300 करोड़ के जाली बिलों के स्कैम में फंसेंगे कई अधिकारी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 31 Oct, 2017 07:18 AM

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कुछ साल पहले करीब 300 करोड़ रुपए के जाली बिलों के मामले में प्रसिद्ध हुए ठाकुर कांड की दोबारा परतें खुलने से शहर के कई उद्योगपतियों और दुबई मार्का एक्सपोर्टज में हड़कम्प मच गया है। आने वाले समय में इस स्कैंडल की और परतें खुल सकती हैं, जिसमें कई...

जालंधर(खुराना):  कुछ साल पहले करीब 300 करोड़ रुपए के जाली बिलों के मामले में प्रसिद्ध हुए ठाकुर कांड की दोबारा परतें खुलने से शहर के कई उद्योगपतियों और दुबई मार्का एक्सपोर्टज में हड़कम्प मच गया है। आने वाले समय में इस स्कैंडल की और परतें खुल सकती हैं, जिसमें कई विभागों के सरकारी अधिकारी फंस सकते हैं, जिन्होंने जाली बिल काटने वाले उद्योगपति के साथ मिलीभगत कर न सिर्फ मामले को दबा दिया बल्कि शोकॉज नोटिस जारी करने की खानापूर्ति की औरबाद  में उन  नोटिसों को भी फाइलों में दबा दिया। 

कांग्रेसी नेता संजय सहगल ने इस ठाकुर कांड बारे विस्तार से शिकायत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली को कर दी है, जिसमें लिखा गया है कि किस प्रकार सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत से उद्योगपतियों द्वारा सरकारी राजस्व को चूना लगाया गया। श्री सहगल ने  इस कांड बारे शिकायत सैंट्रल एक्साइज के उच्चाधिकारियों और डी.आर.आई. हैडक्वार्टर में भी भेज दी है और साफ लिखा है कि जाली बिलों के आधार पर जिन उद्योगपतियों व निर्यातकों को सैंट्रल एक्साइज रिफंड जारी किए गए उनके विरुद्ध कड़ा एक्शन लिया जाए। संजय सहगल ने शिकायती पत्र में लिखा है कि सरकारी विभागों द्वारा ली गई एक्शन टेकन रिपोर्ट आर.टी.आई. के माध्यम से प्राप्त की जाएगी। पता चला है कि ठाकुर कांड की शिकायत ऊपर तक पहुंचते ही विभागीय अधिकारियों में हड़कम्प मच गया है और उन्होंने मामले से संबंधित फाइलों को खंगालना शुरू कर दिया है। 

डी.आर.आई. की कार्यप्रणाली पर संदेह : इस सारे मामले में जहां सैंट्रल एक्साइज विभाग के कई अधिकारी निशाने पर हैं, जिन्होंने मामले बारे लापरवाही बरती वहीं उद्योग जगत में डी.आर.आई. विभाग की कार्यप्रणाली पर भी ढेरों सवाल उठाए जा रहे हैं। गौरतलब है कि इस विभाग के पास ऐसी जालसाजी के कई सबूत हैं कई बार डी.आर.आई. द्वारा जालंधर में छापेमारी कर सैंकड़ों फाइलें कब्जे में ली जा चुकी हैं परंतु कई-कई साल डी.आर.आई. द्वारा ऐसे मामलों में कोई कार्रवाई नहीं की जाती। ठाकुर कांड में डी.आर.आई. के हाथ महत्वपूर्ण सुराग लगे थे जिनके आधार पर जाली बिल काटने वाले उद्योगपति के जाली परिसर पर छापेमारी भी की गई थी परंतु फिर भी मामले को दबा दिया गया। हैरानीजनक बात यह है कि शहर में दर्जनों बड़े यूनिट मिला लिए जाएं तो भी उनकी वार्षिक सेल 300 करोड़ नहीं बनती परंतु एक व्यक्ति मामूली सी फैक्टरी में 300 करोड़ की सेल दिखा जाता है परंतु विभाग फिर भी उसे हलके में लेता है। अब देखना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय तथा वित्त मंत्रालय तक शिकायतें पहुंचने के बाद डी.आर.आई. के उन अधिकारियों पर क्या कार्रवाई होती है, जो जालसाजी के सबूतों को बावजूद इसे गम्भीरता से नहीं लेते? 

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