Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Nov, 2017 10:28 AM
निगम चुनावों से पहले हलका विधायकों की कार्यप्रणाली को लेकर कांग्रेसी वर्करों व नेताओं में हताशा बढऩे लगी है। जमीनी स्तर पर कांग्रेसी वर्कर खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। एक तरफ सत्ता में आने के बाद कोई सुनवाई न होने से जहां वर्कर पूरी तरह से हताश हो...
जालंधर (रविंदर शर्मा) : निगम चुनावों से पहले हलका विधायकों की कार्यप्रणाली को लेकर कांग्रेसी वर्करों व नेताओं में हताशा बढऩे लगी है। जमीनी स्तर पर कांग्रेसी वर्कर खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है। एक तरफ सत्ता में आने के बाद कोई सुनवाई न होने से जहां वर्कर पूरी तरह से हताश हो चुका है, वहीं वार्डबंदी से नाखुश नेता भी खासे नाराज चल रहे हैं। हालात यह हैं कि टिकट के दावेदार विधायकों के दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं तो विधायक हाईकमान में कोई पूछ न होने की बात कहकर वर्करों व नेताओं को निराश लौटा रहे हैं। स्थिति बेहद विकट बनी हुई है और वर्करों ने तो निगम चुनावों में प्रचार तक न करने की धमकी विधायकों को दे दी है।
विधानसभा चुनावों के बाद नगर निगम चुनाव विधायकों के लिए पूरी तरह से अग्निपरीक्षा होंगे। राजिंद्र बेरी, सुशील रिंकू व बावा हैनरी पहली बार विधायक बने हैं तो परगट सिंह दूसरी पारी खेल रहे हैं। ऐसे में इन विधायकों की साख भी नगर निगम चुनावों में दांव पर लगेगी। जिस विधायक के इलाके से ज्यादा पार्षद जीतेंगे, उसका रूतबा राजनीति में बढ़ेगा और वह अपनी मर्जी का मेयर बनवाने में भी कामयाब होगा और जिस विधायक के इलाके से सबसे कम पार्षद जीतेंगे, उसका राजनीतिक करियर डोल सकता है।
नई वार्डबंदी ने सभी विधायकों के साथ-साथ पार्षद की टिकट के दावेदारों के समीकरण भी बिगाड़ कर रख दिए हैं। कई जनरल वार्ड रिजर्व कर दिए गए हैं,जिससे कई बड़े नेताओं को घर बैठने पर मजबूर होना पड़ेगा। ऐसे में निराश व नाराज नेता लगातार पार्टी से दूरी बना रहे हैं और इसका खमियाजा कांग्रेस को निगम चुनावों में भुगतना पड़ सकता है। वार्डबंदी के हालात तो ऐसे हैं कि विधायकों को भी अभी तक कुछ समझ नहीं आ रहा। विधायकों का तो यहां तक आरोप है कि न तो सरकार में कोई सुनवाई हो रही है और न ही लोकल बॉडी में उनकी कोई सुन रहा है। दूसरी तरफ किसी भी तरह का कोई काम न होने से वर्करों में लगातार हताशा बढ़ रही है।
वर्करों का कहना है कि अकाली-भाजपा के 10 साल के राज में उन्होंने लाठियां खाई और सत्तासुख अब बड़े नेता भोग रहे हैं। कांग्रेस की सरकार आने पर भी उनके दिन नहीं बदले और उनकी सरकार के किसी भी दरबार या सरकारी दफ्तर में कोई सुनवाई नहीं है। हताश वर्कर ने कांग्रेस भवन, विधायकों के दरबार से पूरी तरह दूरी बना ली है, जिसका नुक्सान पार्टी को निगम चुनावों में उठाना पड़ सकता है।