारी को अभी तक वेतन नहीं मिला है क्योंकि निगम के पास वेतन देने के लिए पैसे ही नहीं हैं जिस कारण निगम स्टाफ में रोष पाया जा रहा है। गौरतलब है कि कांग्रेस सरकार को बने 8 महीने हो चुके हैं परन्तु इस अवधि के दौरान नगर निगम के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। कांग्रेस सरकार निगम चुनाव ही नहीं करवा पा रही और इस समय निगम में अफसरों का राज है। भ्रष्टाचार चरम पर है और इस पर किसी तरह का कोई अंकुश नहीं है। छोटे-छोटे कामों के लिए आम जनता को निगम में परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। माना जा रहा है कि नगर निगम की इस खस्ता हालत स्थिति का पूरा प्रभाव आने वाले निगम चुनावों में कांग्रेस की परफार्मैंस पर पड़ेगा।


15 करोड़ मासिक और 180 करोड़ रुपए है सालाना वेतन
नगर निगम के 3000 से ज्यादा कर्मचारियों को हर महीने करीब 15 करोड़ रुपए और सालाना 180 करोड़ के करीब वेतन मिलता है। इस महीने निगम से 15 करोड़ रुपए वेतन का इंतजाम नहीं हो पा रहा। निगमाधिकारी बहाना लगा रहे हैं कि सरकार से जी.एस.टी. की राशि आने में देरी के कारण वित्तीय संकट आया है परन्तु पता चला है कि सरकार की ओर से जो जी.एस.टी. शेयर निगम को आ रहा है उससे भी निगम कर्मियों का वेतन नहीं दिया जा सकेगा। अब वेतन को कितनी देर लगती है और क्या इंतजाम किए जाते हैं यह देखने वाली बात होगी।


प्रॉपर्टी टैक्स प्रति न निगम और न ही सरकार है ‘सीरियस’
नगर निगमों की कमाई का मुख्य साधन प्रॉपर्टी टैक्स है। वैसे तो निगम को प्रॉपर्टी टैक्स से आय 75 से 100 करोड़ आंकी जा रही थी परन्तु निगमाधिकारियों ने लक्ष्य ही 30 करोड़ निर्धारित किया है। निगम और सरकार दोनों ही प्रॉपर्टी टैक्स प्रति सीरियस नहीं हैं। लाखों लोगों ने अपना प्रॉपर्टी टैक्स नहीं भरा परन्तु निगम चंद दर्जन नोटिस निकाल कर खानापूर्ति कर लेता है। दूसरी ओर सरकार ने भी डिफाल्टरों को ब्याज और जुर्माने में माफी तथा उलटा 10 प्रतिशत डिस्काऊंट देकर उन टैक्स पेयर्स को मायूस किया है जो ईमानदारी से प्रॉपर्टी टैक्स अदा करते हैं। ऊपर से कांग्रेसी यह बयान भी दे देते हैं कि हम प्रॉपर्टी टैक्स माफ कर देंगे या घटा देंगे।

तहबाजारी की निजी वसूली पर कोई रोक-टोक नहीं
एक सर्वे के मुताबिक इस समय जालंधर में 15000 के करीब रेहडिय़ां और खोखे हैं जिनसे यदि मामूली मासिक शुल्क लिया जाए तो करोड़ों में आय हो सकती है परन्तु सालों साल से तहबाजारी में सरकारी की बजाय निजी वसूली पर जोर है जिस पर कोई रोक-टोक नहीं। एक पूर्व कमिश्रर ने सरेआम निजी वसूली का स्कैंडल पकड़ा परन्तु वह भी कुछ न कर सके। तहबाजारी के कर्मचारी सालों साल से एक ही स्थान पर टिके हैं परन्तु उनको बदलने की हिम्मत किसी में नहीं। तहबाजारी से निगम को आय लाखों में है जो आसानी से करोड़ों तक पहुंच सकती है परन्तु इसके लिए इच्छाशक्ति चाहिए जो किसी निगमाधिकारी के पास दिखाई नहीं देती। चंद शिकायतों के आधार पर तहबाजारी विभाग कभी-कभार गरीबों पर कार्रवाई कर देता है या उन लोगों को परेशान किया जाता है जो निजी वसूली देने से इंकार करते हैं।

सालों साल नहीं भेजे जाते पानी के बिल
अपनी खस्ता हालत के लिए निगम खुद जिम्मेदार है। नगर निगम की सीमा में 1.50 लाख से अधिक घर व 50000 से ज्यादा व्यापारिक संस्थान हैं और सभी के लिए पानी मुख्य जरूरत है परन्तु यदि आप वाटर कनैक्शनों की संख्या देखें तो आप हैरान हो जाएंगे। आधे से ज्यादा शहर पानी का बिल दिए बगैर पानी पी रहा है। सालों साल मोहल्लों, कालोनियों को पानी के बिल नहीं भेजे जाते और एकाएक हजारों रुपए के नोटिस लोगों को थमा दिए जाते हैं। जिसे एक साथ पानी का बिल 50000 रुपए मिलता है वह निगम कर्मी को 5000 रुपए रिश्वत देकर फाइल दबवा देता है। ऐसे में निगम के बकाए बढ़ते जा रहे हैं और डिफाल्टर मौज कर रहे हैं। खानापूर्ति के नाम पर फ्लाइंग स्क्वायड चंद कनैक्शन काटता है, अखबारों में खबर छपवाता है और अगले दिन उसी स्थान पर फिर अवैध कनैक्शन लग जाता है। इस कांड को रोकने की हिम्मत आज तक किसी अधिकारी और नेता ने नहीं दिखाई।


निगम ने पाले ‘सफेद हाथी’, महीने का खर्चा 50 लाख
निगम के पास अपने कर्मचारियों को वेतन तक देने के पैसे नहीं होते और हर महीने वैट या जी.एस.टी. का इंतजार करना पड़ता है, दूसरी ओर पूर्व उपमुख्यमंत्री को खुश करने के लिए निगम ने स्वीपिंग मशीनों के नाम पर सफेद हाथी पाल लिए हैं जिन पर 50 लाख रुपए महीना खर्च आता है और यह मशीनें चंद मुख्य सड़कों पर ही सफाई करती हैं जहां निगम कर्मचारियों को भी लगाया जा सकता है। अभी हाल ही में निगम प्रशासन ने स्वीपिंग मशीनों को एक करोड़ रुपए की पेमैंट की है। कुछ सप्ताह बाद यही स्वीपिंग मशीनें फिर करोड़ रुपए की डिमांड करेंगी। इस मैकेनिकल स्वीपिंग को बड़ा घोटाला बताने वाली कांग्रेस इस मामले में बिल्कुल मौन है। 

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