Edited By Punjab Kesari,Updated: 30 Aug, 2017 12:52 PM
जनवरी से खाली पड़े यूनीपोलों के टैंडर लगा विज्ञापनबाजी का राजस्व जुटाने को लेकर लटक रहे जिस मुद्दे पर नगर निगम प्रशासन अब तक
लुधियाना (हितेश): जनवरी से खाली पड़े यूनीपोलों के टैंडर लगा विज्ञापनबाजी का राजस्व जुटाने को लेकर लटक रहे जिस मुद्दे पर नगर निगम प्रशासन अब तक कोई फैसला नहीं ले पाया था। उस मामले में अब लोकल बॉडीज मंत्री नवजोत सिद्धू द्वारा रोक लगाने के बावजूद एफ. एंड सी.सी. द्वारा प्रस्ताव पास कर दिया गया है। सिद्धू ने चार्ज संभालने के बाद कई बार यह आरोप लगाए कि अकाली-भाजपा सरकार के समय विज्ञापनबाजी के नाम पर बड़ा घोटाला हुआ है। इसके तहत खजाने की जगह सरकार के चहेतों को फायदा पहुंचा। उस पर रोक लगाने के लिए नई विज्ञापन पॉलिसी बनाने का ऐलान करने वाले सिद्धू ने कई 100 करोड़़ का राजस्व जुटाने का दावा भी किया हुआ है। यह प्रक्रिया मुकम्मल होने से पहले उन्होंने नगर निगमों को कोई नया विज्ञापन टैंडर लगाने या अलॉटमैंट करने से रोक दिया है। इसके बावजूद एफ. एंड सी.सी. की पिछले दिनों हुई मीटिंग में यूनीपोलों के नए टैंडर लगाने का प्रस्ताव पास कर दिया है। हालांकि उस पर कोई अगली कार्रवाई करने से पहले एक बार फिर सरकार की मंजूरी मांगी जाएगी।
पिछली सरकार से भी नहीं मिले पूरे चार्जिस
अकाली-भाजपा सरकार ने अपनी उपलब्धियों व नीतियों को पब्लिक तक पहुंचाने के लिए विधानसभा चुनावों से पहले सरकारी मीडिया का सहारा भी लिया था। इसके तहत नगर निगम के जरिए प्रमुख सड़कों पर 80 नए यूनीपोल भी लगवाए गए। जिन पर रिजर्व प्राइस व टैक्स देने के बदले सरकारी विज्ञापन लगाए गए। जिनको चुनावों का कोड लगने से पहले से उतार दिया गया लेकिन अब तक सरकार से पूरी फीस नहीं आई है।
जनवरी से हो रहा दोहरा नुक्सान
यहां बताना उचित होगा कि जनवरी से खाली पड़े निगम के 80 यूनीपोलों के टैंडर अब तक नहीं लग पाए हैं। इस कारण इन यूनीपोलों पर विज्ञापन लगाने के बदले कम्पनियों से मिलने वाला राजस्व तो रुका ही हुआ है। वहां लगी लाइटों का बिजली का बिल निगम को भरना पड़ रहा है और जागरूकता के नाम पर लोग मुफ्त में विज्ञापनबाजी कर रहे हैं।
देरी के लिए जिम्मेदार कौन
अफसरों की मानें तो पहले चुनावी कोड लगा होने कारण समय निकल गया और चुनावी प्रक्रिया से फारिग होने के बाद उन्होंने यूनीपोलों पर विज्ञापन लगाने के अधिकार देने बारे नया टैंडर लगाने की योजना फाइनल कर दी थी। जो कमिश्नर के जरिए मेयर के पास पहुंचने के काफी समय के बाद तक एफ. एंड सी.सी. की मंजूरी के इंतजार में पैंडिंग पड़ी रही। जो प्रस्ताव 27 जुलाई की मीटिंग के एजैंडे में शामिल हुआ तो कार्रवाई ही रद्द कर दी गई। उसके एक महीना बाद जाकर दोबारा मीटिंग की गई।
एंटीसिपेशन का प्रयोग न करने पर उठ रहे सवाल
निगम के रैवेन्यू से जुड़े विज्ञापन टैंडर लगाने के लिए एंटीसिपेशन के तहत मंजूरी न दिए जाने को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं क्योंकि हाल ही में एफ. एंड सी.सी. की मीटिंग रखने के बावजूद मेयर ने कुछ दिन पहले ही एंटीसिपेशन के तहत पार्किंग साइटों के लिए टैंडर लगाने की मंजूरी दी गई थी। इस मामले में एक चुनिंदा ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के मुद्दे पर डिप्टी मेयर आर.डी. शर्मा ने मेयर के खिलाफ खुलेआम मोर्चा खोल दिया था। जो शिकायत सरकार पर पहुंचने के चलते पहले टैंडरों पर रोक लगी और अब पुरानी शर्तें ही लागू करने का आदेश आ गया। उसके बाद पार्किंग साइटों को 3 महीने के लिए पुराने ठेकेदारों को एक्सटैंशन देने का प्रस्ताव भी एंटीसिपेशन के तहत ही पास हुआ। फिर भी किसी ने यूनीपोलों के टैंडर से जुड़ी फाइल को हाथ नहीं लगाया।
2013 से लटक रहा है मामला
विज्ञापनबाजी संबंधी टैंडर लगाने का मामला 2013 से लटक रहा है। जब पूरे शहर की साइटों पर विज्ञापन लगाने बारे दिए अधिकारों का एग्रीमैंट खत्म होने पर यह
कहकर एक्सटैंशन नहीं दी गई कि 2012 में जारी हुई पॉलिसी के मुताबिक मास्टर प्लान बनाया जा रहा है। उसके आधार पर 2013 में एक कम्पनी को 20 साल के लिए लगभग फ्री में विज्ञापन राइट्स देने का प्रस्ताव जनरल हाऊस में पेश किया गया तो विपक्षी पार्षदों के अलावा भाजपा के भारी विरोध की भेंट चढ़ गया। उसके बाद एक साल तक विज्ञापन बायलाज बनने का इंतजार किया गया और फिर 1.40 करोड़़ लेने वाली कम्पनी ने मास्टर प्लान फाइनल करने में काफी समय लगा दिया। इसके आधार पर 2014 में 6 महीने के लिए लगाए टैंडर 2.52 करोड़ की पेशकश आने के बावजूद वर्क ऑर्डर जारी नहीं किया।