Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Dec, 2017 02:07 PM
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की अध्यक्षता हमेशा ही चुनौतियों भरी मानी जाती है। इस संस्था के प्रमुख को जहां पंथ विरोधी ताकतों से लड़ाई लडऩी ही पड़ती है वहीं आज नए बने प्रधान गोबिन्द सिंह लौंगोवाल के लिए सिख भाईचारे में ही अपने आधार को मजबूत...
अमृतसरः शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की अध्यक्षता हमेशा ही चुनौतियों भरी मानी जाती है। इस संस्था के प्रमुख को जहां पंथ विरोधी ताकतों से लड़ाई लडऩी ही पड़ती है वहीं आज नए बने प्रधान गोबिन्द सिंह लौंगोवाल के लिए सिख भाईचारे में ही अपने आधार को मजबूत बनाना काफी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।
लौंगोवाल के समक्ष एस.जी.पी.सी. के प्रति सिखों के खो चुके भरोसे को बहाल करना, धर्म पर राजनीति के प्रभाव को खत्म करना, पंथक नेताओं का आपसी क्लेश समाप्त करना, नानकशाही कैलेंडर का मसला सुलझाना तथा विश्व स्तर पर सिखों की पहचान स्थापित करने जैसे मुद्दे हैं। उनके निजी जीवन से जुड़े कई विवाद भी चुनौतियों भरे हैं। गत दिनों शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के प्रधान गोबिन्द सिंह लौंगोवाल के साथ पंजाब केसरी के संवाददाता रमनदीप सिंह सोढी की इन तमाम मुद्दों पर खास बातचीत हुई। बातचीत से जुड़े कुछ खास अंश:
प्र. नाम के साथ कैसे जुड़ा ‘लौंगोवाल’ शब्द?
उत्तर-‘वाहेगुरु जी का खालसा वाहेगुरु जी की फतह।’ लौंगोवाल संत हरचंद सिंह जी की कर्म भूमि थी। मेरे माता-पिता पहले से ही संत जी के पास आते थे। जब पंजाबी सूबा मोर्चा लगा था तब भी मेरे ताया जी लौंगोवाल जी के जत्थे में शामिल थे। इस तरह मेरा परिवार शुरू से ही उनके काफी करीब था। मुझे याद है कि जब मैं 7-8 साल का था तो अपने परिवार के साथ हम संत जी के पास गए हुए थे। इस दौरान उन्होंने मुझे देखते ही मेरे मां-बाप को कहा कि आपका बच्चा बहुत होनहार है, इसे आप गुरुघर की सेवा में लगा दें।
इसके बाद मेरे मां-बाप ने मुझे उनके पास ही छोडऩे का निर्णय कर लिया और मेरे भविष्य का फैसला उन पर ही छोड़ दिया। मैंने अपनी सामाजिक और धार्मिक शिक्षा संत लौंगोवाल जी के पास रह कर ही हासिल की। उस समय गुरुद्वारों में ही शिक्षा दी जाती थी। मैं उनके साथ कीर्तन दौरान तबला वादक के तौर पर भी सेवा करता रहा। इसके अलावा मैं उनकी गाड़ी भी चलाता रहा। भाव हर वक्त मैं उनकी सेवा के लिए तत्पर रहा। चाहे एमरजैंसी के मोर्चो का वक्त रहा हो या ब्लू स्टार दौरान मेरे जेल जाने की बात हो, मैं आखिरी समय तक उनके साथ रहा। उनकी शहादत के बाद बड़ी संख्या में संगत इकट्ठी हुई और मुझे गद्दी का राजनीतिक वारिस बनाया गया। इस तरह मेरे नाम के साथ ‘लौंगोवाल’ शब्द जुड़ गया।
प्र.गोबिन्द सिंह लौंगोवाल ने राजनीति में किस तरह प्रवेश किया?
उ.संत लौंगोवाल जी की शहादत के बाद मैंने उनके काम को आगे बढ़ाया और 1985 में मुझे धनौला से टिकट दी गई। तब मेरी उम्र 26 वर्ष की थी और मैंने 25 हजार से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी।
प्र.कहा जा रहा है कि लौंगोवाल शब्द ही आपकी अध्यक्षता के लिए लक्की साबित हुआ, क्योंकि आखिरी समय तक आपके नाम का कोई जिक्र नहीं था?
उ:मुझे तो अध्यक्षता बारे कोई जानकारी ही नहीं थी और न ही मैंने कभी इच्छा जाहिर की थी। यह तो पार्टी प्रधान सुखबीर सिंह बादल और प्रकाश सिंह बादल द्वारा ही फैसला लिया गया है, हालांकि मैंने कहा था कि मेरे अलावा कई अन्य चेहरे भी इस पद के लिए पार्टी में योग्य हैं।
प्र: बहुत चर्चा है कि सिख धर्म पर आर.एस.एस. का प्रभाव बढ़ रहा है, आप पर भी आरोप लगाया जा रहा है कि आर.एस.एस. को खुश करने के लिए आपको प्रधान बनाया गया है?
