Edited By Punjab Kesari,Updated: 01 Jan, 2018 03:24 PM
चाहे प्रदेश सरकार की तरफ से मीनार-ए-खालसा जैसे ऐतिहासिक स्थान करोड़ों रुपए खर्च करके लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनाए गए हैं, परंतु हमारे शूरवीर योद्धाओं की यादों को दर्शाते कई ऐतिहासिक स्थान सरकारों की अनदेखी और अधिकारियों की लापरवाही के कारण...
घल्लखुर्द (दलजीत): चाहे प्रदेश सरकार की तरफ से मीनार-ए-खालसा जैसे ऐतिहासिक स्थान करोड़ों रुपए खर्च करके लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बनाए गए हैं, परंतु हमारे शूरवीर योद्धाओं की यादों को दर्शाते कई ऐतिहासिक स्थान सरकारों की अनदेखी और अधिकारियों की लापरवाही के कारण अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। अंग्रेजों और सिखों की पहली जंग जोकि 18 दिसम्बर 1845 से 10 फरवरी 1846 मध्य मुदकी, फिरोजपुर, मिश्रीवाला, बद्दोवाल, चेलियां वाला, संभरां के मैदान में हुई थी।
इस जंग में सिख योद्धाओं के बहादुरी भरे कारनामों को ताजा रखने के लिए घल्लखुर्द में जौडिय़ां नहरों नजदीक 1974 में इस ऐतिहासिक यादगर एंग्लो सिख वार मैमोरियल का नींव पत्थर संजय गांधी की तरफ से रखा गया और 1976 में बनकर यह तैयार हुई, जिसमें शुरवीर योद्धाओं की तरफ से जंग में इस्तेमाल किए गए हथियार तलवारें, नेजे, चालां, कटारें, बरछे, बड़ी तोपें आदि रखे गए, परंतु कुछ समय बाद सरकारों और पुरातन विभाग के अधिकारियों की लापरवाही के कारण ऐतिहासिक तोपों जिन पर अकाल सहाय, भाई सुक्खा सिंह लिखा हुआ था, की हालत अब दयनीय बनी हुई है, जिन्हें विभाग के अधिकारियों की तरफ से लीपा-पोती करके काम चलाया जा रहा। कुछ समय पहले इस ऐतिहासिक यादगार में से बहुमूल्य ऐतिहासिक 2 पस्तौलें चोरी हो जाने का मामला सामने आया, जिनके संबंध में पता लगाने में विभाग अभी तक नकाम रहा। इन ऐतिहासिक पस्तौलों के चोरी होने संबंधी थाना घल्लखुर्द में 4 जून 2006 को यादगर के ही 10 मुलाजिमों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।उस समय सामने आया कि एक पिस्तौल तो 1988 से ही गायब हो चुकी थी और दूसरी 2003 से गायब है।
यह पूरा मामला जब पुलिस के ध्यान में लाया गया तो पुलिस कार्रवाई दौरान ही सारा सनसनीखेज मामला सामने आया कि ऐतिहासिक पिस्तौलें कहां गईं या कौन ले गया। इस ऐतिहासिक यादगर की बिगड़ रही हालत संबंधी समाज सेवी संगठन, समाज सेवी जत्थेबंदियां काफी चिंतित हैं। सिख योद्धाओं के बहादुरी भरे कारनामों की दिखाती तस्वीरों की हालत भी आजकल नाजुक स्थिति में है, जिन्हें उस समय के चित्रकार कृपाल सिंह ने अपनी अथक मेहनत के साथ बनाया था।यदि इन तस्वीरों की समय पर संभाल न की गई तो बहु कीमती तस्वीरों का नामो-निशान मिट जाएगा और कुछ समय बाद खाली बोर्ड टांगे नजर आएंगे। पंजाब केसरी प्रतिनिधि की तरफ से जब इस ऐतिहासिक यादगार का दौरा किया गया तो देखा कि इस इमारत के बाहर चारों तरफ जंगली घास उगा हुआ है और इमारत के बाहर छतों पर मधुमक्खियों के छत्ते लगे हुए हैं, जोकि कभी भी इस यादगर को देखने के लिए आने वाले सैलानियों की जान का खतरा बन सकते हैं। उधर, इलाके के लोगों का मानना है कि यदि इस ऐतिहासिक यादगार प्रति सरकार और पुरातन विभाग इस तरह लापरवाही दिखाता रहा तो वह दिन दूर नहीं कि इस ऐतिहासिक यादगर का नामो-निशान मिट जाएगा और इतिहास पढ़कर शहीदों के इतिहास स्थानों के इच्छुक सैलानी और हमारी आने वाली पीढिय़ां इनके याद चिन्हों के दर्शन पटवारियों के नक्शे या किताबों में ही करेंगे।
क्या कहते हैं म्यूजियम कीपर जसविन्द्र सिंह
इस मौके पर म्यूजियम कीपर जसविन्द्र सिंह के साथ फोन पर संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि इस यादगार की संभा-संभाल और मुरम्मत के लिए प्रोपोजल बनाकर भेजा जा चुका है और जल्द ही इस इमारत की रिपेयर का काम शुरू हो जाएगा, परंतु सरकारी कार्यों में समय जरूर लगता है।