Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Oct, 2017 04:47 PM
राज्य सरकार एवं जिला प्रशासन के आदेशों के बावजूद गेहूं की पराली को किसानों द्वारा आग लगाई जा रही है। हालांकि ऐसा करने से किसानों का अपना ही नुक्सान हो रहा है, लेकिन वे अपने नुक्सान व पाबंदी की परवाह किए बिना ही पराली को जला रहे हैं।
नाभा(गोयल) : राज्य सरकार एवं जिला प्रशासन के आदेशों के बावजूद गेहूं की पराली को किसानों द्वारा आग लगाई जा रही है। हालांकि ऐसा करने से किसानों का अपना ही नुक्सान हो रहा है, लेकिन वे अपने नुक्सान व पाबंदी की परवाह किए बिना ही पराली को जला रहे हैं। राज्य सरकार की ओर से पराली को न जलाने के लिए सख्त रवैया अपनाया गया है, जिस कारण पराली जलाने के मामलों में कमी आई है पर किसान पराली के कारण पेश आ रही मुश्किलों क ो आगे रखकर पराली जला रहे हैं।
गेहूं व धान की कटाई के बाद ऐसा करना चाहिए
खेतों में धान व गेहूं की कटाई के बाद बची पराली को जलाने की जरूरत नहीं है। अपितु उसे रोटावेटर मशीन से खेत में ही नष्ट करके जमीन को पानी लगा देना चाहिए जिससे पराली गल जाती है और जमीन की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ जाती है। इसके अलावा धान की पराली को गत्ता मिलों में बेचकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं।
किसान क्यों जलाते हैं पराली
जब इस संबंध में नाभा उपमंडल के विभिन्न गांवों के किसानों से पराली जलाने संबंधी पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पराली को खलिहान में नष्ट करना बहुत मुश्किल होता है जबकि गेहूं की कटाई के बाद धान की बुआई में काफी कम समय रह जाता है। अगर किसानों द्वारा पराली को खेत में नष्ट किया जाता है तो बाद में धान की फसल प्रभावित होती है। इससे अधिकतर किसानों की ओर से पराली को आग लगाकर खत्म कर दिया जाता है, जिससे खेत शीघ्र ही साफ हो जाता है और उन्हें कोई परेशानी नहीं होती है।
क्या कहते हैं डाक्टर
जब इस संबंध में चमड़ी रोग विशेषज्ञ से संपर्क किया गया तो उन्होंने बताया कि किसानों की ओर से फसलों को विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाने के लिए कई तरह के कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है। फसल की कटाई के बाद पराली को जलाने से कई प्रकार की हानिकारक गैसें पैदा होती हैं जो मानव व पर्यावरण के लिए काफी घातक होती हैं जिसका सबसे ज्यादा असर सांस व चमड़ी रोगों से पीड़ित लोगों पर पड़ता है।