उ: पंथ का विरोध करने वाले यह आरोप लगा रहे हैं। मेरी तो परवरिश ही सिख धर्म में हुई इसके लिए हमारा और आर.एस.एस. का क्या मतलब। न हम उसके बारे जानते हैं न ही हमारा उसके साथ कोई संबंध है। हम तो सिख धर्म बारे ही बात कर सकते हैं जो अपने आप में ही बहुत विशाल है। इसलिए मुझे नहीं लगता कि हमारे धर्म पर किसी का प्रभाव है।
प्र: एस.जी.पी.सी. की अध्यक्षता बारे कहा जाता है कि प्रधान की पर्ची बादल परिवार के लिफाफे में से निकलती है, तो क्या यह आरोप सच हैं?
उ. नहीं, यह तो विरोधी इस तरह के आरोप लगाते रहते हैं। लिफाफे वाली बात तो तब ही स्पष्ट हो गई थी जब बीबी जागीर कौर की तरफ से मेरे नाम की पेशकश करके सहमति ली गई और चुनाव को बाद अध्यक्ष चुना गया।
प्र. :एस.जी.पी.सी. पर राजनीति के प्रभाव तले चलने के आरोपों को आप झुठला पाएंगे?
उ.: जी बिल्कुल, मेरी परमात्मा से अरदास है कि मेरे हाथों हमेशा निष्पक्ष फैसले हों और कोई ऐसा काम न हो जिससे किसी भी वर्ग का नुक्सान हो।
प्र. : आप अकाली दल को पंथक पार्टी मानते हो, उसकी परिभाषा क्या है?
उ. :शिरोमणि अकाली दल पार्टी बड़े बलिदान देने के बाद बनी है। स्वाभाविक ही है कि यह पंथक पार्टी है। रही बात परिभाषा की जो पार्टी सब सम्प्रदायों को साथ लेकर गुरबाणी के सिद्धांत पर चलती है और जुल्म के खिलाफ लड़ती है, उसे पंथक पार्टी कहा जाता है।
प्र:बतौर प्रधान आपके मुख्य लक्ष्य क्या हैं?
उ:मेरे मुख्य लक्ष्यों में धर्म का प्रचार करना, सिखी से दूर जा रहे नौजवानों को जागरूक करना, गुरमति शिक्षा और गुरुद्वारों के प्रबंधों में सुधार करना तथा नशे में डूब रहे युवाओं को बचाना भी मुख्य तौर पर शामिल है।
प्र:एक तरफ आप पूरे विश्व में धर्म के प्रचार का दावा करते हैं तो फिर गुरबाणी का प्रसारण सिर्फ एक टी.वी. चैनल तक ही सीमित क्यों?
उ :मेरे मुताबिक गुरबाणी का प्रसारण सोशल मीडिया समेत हर जगह होना चाहिए। मैं पुराने प्रबंधों की जांच करूंगा और बदलाव बारे भी विचार किया जाएगा। मेरा मानना है कि सिखी का हर क्षेत्र में विस्तार होना चाहिए।
प्र:आज सिख भाईचारे के लोग एस.जी.पी.सी. प्रधान को गोलक का प्रधान बताते हैं, आप सिख संस्था प्रति गुम हो चुके विश्वास को
कैसे बहाल करोगे?
उ:मैंने समिति के सभी अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि पूरा काम पारदर्शी तरीके के साथ होना चाहिए। यदि मैं भी कुछ गलत करता हूं तो उसे रोका
जाए। मेरी सोच है कि सिखों में इस संस्था का प्रभाव अच्छा बना रहना चाहिए।
प्र:550 साला के लिए आपकी तैयारी किस तरह की है?
उ:हमारी तैयारी पूरी है। हम सुल्तानपुर लोधी में बड़े स्तर पर इंतजाम कर रहे हैं। हमारी तरफ से पाकिस्तान के साथ भी 550 साला मनाने बारे संवाद चल रहा है। बाकी हमने 2018 का पूरा साल ही 550 साला को समॢपत किया है, जिस दौरान अलग-अलग समारोह करवाए जाएंगे।
प्र:आप पर किसी जमीन घोटाले का भी आरोप लग रहा है, असली घटना क्या है?
