Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Jan, 2018 12:01 PM
केंद्र सरकार द्वारा तानाशाही रवैया अपनाते हुए प्राइवेट डाक्टरों पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एन.एम.सी.) थोपे जाने को लेकर बठिंडा के निजी डाक्टरों ने मंगलवार का दिन ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया और सभी निजी अस्पतालों ने ओ.पी.डी. सेवाएं बंद रखीं। पहले...
बठिंडा (विजय): केंद्र सरकार द्वारा तानाशाही रवैया अपनाते हुए प्राइवेट डाक्टरों पर राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एन.एम.सी.) थोपे जाने को लेकर बठिंडा के निजी डाक्टरों ने मंगलवार का दिन ‘काला दिवस’ के रूप में मनाया और सभी निजी अस्पतालों ने ओ.पी.डी. सेवाएं बंद रखीं। पहले सभी डाक्टर इंडियन मैडीकल कौंसिल के अधीन थे, लेकिन सरकार इस भ्रष्ट संस्था को खत्म कर एन.एम.सी. लाना चाहती है।
छोटे व बड़े अस्पतालों में एमरजैंसी सेवाएं जारी रहीं, जिससे दुर्घटना सहित जानलेवा बीमारियों से पीड़ित मरीजों का इलाज चलता रहा, लेकिन पेट दर्द, नजला, जुखाम, सिरदर्द वाले मरीजों के लिए आज का दिन कयामत भरा था। केंद्र सरकार के इस नादिरशाही बिल को लेकर भारतीय चिकित्सा संघ बठिंडा इकाई ने आज डयून्स क्लब में आम बैठक आयोजित की, जिसमें 400 से अधिक सदस्य डाक्टरों में से लगभग 3 दर्जन डाक्टरों ने ही हिस्सा लिया, जबकि अन्य डाक्टर नियमित उपचार करते रहे। आई.एम.ए. ने एन.एम.सी. बिल के विरोध में केंद्र सरकार के विरुद्ध नारेबाजी की और जिलाधीश को ज्ञापन सौंपा, जिसमें केंद्र सरकार से अपील की गई कि बिल को संसद में लाने से पहले इसकी समीक्षा की जाए। डाक्टरों का आरोप था कि केंद्र सरकार के तुगलकी फरमान से जहां चिकित्सा सेवाएं महंगी होंगी, वहीं यह बिल डाक्टरों पर भी भारी पड़ेगा।
एम.बी.बी.एस. करने के बाद डाक्टर की डिग्री प्राप्त होने के बावजूद वे प्रैक्टिस नहीं कर सकते, जिसके लिए उन्हें एक टैस्ट क्लीयर करना जरूरी होगा। आम तौर पर यह टैस्ट पहले भी था लेकिन उन डाक्टरों पर ही लागू था जो रूस व अन्य देशों से डाक्टर की डिग्री हासिल कर आते थे। बिल के अनुसार आयुर्वैदिक व होम्योपैथिक डाक्टरों को केवल 6 माह का कोर्स करने के बाद एलोपैथिक दवाइयां लिखने का अधिकार प्राप्त होगा। देखा जाए तो केंद्र सरकार इस बिल के जरिए आर.एम.पी. डाक्टरों को खत्म कर उनके स्थान पर पढ़े-लिखे डाक्टरों को लाना चाहती है। इस बिल को लेकर ही आई.एम.ए. ने अपना देश भर में विरोध जताया।