जानें क्यों बजट पेश होने के बाद ठगा-सा महसूस कर रहा है पंजाब का किसान

Edited By Sunita sarangal,Updated: 02 Feb, 2022 03:42 PM

no mention in the budget regarding msp law

केंद्र सरकार की तरफ से पेश किए गए बजट संबंधी सत्ताधारी पक्ष की तरफ से कई हां समर्थकी दावे किए जा रहे हैं लेकिन.............

गुरदासपुर(जीत मठारू): केंद्र सरकार की तरफ से पेश किए गए बजट संबंधी सत्ताधारी पक्ष की तरफ से कई हां समर्थकी दावे किए जा रहे हैं लेकिन किसान जत्थेबंदियां और किसान खुद को ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। बजट में एम.एस.पी. कानून लाए जाने के बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया है। उल्लेखनीय है कि फसलों पर एम.एस.पी. कानून लाए जाने की मांग को लेकर किसानों ने लंबा संघर्ष किया है।

किसानों ने इस बजट को किसान और कृषि विरोधी करार दिया है। सरकार की तरफ से दावा किया गया है कि 2.70 लाख करोड़ रुपए एम.एस.पी. के लिए खर्च किए गए हैं परन्तु कृषि माहिर यह दावा कर रहे हैं कि केवल एम.एस.पी. पर इतनी बड़ी राशि खर्चने संबंधी किए दावे के साथ किसानों के मसले हल नहीं हो सकते। किसानों से बात करने पर यह पता चलता है कि केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया बजट मात्र सरकार के लाभ बढ़ाने वाला बजट तक ही सीमित है।

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कृषि विषेशज्ञों का दावा है कि केंद्र सरकार इसी तरह मोटी रकम खर्च करने की बजाय यदि पंजाब को उसके बनते हिस्से की रकम वैसे ही जारी कर दे तो पंजाब की खेती से जुड़ी कई मुश्किलें हल हो सकती हैं। पंजाब में इस मौके गेहूं और धान जैसी रिवायती फसलों की काश्त बड़ी सिरदर्दी है। केंद्र सरकार यदि इन फसलों पर दी जाने वाली एम.एस.पी. की राशि वैसे ही पंजाब सरकार को फसली विभिन्नता को उत्साहित करने के लिए दे दे तो पंजाब सरकार राज्य में कलस्टर बना कर विभिन्न फसलों की काश्त करवा सकती है जिससे मंडीकरण, धरती निचले पानी के गिर रहे स्तर सहित कई मुश्किलों का हल हो सकता है।

किसानों के खेती खर्चे भी पूरे नहीं होंगे
कृषि माहिर यह दावा कर रहे हैं कि ऑर्गेनिक खेती के लिए खेत को रसायन मुक्त करने के लिए 3 से 5 साल लगते हैं। इस समय दौरान जब किसान खादें और दवाओं का प्रयोग किए बगैर ऑर्गेनिक खेती करते हैं तो प्राथमिक सालों में फसल की पैदावार इतनी कम हो जाती है कि किसानों के खेती खर्चे भी पूरे नहीं होते। ऐसी स्थिति में किसानों के हुए नुकसान की पूर्ति किए बिना किसानों को ऑर्गेनिक खेती के लिए उत्साहित करना संभव नहीं है। सरकार ने ऑर्गेनिक खेती को उत्साहित करने का दावा तो किया है परन्तु किसानों के नुकसान की पूर्ति के लिए किसी अलग राशि की अलॉटमेंट नहीं की।