उ:कोई घोटाला नहीं किया गया। यह सिर्फ मेरे विरोधी झूठा प्रचार कर रहे हैं। हमारे पास शिरोमणि कमेटी की जमीन है जिस बारे एस.जी.पी.सी. मैंबर उदय सिंह ने कहा था कि इस जमीन पर कोई कालेज या संत लौंगोवाल जी की यादगार बना ली जाए परंतु जैसे ही इस मशविरे पर सवाल होने लगे तो हमने हाथ जोड़ कर माफी मांग ली और बात ठप्प कर दी।
प्र:आप सिख धर्म पर डेरावाद के प्रभाव को महसूस करते हो?
उ :मैं समझता हूं कि डेरावाद होना ही नहीं चाहिए क्योंकि हमारा गुरु तो साहिब श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी हैं।
प्र.:धर्म तो निष्पक्षता की शिक्षा देता है परंतु राजनीतिक कक्षाएं तो जातिवाद को स्वीकृति दे रही हैं, फिर पंथक किस तरह हुई?
उ.:मैं समझता हूं कि यह सब खत्म होना चाहिए। सिख धर्म जाति भेदभाव में विश्वास नहीं रखता। पंथक का मतलब विशाल होता है, सभी संप्रदाय भी पंथ के साथ चलते हैं। गुरु नानक देव जी ङ्क्षहदुओं के पास भी गए, मुसलमान के पास भी गए, जोगियों के पास भी गए। उन्होंने सभी को अच्छा इंसान बनने की शिक्षा दी है।
डेरा सिरसा विवाद पर कुछ नहीं बोले एस.जी.पी.सी. प्रधान
प्र: कुछ पंथक दलों का कहना है कि डेरे जाने वाले एस.जी.पी.सी. मैंबर को प्रधान कैसे बना दिया गया?
उ: देखो विरोध करने वाले कोई भी मुद्दा ढूंढ लेते हैं।
प्र: आप डेरा सिरसा गए थे या नहीं?
उ: यह मामला श्री अकाल तख्त साहब के पास है, जो उन्होंने फैसला किया मुझे मंजूर है।
प्र: पहले आपका बयान आया था कि आप डेरा सिरसा नहीं गए, इसका मतलब सजा गलत लगाई गई है?
उ: मैंने सारा मामला श्री अकाल तख्त के सामने रखा है और श्री अकाल तख्त साहिब जी का आदेश माना है। जो हर सिख मानता है।
प्र: वैसे आप डेरा सिरसा गए थे या नहीं, संगत को भी बताएं?
उ: मैं जत्थेदार साहिब को बता चुका हूं। जो फैसला हुआ वह ठीक है।
प्र:आप मानते हो कि सिखों के डेरावाद की तरफ झुकाव का बड़ा कारण यह भी है कि उन्हें गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों या सिख राजनीति में उपयुक्त स्थान नहीं दिया गया?
उ :आपकी बात ठीक है। परंतु हम भी चाहते हैं कि डेरावाद की तरफ गए सिखों को फिर से सिख धर्म में वापस आने को प्रेरित किया जाए।
प्र:विदेशों में बसते सिखों को एस.जी.पी.सी. में कोई प्रतिनिधित्व क्यों नहीं दिया जाता?
उ:हम विदेशों में बसते सिखों के साथ भी हर मसले पर बात करेंगे, जिस तरह का मुद्दा होगा, उसका हल भी निकाला जाएगा।
प्र:आज भी विदेशों में सिखों के साथ नसली भेदभाव हो रहा है, क्या कारण मानते हो?
उ:इस बारे हम प्रवासी सिखों के साथ बात करके ही पता लगावाएंगे।
प्र:सिख भाईचारे में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के गुरुपर्व को लेकर काफी अनिश्चितता बनी हुई है, क्या कहोगे?
उ:जो श्री अकाल तख्त साहिब जी फैसला करेगा वही मानेंगे।
प्र:नानकशाही कैलेंडर को लेकर भी काफी असमंजस की स्थिति बनी हुई है, इस बारे क्या करोगे?
उ:यह मसला भी श्री अकाल तख्त साहिब के पास है, वहां से ही फैसला होगा।
प्र:आज पंथक नेता हरनाम सिंह धुम्मा और भाई रणजीत सिंह ढडरियां वालों में टकराव चल रहा है, आप इसे सुलझाने की क्या कोशिश करोगे?
उ:सबसे पहले हमने गुरु साहिब के आगे अरदास ही की है कि सारा सिख भाईचारा इक_ा हो। बाकी मैं कोशिश करूंगा कि दोनों पक्षों का मसला हल करवाया जा सके।
प्र:भाई रणजीत सिंह ढडरियां वाले का सिख पंथ में कोई योगदान मानते हो?
उ:उनका बहुत योगदान है, बड़ी संख्या में संगत को अमृत छकाने में वह अहम हिस्सा बने हैं।