Edited By Punjab Kesari,Updated: 05 Jan, 2018 02:34 PM
एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान में तेजी लाते हुए जिला प्रशासन लड़के-लड़की के लिंगानुपात में बढ़ौतरी करने के कई प्रयास कर रहा है, वहीं बेटी को कोख में मारने वाले लोग अपनी विचारधारा बदलने का नाम नहीं ले रहे हैं।
अमृतसर (नीरज): एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान में तेजी लाते हुए जिला प्रशासन लड़के-लड़की के लिंगानुपात में बढ़ौतरी करने के कई प्रयास कर रहा है, वहीं बेटी को कोख में मारने वाले लोग अपनी विचारधारा बदलने का नाम नहीं ले रहे हैं। प्रशासन द्वारा स्थानीय रैड क्रास दफ्तर में स्थापित किए पंघूड़े में आने वाले बच्चों के आंकड़ों से पता चलता है कि आज पंघूड़े ने 133वीं बच्ची की जान बचाई है। अब तक कुल 154 बच्चों की जान पंघूड़ा बचा चुका है। इन 154 बच्चों में 21 लड़के हैं।
पंघूड़े में आई इस नवजात बच्ची को असिस्टैंट कमिश्नर अलका कालिया व एस.डी.एम. विकास हीरा की तरफ से रिसीव किया गया और लापा स्कीम तहत स्वामी गंगानंद भूरी वाले फाऊंडेशन धाम में भेजने की तैयारी की गई। एस.डी.एम. विकास हीरा ने प्रशासन की तरफ से चलाई जा रही पंघूड़ा योजना की जहां तारीफ की, वहीं पंघूड़े में लगातार नवजात बच्चियों की बढ़ रही संख्या पर भी चिंता व्यक्त की है। हीरा ने कहा कि पंघूड़े में 133 बच्चियों की आमद से पता चलता है कि आज भी कुछ लोग बेटी के जन्म को अच्छा नहीं समझते हैं, लोगों को अपनी सोच बदलने की जरूरत है। लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों से आगे हैं व कुछ क्षेत्रों में तो लड़कों से भी आगे बढ़कर काम कर रही हैं। असिस्टैंट कमिश्रर अलका कालिया ने कहा कि प्रशासन नवजात बच्चियों की जन्म दर में बढ़ौतरी करने के सख्त प्रयास कर रहा है, लेकिन इस अभियान को सफल बनाने के लिए लोगों को भी अपनी सोच बदलने की जरूरत है।
डी.सी. काहन सिंह पन्नू ने की थी पंघूड़े की स्थापना
रैडक्रास दफ्तर में स्थापित पंघूड़े के इतिहास की बात करें तो अमृतसर जिले के पूर्व डी.सी. व मौजूदा चेयरमैन पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड काहन सिंह पन्नू ने वर्ष 2008 में पंघूड़ा उस समय स्थापित किया था, जब आए दिन नवजात बच्चियों के शव कूड़े के ढेर, गटर या फिर किसी सुनसान इलाके में मिलते थे। लावारिस फैंकी गई बच्चियों के शवों को कुत्ते या फिर दूसरे जानवर नोच-नोच कर खा जाते थे। पंघूड़े की स्थापना किए जाने के बाद से बच्चियों के लावारिस शव मिलने की घटनाएं काफी कम हो गई हैं। लोग बच्ची को मारने या फैंकने की बजाय पंघूड़े में डाल जाते हैं। इनमें कुछ ऐसे माता-पिता भी हैं, जो अपने बच्चे को पाल-पोस नहीं सकते हैं। डी.सी. काहन सिंह की तरफ से स्थापित पंघूड़े को देखकर पंजाब के अन्य जिलों में भी रैड क्रास दफ्तरों में पंघूड़े स्थापित किए गए और आज कई जिलों में पंघूड़ा योजना सफलतापूर्वक चल रही है।
पंघूड़े में बच्चा डालते ही बज उठती है घंटी
रैडक्रास दफ्तर में स्थापित पंघूड़े में बच्चा पहुंचाने की प्रक्रिया भी आसान है। रैड क्रास दफ्तर के बाहर पंघूड़ा स्थापित किया गया है, जिसके नीचे एक घंटी लगी हुई है, जैसे ही कोई व्यक्ति किसी बच्चे को पंघूड़े में डालता है तो वह घंटी बज उठती है, जिससे रैड क्रास दफ्तर के अन्दर 24 घंटे तैनात रहने वाले कर्मचारियों को पता चल जाता है कि कोई बच्चा आ गया है। इसके अलावा बच्चा रखने वाले का नाम व पता भी गुप्त रखा जाता है, हालांकि आज तक किसी भी व्यक्ति ने सामने आकर पंघूड़े में बच्चा नहीं डाला है।
पंघूड़े ने जरूरतमंद अभिभावकों की पूरी की मुराद
डी.सी. काहन सिंह पन्नू के स्थापित पंघूड़े ने जहां नवजात बच्चियों की जान बचाई तो वहीं औलाद के लिए तरस रहे अभिभावकों के अरमान भी पूरे किए हैं। पंघूड़े में आने वाले सभी बच्चों चाहे लड़का हो या लड़की सभी को रैड क्रास दफ्तर द्वारा स्वामी गंगानंद भूरी वाला धाम में कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद भेज दिया जाता है। इस ट्रस्ट आर्थिक रूप से संपन्न अभिभावकों के सुपुर्द कर देता है, जिन्होंने बच्ची गोद लेने के लिए आवेदन दिया होता है।
बच्ची गोद देने से पहले ट्रस्ट की तरफ से गोद लेने वाले अभिभावकों की बकायदा प्रॉपर्टी व कमाई चैक की जाती है, ताकि इस बात को यकीनी बनाया जाए कि जिन लोगों को बच्चा गोद दिया है, वे उसे अच्छी तरह से पाल-पोस सकते हैं या फिर नहीं। रैड क्रास से मिली जानकारी के अनुसार आज अमृतसर के पंघूड़े से गए बच्चे दिल्ली, मुंबई सहित पंजाब के अन्य महानगरों में आर्थिक रुप से संपन्न अभिभावकों के चिराग बन चुके हैं। इसका सारा श्रेय जिला प्रशासन व रैड क्रास को ही जाता है।