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ऑर्गेनिक फसल खरीदने संबंधी योजनाबंदी का खुलासा नहीं
सरकार की तरफ से इस बजट में रासायनिक खादों की सब्सिडी कम कर दी गई है, जबकि ऑर्गेनिक खेती को उत्साहित करने का दावा किया है। किसान नेता इस बात को लेकर बजट की निंदा कर रहे हैं कि सरकार ने किसानों की तरफ से तैयार की ऑर्गेनिक फसल खरीदने संबंधी योजनाबंदी करने के बारे में कोई भी खुलासा नहीं किया। इसके साथ ही ऑर्गेनिक खेती करवाने के लिए किसानों को बदलवे ढंग तरीके बताने और अन्य कदम उठाने के लिए संबंधित विभागों और यूनिवर्सिटियों को अपेक्षित राशि देने की भी कोई व्यवस्था नहीं की। और तो और पहले ऑर्गेनिक खेती करते किसानों के अनुभवों के अनुसार इस खेती में पेश आती बड़ी मुश्किलों के समाधान के लिए बड़े अलग बजट की जरूरत है, जिसकी पूर्ति के लिए कोई प्रबंध नहीं किए गए।

आर्गेनिक खेती को उत्साहित करने का खोखला दावा
किसान नेता दावा कर रहे हैं कि सरकार ने रासायनिक खादों पर सबसिडी कम करने के लिए आर्गेनिक खेती को उत्साहित करने का खोखला दावा किया है। इसी तरह किसान इस बात को लेकर भी निराश हैं कि सरकार ने कृषि यंत्रों और खेती मशीनरी पर वसूला जा रहा जी.एस.टी. भी बंद नहीं किया। एक किसान नेता ने कहा कि मोदी सरकार से पहले कृषि यंत्रों और मशीनरी पर कोई भी टैक्स नहीं था परन्तु अब इस सरकार ने जी.एस.टी. के रूप में अधिकतर बोझ पाया है। किसानों को उम्मीद थी कि इस बजट में जी.एस.टी. का बोझ खत्म किया जाएगा परन्तु ऐसा न करके इस बजट द्वारा भी किसानों को निराश किया है। इस बजट को आने वाले 25 सालों के लिए बनाए जाने संबंधी दावा किया जा रहा है। कई किसान नेताओं ने कहा कि यह दावे मौजूदा समय दौरान किसानों की जरूरतों की पूर्ति करने के योग्य भी नहीं है। सरकार ने केवल अपने खर्चे कम करने और अपने लाभ को बढ़ाने वाली नीति अपनाई है।

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एक्सपर्ट व्यू : कृषि सैक्टर के लिए निराशाजनक रहा बजट
कृषिविशेषज्ञ दविन्द्र शर्मा का कहना है कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश बजट 2022 एग्रीकल्चर के लिए पूरी तरह से निराशाजनक रहा है। बजट में किसानों की आय दोगुनी कैसे होगी और कब तक होगी इसके बारे में कोई जिक्र नहीं किया गया है। इसके साथ ही एम.एस.पी. पर कानून जिसको लेकर किसान आंदोलनरत थे को लाने बारे भी बजट में कोई जिक्र नहीं किया गया है। दूसरी तरफ वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार एम.एस.पी. संचालन के तहत गेहूं और धान की खरीद के लिए 2.37 लाख करोड़ रुपए का भुगतान करेगी, जोकि पिछले वर्ष के मुकाबले काफी कम है। पिछले वर्ष 2.48 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया था। वहीं सरकार ने तिलहन पर फोकस करने की बात कही है, मगर कैसे करेंगे इसका भी बजट में जिक्र नहीं है। 

बजट में उल्लेख किया गया है कि सरकार फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिज़िटाइज़ेशन और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए 'किसान ड्रोन' के उपयोग को बढ़ावा देने की योजना बना रही है, मगर कोई भी स्टार्टअप किसानों की एम.एस.पी. को नहीं बढ़ाता है। बजट में गंगा किनारे किसानों से ऑर्गेनिक खेती करवाने की बात कही गई है, मगर इसके लिए कोई पैकेज की घोषणा नहीं की गई है। हरित क्रांति की जब घोषणा की गई थी तो उसके लिए बाकायदा बजट रखा गया था। कुल मिलाकर कोरोना महामारी के दौरान जब सारे उद्योग धंधे ठप्प हो गए थे तो कृषि सैक्टर देश की अर्थव्यवस्था के साथ खड़ा रहा था, लेकिन वित्त मंत्री द्वारा पेश किए गए बजट से कृषि सैक्टर को निराशा ही हाथ लगी है।

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