Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Sep, 2017 10:36 AM
नोटबंदी के बाद से दिनों-दिन गिरते आलू के रेटों कारण आलू उत्पादक संकट में फंसे हुए हैं। आलू की कीमतें गिरने से मंडियों में आलू की बिक्री को ब्रेक लग चुकी है।
भटिंडा (सुखविंद्र): नोटबंदी के बाद से दिनों-दिन गिरते आलू के रेटों कारण आलू उत्पादक संकट में फंसे हुए हैं। आलू की कीमतें गिरने से मंडियों में आलू की बिक्री को ब्रेक लग चुकी है। किसान भी अपने आलुओं को मंडियों में लाने से गुरेज कर रहे हैं। नोटबंदी से पहले 400 रुपए प्रति बोरी बिकने वाला आलू नोटबंदी के बाद 100 रुपए प्रति बोरी तक आ चुका है। आलू की कीमत गिरने से किसान भी स्टोरों से आलू उठाने को तैयार नहीं हैं। दूसरी ओर स्टोर खाली न होने के कारण स्टोर मालिक भी ङ्क्षचता में डूबे हुए हैं।
स्टोरों में 90 फीसदी आलू किसानों का
व्यापारियों द्वारा 10 फीसदी आलुओं की खरीद की गई थी जबकि 90 फीसदी आलू स्टोरों में किसानों का ही है। शायद यह पहली बार हुआ होगा जब इतनी बड़ी मात्रा में किसानों का आलू स्टोर में पड़ा है। आलू के सही मूल्य न मिलने के कारण किसानों व स्टोर मालिकों को बड़ा घाटा सहना पड़ सकता है।
स्टोरों में 70 फीसदी आलू बकाया
आलू की मांग कम होने के कारण अब तक 30 फीसदी आलू की बिक्री हो पाई है और अभी तक करीब 70 फीसदी आलू स्टोरों में जमा है। यदि इसी रफ्तार से आलू की बिक्री होती रही तो किसानों को इस वर्ष भी अपने आलू सड़कों पर फैंकने पड़ेंगे।
कमाई से बढ़ा खर्चा
आलू पर होने वाला खर्च कमाई से बढ़ चुका है। यदि कहा जाए तो आलू की प्रति बोरी पर बिना बीज का खर्च लगाए 180-200 रुपए का खर्च आता है जबकि कमाई 120-130 रुपए हो रही है। इसी प्रकार करीब 80-100 रुपए प्रति बोरी किसान की जेब से जा रहे हैं, जिस कारण किसान स्टोरों से आलू उठाने से परहेज कर रहे हैं।