नशे का दंश झेल रहे पंजाब के खिलाड़ी नहीं कर पाए हरियाणा का मुकाबला

Edited By Anjna,Updated: 20 Apr, 2018 07:19 AM

punjab not being able to cope with the drug addiction

एक समय जिस पंजाब की खेलों समेत हर फील्ड में अन्य राज्यों की तुलना में तूती बोलती थी, वही राज्य अब अपने से छोटे राज्यों के मुकाबले फिसड्डी साबित हो रहा है। कॉमनवैल्थ खेलों में पड़ोसी राज्य हरियाणा के खिलाडिय़ों ने अपने खूब जलवे बिखेरे तो वहीं उससे...

जालंधर (रविंदर): एक समय जिस पंजाब की खेलों समेत हर फील्ड में अन्य राज्यों की तुलना में तूती बोलती थी, वही राज्य अब अपने से छोटे राज्यों के मुकाबले फिसड्डी साबित हो रहा है। कॉमनवैल्थ खेलों में पड़ोसी राज्य हरियाणा के खिलाडिय़ों ने अपने खूब जलवे बिखेरे तो वहीं उससे बड़े राज्य पंजाब के खिलाड़ी मैडल लेने को तरसते दिखाई दिए। सिर्फ पंजाब की होनहार खिलाड़ी हिना सिद्धू ही ऐसी थी, जिसने शूटिंग मुकाबले में न केवल गोल्ड लेकर राज्य का नाम रोशन किया, बल्कि खुद सिंगल इवैंट में रजत पदक लेकर पंजाब का नाम रोशन किया। वहीं इसका मुकाबला पड़ोसी राज्य हरियाणा के साथ किया जाए तो पंजाब पूरी तरह से फिसड्डी नजर आता है क्योंकि पंजाब ने सिर्फ हिना सिद्धू के नाम पर एक गोल्ड मैडल प्राप्त किया तो हरियाणा के हिस्से कॉमनवैल्थ गेम्स में 9 गोल्ड मैडल, 6 रजन पदक और 7 कांस्य पदक आए। 

पंजाब की बात की जाए तो यहां हर साल खिलाडिय़ों पर 134 करोड़ रुपए खर्च किए जाते हैं ताकि प्रदेश के खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी बेहतर परफॉर्मैंस दिखा सकें मगर पिछले कुछ सालों से नशे का दंश झेल रहे राज्य के खिलाड़ी वह परफॉर्मैंस नहीं दे पा रहे हैं जो उनसे उम्मीद की जाती है। 2018 राष्ट्रमंडल खेलों में पंजाब से 28 खिलाड़ी खेल मैदान की शोभा बने थे मगर अकेली होनहार खिलाड़ी हिना सिद्धू ही ऐसी रही जिसने 2 अलग-अलग कैटागरी में न केवल देश की झोली में गोल्ड मैडल डाला बल्कि रजत पदक से भी देश की शोभा बढ़ाई।

इसके अलावा एथलैटिक्स में नवजीत कौर ने राज्य की झोली में कांस्य पदक डाला जबकि दूसरी तरफ बात की जाए अपने से छोटे पड़ोसी राज्य हरियाणा की तो उसने देश की शोभा ज्यादा बढ़ाई। हरियाणा के खिलाडिय़ों ने अपना दमखम दिखाते हुए देश की झोली में 9 स्वर्ण पदक, 6 रजत और 7 कांस्य पदक डाले। हैरानी की बात यह है कि एक तरफ जहां पंजाब हर साल अपने खिलाडिय़ों पर 134 करोड़ रुपए का बजट खर्च कर रहा है, वहीं हरियाणा इससे कम खर्च कर भी अपने खिलाडिय़ों की बेहतर परफॉर्मैंस अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिखा रहा है। 

खेल मंत्री व खेल नीति न होने का खामियाजा भुगत रहा है पंजाब
ऐसा नहीं है कि राज्य के खिलाड़ी अपना दमखम नहीं रखते हैं मगर सरकारी तौर पर भी खेल को ज्यादा अहमियत नहीं दी जा रही है। मौजूदा सरकार के हालात तो देखिए कि एक तरफ जहां नशे के खात्मे के लिए खेल को प्रोत्साहित करने की तरफ कई कदम बढ़ाए जा रहे हैं, मगर जमीनी हकीकत देखें तो राज्य में कोई खेल मंत्री तक नहीं है, जो खेल के प्रति कोई नीति बना सके। खेल नीति व खेल मंत्री न होने का असर यह है कि सरकारी स्तर पर किसी अधिकारी को यह भी पता नहीं है कि पंजाब से कितने खिलाड़ी राष्ट्रमंडल खेलों में गए थे और उनकी परफॉर्मैंस क्या रही। 

सरकार की खराब नीतियां खत्म कर रही हैं खेल को
चाहे पिछले 10 साल की अकाली-भाजपा सरकार हो या फिर पिछले 13 महीनों की कांग्रेस सरकार, किसी ने भी राज्य के खिलाडिय़ों के उत्थान के लिए कोई कदम नहीं उठाया। अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाडिय़ों के उत्थान की बजाय पंजाब सरकार अपने ही मसलों में उलझी रही और कभी भी राज्य सरकार ने खेल के उत्थान के लिए कोई काम नहीं किया। राज्य के खिलाड़ी व खेल प्रतिनिधि व कोच भी इस बात को मानते हैं कि राज्य सरकारों की खराब नीतियों के कारण खेल को नुक्सान हो रहा है। 

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