क्या एेसे मनाए अाजादीः 28 वर्ष की अायु में पति के कफन की तरह सफेद हुअा इस विधवा का जीवन

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Aug, 2017 08:19 AM

living life in the darkness of oblivion is the family of kirti chakra

एक ओर जहां जंग-ए-आजादी की 70वीं वर्षगांठ के जश्न को धूमधाम से राष्ट्रीय स्तर पर मनाने की तैयारियां जोर-शोर से अन्तिम चरण में पहुंची चुकी हैं, वहीं इस उत्सव के पीछे एक गहन अन्धेरा भी है।

पठानकोट(आदित्य, शारदा): एक ओर जहां जंग-ए-आजादी की 70वीं वर्षगांठ के जश्न को धूमधाम से राष्ट्रीय स्तर पर मनाने की तैयारियां जोर-शोर से अन्तिम चरण में पहुंची चुकी हैं, वहीं इस उत्सव के पीछे एक गहन अन्धेरा भी है।  

आजादी का यह जश्न शहीद परिवारों के लिए बेमानी है।कुछ इसी तरह की दर्द भरी कहानी है निकटवर्ती गांव पठानचक्क के कीर्ति चक्र विजेता शहीद नायब सूबेदार बलदेव राज के परिजनों की। उसकी शहादत के 25 वर्षों बाद भी सरकार की उपेक्षा का दंश झेल रहे हैं तथा गुमनामी के अन्धेरे में जीवन गुजार रहा है।

शहीद की पत्नी कमला रानी ने नम आंखों से बताया कि उसके पति 3 नवम्बर 1992 को जम्मू-कश्मीर के बारामूला सैक्टर में पाक प्रशिक्षित आतंकियों से भिड़ते हुए शहादत का जाम पी गए थे, जिनकी बहादुरी को देखते हुए तत्कालीन राष्ट्रपति डा. शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया था।  
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उसके सिर पर 28 वर्ष की अल्पायु में ही विधवा की चुनरी आ गई। पति के जाने के बाद उस पर जो दुखों का पहाड़ टूटा, उस सदमे से वह आज तक नहीं उभर पाई। उसके तीनों बेटे उस वक्त छोटे थे। लोगों के कपड़े सिल कर उसने तंगहाली में बेटों की परवरिश की। पति की शहादत के उपरान्त उन्हें सिर्फ 3 लाख रुपए सहायता मिली।तत्कालीन सरकार ने  उस समय उनके बेटे को नौकरी देने, गांव में पति की याद में एक यादगारी गेट बनाने व जमीन देने की घोषणा की थी, परन्तु 25 वर्ष बीत जाने के बाद भी सरकार के वायदे वफा न हो पाए। 

उसने बताया कि शहीद पिता की शहादत से प्रेरणा लेकर उसका बड़ा बेटा राज कुमार अपने बलबूते पर वर्ष 2005 में सी.आर.पी.एफ. में भर्ती हो गया, दूसरा बेटा मनमोहन प्राईवेट कम्पनी में मामूली-सी नौकरी करता है, जबकि तीसरा बेटा सतीश कुमार, जो पिता की शहादत के मौके पर मात्र डेढ़ वर्ष का था, आज बेरोजगार घूम रहा है इसलिए वह सरकार से सिर्फ यह ही चाहती है कि उसके छोटे बेटे सतीश को अपने वायदे अनुसार नौकरी दी जाए। शहीद परिवार के साथ दुख सांझा करने के लिए विशेष तौर पर पहुंचे शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविन्दर सिंह विक्की ने कहा कि सरकार को चाहिए कि शहीद परिवारों के लिए वह कोई ठोस नीति अपनाए ताकि ये परिवार दर-दर की ठोकरें खाने को विवश न हों।
 

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