Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Feb, 2018 02:19 PM
बैंक घोटालों में संलिप्त विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे आरोपियों के विदेश भाग जाने के बावजूद सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा है। हाल ही में प्रकाश में आया पी.एन.बी में हुआ 11,400 करोड़ रुपए का घोटाला और रोटोमैक कंपनी के बिक्रम द्वारा 5 बैंकों से किया गया...
लुधियाना(बहल): बैंक घोटालों में संलिप्त विजय माल्या और नीरव मोदी जैसे आरोपियों के विदेश भाग जाने के बावजूद सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा है। हाल ही में प्रकाश में आया पी.एन.बी में हुआ 11,400 करोड़ रुपए का घोटाला और रोटोमैक कंपनी के बिक्रम द्वारा 5 बैंकों से किया गया 3696 करोड़ रुपए का घोटाला स्पष्ट करता है कि इसमें बैंक अधिकारियों की मिलीभगत है।इन घोटालों को रोकने के लिए दिसम्बर 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने आर.बी.आई. और सभी बैंकों को बैंकिंग संबंधी सभी जानकारियां सार्वजनिक करने के आदेश दिए थे लेकिन घोटाले करने वाले अधिकारियों को यह आदेश रास नहीं आ रहा था।सर्वोच्च न्यायालय से जुलाई 2017 को फिर से एक आदेश पारित करवा दिया गया कि बैंक अपनी कान्फीडैंशियल जानकारियां गुप्त रख सकते हैं।
इस आदेश की आड़ में घोटाले और एन.पी.ए. की जानकारियों को लोगों से छुपाया जाने लगा। फैडरेशन आफ पंजाब स्माल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष बदीश जिंदल ने आरोप लगाते हुए कहा कि पंजाब नैशनल बैंक और स्टेट बैंक आफ इंडिया ने उनके द्वारा आर.टी.आई. के तहत मांगी गई एन.पी.ए. खाते की जानकारी देने से साफ मना कर दिया। कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक बैंक को एन.पी.ए. खातों की जानकारी को सार्वजनिक कर उन व्यक्तियों द्वारा गिरवी रखी हुई सम्पत्तियों को नीलाम करना होता है लेकिन निजी हितों के कारण बैंक एन.पी.ए. और घोटालों की जानकारियों को सार्वजनिक नहीं कर रहे।जिंदल ने कहा कि उनकी संस्था को पुख्ता जानकारी मिली थी कि नीरव मोदी की तर्ज पर पंजाब से भी कई बड़े कारोबारियों ने हजारों करोड़ रुपए की दुबई और इंगलैंड में सम्पत्तियां खरीदी हैं। इस संबंधी इन बैंकों से एन.पी.ए. खातों की जानकारियां मांगी गई थीं जोकि बैंकों द्वारा नहीं दी गई। दूसरी ओर बहुत से कारोबारी इन एन.पी.ए. कंपनियों के साथ इनका स्टेटस देखकर करोड़ों की ट्रांजैक्शन कर रहे हैं। बैंकों द्वारा एन.पी.ए. की जानकारी न देने से इन कारोबारियों का पैसा पूरी तरह से फंसना तय है।
फोपसिया द्वारा प्रधानमंत्री के समक्ष रखी गई ये मांगें
-आर.बी.आई. और सभी बैंकों को एन.पी.ए. की जानकारी तुरंत सार्वजनिक करने के आदेश दिए जाएं।
-100 करोड़ से ऊपर के एन.पी.ए. खातों की जांच सी.बी.आई. द्वारा होनी चाहिए।
-एन.पी.ए. खातों के लिए जिम्मेदार बैंक अधिकारियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए।
-बैंकों में जमा लोगों की धन राशि को सिक्योर्ड डिपाजिट का दर्जा मिलना चाहिए।
चरमरा चुकी है बैंकों की अर्थव्यवस्था
बदीश जिंदल ने कहा कि भारत के राष्ट्रीयकृत बैंक बदहाल स्थिति में पहुंच चुके हैं। वर्ष 2012-13 से लेकर वर्ष 2017-18 तक बैंकों ने 3 लाख 67 हजार 765 करोड़ रुपए के ऋणों को राइट आफ किया है जिसका मतलब यह है कि बैंक अब इस रकम की वसूली नहीं कर पाएंगे। इस रकम में 3 लाख 3 हजार 578 रुपए सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंकों के हैं जबकि 22 प्राइवेट बैंक का राइट आफ मात्र 64,187 करोड़ रुपए है। वर्ष दर वर्ष एन.पी.ए. की दर 34 प्रतिशत से बढ़ रही है। भारतीय बैंकों का कुल एन.पी.ए. 11 प्रतिशत तक पहुंच चुका है जबकि बैंकों की अपनी पूंजी मात्र 7 प्रतिशत है। अगर कुल हिसाब लगाया जाए तो 3.67 लाख करोड़ राइट आफ करने के बावजूद बैंकों का एन.पी.ए. 9 लाख करोड़ के लगभग है और इसके साथ ही 12 लाख करोड़ रुपए स्टेसड फंड में आते हैं जिनकी वसूली करना भी बैंकों के लिए बेहद कठिन साबित हो सकता है।