Edited By Updated: 09 Dec, 2016 04:12 PM
घर की दहलीज लांघकर स्टेज पर चढऩा, अंजान लोगों के सामने न चाहते हुए भी नाचना, नशे में धुत्त लोगों के फिकरे बर्दाश्त करना, लोगों द्वारा छूने
भटिंडा: घर की दहलीज लांघकर स्टेज पर चढऩा, अंजान लोगों के सामने न चाहते हुए भी नाचना, नशे में धुत्त लोगों के फिकरे बर्दाश्त करना, लोगों द्वारा छूने को सहन करना यह सब उनका शौक नहीं बल्कि मजबूरी है। कठिन परिस्थितियों और घर के दयनीय हालातों ने उन्हें मासूम लड़कियों से डांसर बना दिया है। डांसर, आज के दौर का एक ऐसा पेशा बन गया है जिसे लोग इज्जत की नजरों से नहीं देखते, बल्कि उन्हें घटिया किस्म का दर्जा दे देते हैं। डांसर लड़कियां फिर भी सब कुछ सहन करती हैं, क्योंकि उन्हें लोगों के फिकरों और गंदी नजरों से कहीं ज्यादा घर में भूखे बैठे भाई-बहन और बीमार मां-बाप का ध्यान होता है। ये लड़कियां भी अन्य लड़कियों की तरह इज्जत की जिंदगी जीना चाहती हैं, मगर हालातों ने उनसे यह हक छीन लिया है। आर्इए एक नजर डालते है डांसर का पेशा अपनाने वाली लड़कियों परः-
डांसर का पेशा गंदा नहीं, लोगों की सोच गंदी
गत 13 वर्षों से बतौर डांसर कार्यरत किरण बाला (23) महज 5वीं कक्षा तक पढ़ी हैं। पिता की मौत के बाद छोटी-सी उम्र में ही घर चलाने की जिम्मेदारी उस पर आ गई। अशिक्षा उसे डांसर के पेशे में खींच लाई। बीमार मां व 2 बेरोजगार भाइयों का जिम्मा उठा रही किरण कहती हैं कि नाचना एक कला है परन्तु लोग इसकी कद्र नहीं करते हैं बल्कि उनकी मजबूरी का नाजायज फायदा उठाने की फिराक में रहते हैं। डांसर का पेशा गंदा नहीं, लोगों की सोच गंदी है, जो बदलनी चाहिए।
‘बाजारू चीज’ समझते हैं लोग
गत 6 वर्षों से अमृतसर से आकर भटिंडा में काम कर रही पलक (24) पूर्णतया अशिक्षित है। वह न चाहते हुए भी इस पेशे में आ गई और अब उसे इससे बाहर निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा है। वह कहती है कि डांसरों को लोग इंसान नहीं, बल्कि ‘बाजारू चीज’ समझते हैं। बेहद बुरा लगता है जब लोग दारू पीकर स्टेज पर चढ़ जाते हैं और उन्हें छूने की कोशिश करते हैं। यह पेशा इतना भी बुरा नहीं, जितना लोगों की सोच ने बना दिया है।
बीमार पिता का करवाना है उपचार
भटिंडा की महक (25) के पिता सिर पर चोट लगने के कारण काम-काज करने में असमर्थ है। वह अपने पिता के उपचार के लिए कमाती है। उसी पर 5 बहनों व 2 भाइयों की भी जिम्मेदारी है। महक कहती है कि विवाह समागमों में असले पर पूर्णतया पाबंदी लगाई जानी चाहिए। यह असला कइयों की जान ले चुका है और यदि अब भी इस मामले में उचित कदम न उठाए गए तो आगे भी ऐसी घटनाएं घटती रहेंगी।
कमल पर छोटे भाइयों की जिम्मेदारी
तरनतारन की कमलजीत कौर मात्र 20 वर्ष की है लेकिन इतनी छोटी-सी उम्र में उस पर अपने छोटे 2 भाइयों की जिम्मेदारी है। माता गृहिणी है और पिता दिहाड़ीदार हैं। पिता को सहारा देने के लिए अपनी सहेली के साथ इस पेशे में आई कमल कहती है कि विवाह समागमों में असला व दारू का इस्तेमाल पूरी तरह बंद होना चाहिए। यही दोनों चीजें अक्सर अप्रिय घटनाओं का कारण बनती हैं और रंग में भंग डाल देती हैं।