GST रिफंड न मिलने के विरोध में व्यापारी करेंगे अदालत का रुख

Edited By Mohit,Updated: 28 Oct, 2018 04:53 PM

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पिछले कुछ महीनों से राज्य के व्यापारी वर्ग में जी.एस.टी. के टैक्स रिफंडिंग को लेकर भारी नाराजगी पाई जा रही है। कुछ कारोबारियों ने बताया कि व्यापारी वर्ग को सरकार की ओर से जी.एस.टी. लगाने से पहले यह आश्वासन दिया गया था कि उसका सारा कार्य ऑनलाइन होगा...

जालंधर (बुलंद): पिछले कुछ महीनों से राज्य के व्यापारी वर्ग में जी.एस.टी. के टैक्स रिफंडिंग को लेकर भारी नाराजगी पाई जा रही है। कुछ कारोबारियों ने बताया कि व्यापारी वर्ग को सरकार की ओर से जी.एस.टी. लगाने से पहले यह आश्वासन दिया गया था कि उसका सारा कार्य ऑनलाइन होगा परंतु अब ऑनलाइन तो दूर की बात है पहले तो मैनुअल फाइलें स्टेट टैक्स दफ्तर में जमा करवानी पड़ रही हैं। फिर उसके बाद दस्तावेज कम्प्यूटर लगने के बावजूद भी व्यापारी वर्ग से मंगवाए जा रहे हैं और अगर कोई फाइल प्रोसैस हो भी जाती है तो उसमें एक वाऊचर पर साइन करवाकर कारोबारी को कह दिया जाता है कि जब स्टेट के पास पैसे आएंगे तो तुम्हारे खाते में पैसे डाल दिए जाएंगे। 

कुछ व्यापारियों ने यह भी रोष जताया कि जब पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने वैट के रिफंडों के लिए देरी होने पर ब्याज दिया है तो जी.एस.टी. के रिफंड देरी से देने पर विभाग खुद ही ब्याज क्यों नहीं दे रहा। बहुत से केसों में यह ध्यान में आ रहा है कि विभाग की ओर से कारोबारी को डैफिशैंसी मीमो दिया जाता है पर उसके खाते में पैसा री-क्रेैडिट नहीं किया जा रहा। इससे व्यापारी वर्ग न तो दोबारा से रिफंड अप्लाई कर पाता है और न ही वह पैसा अपनी आऊटपुट लायबिलिटी को खत्म करने में इस्तेमाल कर पाता है। ऐसे कुछ केसों को हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई थी जिसके उपरांत स्टेट टैक्स अधिकारियों ने कार्रवाई करनी शुरू की है, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि जैसे पहले तीन-तीन सालों के वैट रिफंड जारी करने बारे जालंधर सेल टैक्स विभाग के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती थी पर जब पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने सुखदेव एंड कम्पनी व जी.बी. टूल्ज के केसों में ब्याज देने के निर्देश दिए हैं तो विभाग ने पिछले 3 सालों की फाइलों को प्रोसैस करना शुरू किया है जिससे व्यापारी वर्ग को राहत मिली है और लोगों को रिफंड के पैसे मिलने शुरू हो गए हैं। 

दूसरी ओर यह मुद्दा भी ध्यान में आया है कि विभाग की ओर से रिफंड तो जारी किया जा रहा है पर बहुत से केसों में जिनमें व्यापारी हाईकोर्ट नहीं गए उन्हें ब्याज जारी नहीं किया जा रहा। इसी तरह आज का व्यापारी जी.एस.टी. रिफंड के लिए स्टेट टैक्स ऑफिसरों से परेशान हो रहा है और रिफंड के लिए तरस रहा है क्योंकि जिस व्यापारी का रिफंड बनता है, उसके भारी-भरकम राशि स्टेट टैक्स विभाग के पास फंसी होती है। नतीजतन व्यापारी खुल कर व्यापार नहीं कर पा रहा। ऐसे में हर व्यापारी अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने को मजबूर हो रहा है और वह स्टेट टैक्स के दफ्तर के चक्कर लगाने को मजबूर है।  

जी.एस.टी. एक्ट में एक्सपोर्टर को विभाग ने सैक्शन-54 के तहत 7 दिनों के भीतर 90 प्रतिशत रिफंड जारी करना होता है और बाकी 10 प्रतिशत रिफंड 60 दिनों के भीतर जारी करना अनिवार्य है। यदि किसी व्यापारी की रिफंड फाइल में कोई कमी पाई जाती है तो उसको डैफिशैंसी मीमो आर.एफ.डी. 03 में जारी किया जाता है। डैफिशैंसी मीमो जारी करने के साथ-साथ विभाग को जो पैसा व्यापारी ने रिफंड अप्लाई करने समय डैबिट किया होता है वही सरकार को रि-क्रैडिट करना होता है ताकि जिस व्यापारी को डैफिशैंसी मीमो जारी किया गया है, वह दोबारा से अपनी रिफंड की अर्जी दायर कर सके। यदि विभाग रिफंड देने में देरी करता है तो उसे व्यापारी को ब्याज भी देना होता है। एक टैक्स के लिए जी.एस.टी. योजना सरकार ने शुरू की थी पर अगर इसके बाद भी व्यापारी वर्ग की परेशानियां कम नहीं हुईं तो क्या फायदा हुआ जी.एस.टी. का। 
 

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