Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jan, 2018 08:12 AM
बेशक खेती का धंधा किसानों के लिए लाभदायक नहीं रहा, पर फिर भी मजबूरी में खेती करना अनिवार्य है क्योंकि खेती करना किसान के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा ही है। कृषक खेती से ही अपना घर चलाता है, अन्य धंधे के बारे में उसे कोई ज्ञान नहीं। फसल आने से पहले ही...
बठिंडा (विजय/आजाद): बेशक खेती का धंधा किसानों के लिए लाभदायक नहीं रहा, पर फिर भी मजबूरी में खेती करना अनिवार्य है क्योंकि खेती करना किसान के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा ही है। कृषक खेती से ही अपना घर चलाता है, अन्य धंधे के बारे में उसे कोई ज्ञान नहीं। फसल आने से पहले ही किसान को कर्ज की जरूरत पड़ती है जिसे वह बैंकों, आढ़तियों व साहूकारों पर निर्भर होना पड़ता है। फसली चक्र में फंसे किसान को जानकारी नहीं कि वह इसकी बजाय कुछ और भी बीज सकता है।
जैवित खेती किसान के लिए पूरी तरह लाभदायक हो सकती है अगर उसे अपनाया जाए। बेशक इस पर खर्च अधिक है लेकिन नफा भी कम नहीं। कृषि यूनिवर्सिटियां इस बात को लेकर असफल रहीं कि किसान को फसली चक्र से निकालकर जैविक खेती की ओर आकॢषत किया जाए, न ही खेती विज्ञानियों ने कभी इस संबंध में जागरूकता शिविर लगाए। 60 के दशक में शुरू हुई हरित क्रांति के बाद पंजाब खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हो गया। हरित क्रांति के माध्यम से किसानों को उन्नत तकनीक, बीज और रासायनिक खाद उपलब्ध कराई गई। फिर देखते ही देखते हरित क्रांति ने खाद्यान्न उत्पादन के मामले में पंजाब को पहला राज्य बना दिया लेकिन आज पंजाब को इस हरित क्रांति की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। हरित क्रांति के नाम पर खेती में कीटनाशकों और खाद के रूप में रसायनों का जमकर प्रयोग किया गया। इन रसायनों ने पंजाब के किसानों का उत्पादन तो बढ़ाया लेकिन खेती में अधिक मात्रा में रसायनों के प्रयोग से मिट्टी में उपस्थित प्राकृतिक उर्वरकता धीरे धीरे क्षीण होती चली गई।
मालवा में सबसे अधिक किसान करते हैं आत्महत्याएंं
रिपोर्ट पर गौर करें तो मालवा में सबसे ज्यादा आत्महत्या के मामले होते हैं और इसी एरिया में सबसे ज्यादा उर्वरक का प्रयोग किया जाता है। अगर जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाए तो यह किसान की आत्महत्या को कम करने में बहुत कारगर साबित हो सकता है क्योंकि इस विधि से खेती करने के तात्कालिक फायदे तो हैं ही, साथ ही इसके दूरगामी फायदे भी हैं। इसके बावजूद सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने पर ध्यान नहीं दे रही है। यहां तक कि केंद्र सरकार की जो योजना है उसको भी बढ़ावा नहीं दे रही है। इसी का नतीजा है कि आज मालवा एरिया में सिर्फ 300 किसान जैविक खेती करते हैं जिसमें से 10 ही ऐसे होंगे जो पूर्ण रूप से जैविक खेती कर रहे हैं जो नाममात्र ही कहा जा सकता है।
क्या है जैविक खेती?
जैविक खेती का तरीका यह है कि इसमें रासायनिक उर्वरकों कीटनाशकों के स्थान पर कुदरती खाद का प्रयोग किया जाता है। जैसे गोबर की खाद, हरी खाद, जीवाणु कल्चर के अलावा बायो-पैस्टीसाइड व बायो एजैंट जैसे क्राईसोपा आदि का प्रयोग किया जाता है। इससे न केवल भूमि की पैदावार शक्ति लंबे समय तक बनी रहती है बल्कि पर्यावरण भी संतुलित रहता है और कृषि लागत घटने व उत्पाद की गुणवत्ता बढऩे से कृषक को अधिक लाभ भी मिलता है।
जैविक खाद्य पदार्थ के नाम पर हो रही लूट
जैविक खाद्य पदार्थ के नाम पर शहर में ग्राहकों को लूटा जा रहा है। साधारण खाद्य पदार्थ जैविक खाद्य पदार्थ कह कर धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। देश भर में अधिकतर ऑर्गैनिक फूड की मांग बढ़ रही है जिससे बड़ी कम्पनियां खूब मुनाफा कमा रही हैं। अगर किसान इस ओर गंभीर होता है तो पूंजीपतियों के हाथ लगने वाला पैसा किसान की जेब में आ सकता है। कई कम्पनियां तो इस मामले में ग्राहकों को धोखा भी दे रही हैं क्योंकि दालें, चने, गेहूं, फल-सब्जियां सभी किसानों का उत्पादन हैं और उन्हें साफ कर अच्छी पैकिंग में भरा जाता है तथा मनमर्जी से पैसे वसूल किए जाते हैं। खरीदने वाले को मालूम नहीं होता कि वह साधारण खाद्यान्न खरीद रहा है या जैविक खेती से बने पदार्थ हैं।
किसानों की आर्थिक मजबूती के लिए जैविक खेती विकल्प : सुरिंद्र सिंह
किसानों को अगर आर्थिक तौर पर मजबूत करना है तो विदेशी तर्ज पर जैविक खेती ही एक ऐसा विकल्प है जिससे किसान खुशहाल होगा व लोगों को भी इसका फायदा होगा। खेती विरासत से जुड़े सुरिंद्र सिंह का मानना है कि विकल्प के रूप में अगर किसानों को जैविक खेती की ट्रेनिंग दी जाए तो देश को और आगे बढऩे से कोई नहीं रोक सकता। विकसित देश भी जैविक खेती पर निर्भर हैं और वे दूसरे देशों को बड़ी मात्रा में ऑर्गैनिक फूड का निर्यात कर रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय कीटनाशक कम्पनियों के दबाव में केंद्र व राज्य सरकारें जैविक खेती को बढ़ावा नहीं दे रहीं, जिससे सरकार की दुर्दशा हो रही है।