Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Nov, 2017 12:06 AM
तेलंगाना के 20 लाख किसानों को इस हफ्ते 24 घंटे मुफ्त बिजली मिलेगी। राज्य सरकार ने किसानों को मुफ्त बिजली देने की अपनी योजना के तहत एक हफ्ते का यह ट्रायल सोमवार से शुरू कर दिया है। इससे राज्य के 23 लाख किसानों को फायदा मिलेगा। देश में वोट की राजनीति...
जालंधर(पाहवा): तेलंगाना के 20 लाख किसानों को इस हफ्ते 24 घंटे मुफ्त बिजली मिलेगी। राज्य सरकार ने किसानों को मुफ्त बिजली देने की अपनी योजना के तहत एक हफ्ते का यह ट्रायल सोमवार से शुरू कर दिया है। इससे राज्य के 23 लाख किसानों को फायदा मिलेगा। देश में वोट की राजनीति के तहत इस प्रकार की सुविधाएं दी तो जा रही हैं लेकिन इसका असर क्या हो रहा है, उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में इस सबसिडी के खेल ने चुनावी रणनीति बनाने में अहम भूमिका निभाई है। इस वोट बैंक की आड़ में दिए जा रहे इस प्रकार के लालच हमारी आने वाली नस्लों पर कितने भारी पडऩे वाले हैं, कोई नहीं जानता। अगर कोई जानता भी है, उसे लेकर किसी को ङ्क्षचता नहीं है। पंजाब की ही अगर बात की जाए तो मुफ्त की किसानों को दी जा रही बिजली के कारण भूमिगत जल स्तर में कितनी गिरावट आ रही है, उसे लेकर चंद लोगों के सिवाए किसी को चिंता नहीं है।
इंडिया साइंस वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक गिरते भूमिगत जल स्तर का सीधा संबंध फसल पद्धति से पाया गया है। इसके अनुसार राज्य में भूमिगत जल स्तर पर गहराते संकट के लिए चावल की फसल सबसे अधिक जिम्मेदार है। चावल की खेती में सबसे अधिक पानी का उपयोग होता है। इसमें गन्ने के मुकाबले 45 प्रतिशत और मक्के की अपेक्षा 88 प्रतिशत तक अधिक भूजल की खपत होती है। अध्ययन में सामने आया है कि बिजली पर सबसिडी मिलने के कारण किसान चावल की फसल का क्षेत्र बढ़ाते जा रहे हैं।
शोधकत्र्ताओं के मुताबिक 1980-81 में पंजाब में चावल की खेती 18 प्रतिशत क्षेत्र में ही होती थी, लेकिन राज्य सरकार द्वारा भारी सबसिडी देने की घोषणा के बाद 2012-13 में इसमें 36 प्रतिशत तक बढ़ौतरी हो गई। इंडिया साइंस वायर के मुताबिक अध्ययनकत्र्ताओं का कहना है कि फसल उत्पादन में प्रति घन मीटर खर्च होने वाले पानी के लिहाज से देखें तो अन्य फसलों की अपेक्षा चावल की खेती पंजाब के बिल्कुल भी ठीक नहीं है और इसीलिए राज्य के किसानों को चावल से ज्यादा अन्य फसलों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
राज्य सरकार ने भविष्य में भूजल के स्तर में गिरावट से चिंतित होकर ही 2009 में भूमिगत जल के उपयोग के नियमन के लिए कानून भी बनाया था लेकिन, इस पर सख्ती से अमल नहीं किया गया। इस वजह से इस नियम के बावजूद जलस्तर में गिरावट लगातार जारी है। बिजली सबसिडी से सरकारी खजाने पर पडऩे वाले बोझ की बात करें तो पंजाब सरकार ने 1997 में किसानों के लिए बिजली सबसिडी की योजना शुरू की थी। बताया जाता है कि इसके बाद 2016-17 में राज्य सरकार का ऊर्जा सबसिडी बिल 5,600 करोड़ रुपए रहा। मौजूदा वित्त वर्ष में यह बढ़कर 10 हजार करोड़ रुपए हो गया है। इसमें बिजली के लिए कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली सर्वाधिक 7,660 करोड़ रुपए की रियायत शामिल है।