विनोद खन्ना ने 2 दशक पहले देखा था पर्यटन हब बनाने का सपना, नहीं हुआ पूरा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Jan, 2018 11:16 AM

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पठानकोट जिला, जो पंजाब के अंतिम छोर पर स्थित है। इसकी एक ओर पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सरहद तो दूसरी ओर आतंकवाद ग्रस्त जम्मू-कश्मीर की सीमाएं लगती हैं। वहीं पूर्व में इसके देवभूमि हिमाचल प्रदेश की सीमा लगती है।

पठानकोट(शारदा): पठानकोट जिला, जो पंजाब के अंतिम छोर पर स्थित है। इसकी एक ओर पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय सरहद तो दूसरी ओर आतंकवाद ग्रस्त जम्मू-कश्मीर की सीमाएं लगती हैं। वहीं पूर्व में इसके देवभूमि हिमाचल प्रदेश की सीमा लगती है।

सुरक्षा एवं पर्यटन की दृष्टि से भी यह जिला अत्यंत महत्वपूर्ण है। वहीं इस क्षेत्र में एशिया की सबसे बड़ा मिलिटरी स्टेशन मामून, सैन्य आयुध भंडार व एयरबेस भी इसकी सामरिक महत्ता स्वयं उजागर करते हैं। दूसरी ओर रेल यातायात के दृष्टिकोण से भी यह क्षेत्र रेलवे का बड़ा जंक्शन है। रावी दरिया पर दो दशक पहले रणजीत सागर बांध परियोजना पूरी हुई थी जिसके बाद इस डैम की 52 वर्ग किलोमीटर में फैली विशाल झील भी अस्तित्व में आई थी जिसकी तीनों पड़ोसी प्रांतों से सरहदें लगती हैं। इससे इस झील की भी भोगौलिक व सामरिक महत्ता लंबे समय से बनी हुई है।

क्यों है रणजीत सागर बांध के झील की महत्ता

डैम बनने के बाद अस्तित्व में आई इस डैम की झील अपने आप में महत्ता समेटे हुए है। यहां यह झील नैसॢगक सुंदरता का भी अद्भुत सुमेल है क्योंकि झील के तीनों ओर घने जंगल हैं जो इसे और प्राकृतिक सुंदरता का रूप प्रदान करते हैं। घनी वन सम्पदा के बीच स्थित इस विशाल झील का दृश्य बाहरी सैलानियों के लिए देखते ही बनता है। इस झील की उत्तर दिशा में जम्मू-कश्मीर का ऐतिहासिक बसोहली क्षेत्र है। वहीं इसका पूर्वी छोर हिमाचल प्रदेश के खैरी क्षेत्र तक जाता है। तीसरी ओर पंजाब का धार ब्लॉक व दुनेरा कस्बा, जिसके दर्जनों गांव इस झील के किनारों पर बसे हुए हैं। कई गांव इस झील को स्वरूप प्रदान करने के लिए अपना अस्तित्व कालांतर में खो बैठे थे। 

पिछले समय दौरान इस झील पर अब केबल स्टेयड बसोहली पुल भी इसकी शान बन चुका है जो देश में अपने आप में चौथा केबल स्टेयड पुल है। इस पुल के भी झील का भाग बनने से और मनोहरम दृश्य बन गया है जिसे देखने के लिए देसी-विदेशी सैलानी हर रोज उमड़ रहे हैं। वहीं झील में कुलारा व मुर्शबा टापू बने हुए हैं। यहां पिछली सरकार ने होटल संस्कृति को गुलजार करने का प्रयास किया था।

यहां तक कि पूर्व उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल ने देश के नामवर होटलियरों को साथ लेकर स्टीमर के माध्यम से इस झील व टापुओं का अवलोकन करके होटल व पर्यटन संस्कृति की संभावनाएं तलाशी थीं व इस झील एवं आस-पास क्षेत्र में वाटर स्पोर्ट्सव टूरिज्म संस्कृति का फलीभूत करने का सपना देखा था क्योंकि ऐसी विस्तृत झील तो स्विटरलैंड जैसे मुल्कों में भी एक-आध देखने को मिलती है, परन्तु पूर्व सांसद विनोद खन्ना के आकस्मिक निधन के बाद यह सपना अधूरा रह गया। वहीं सुखबीर बादल ने कुलारा व मुर्शबा टापुओं को होटल संस्कृति से गुलजार करने का खाका तैयार किया था, जो सत्ता परिवर्तन के बाद अधर में लटक गया है।

एयरपोर्ट तो है परन्तु ठप्प पड़ी हैं विमान सेवाएं
वहीं दूसरी ओर पर्यटन संस्कृति गुलजार करने के लिए यहां मुख्य जरूरत भौगोलिक परिस्थितियों की होती है। वह इस क्षेत्र में विस्तृत झील के रूप में विद्यमान है, परन्तु देसी-विदेशी सैलानियों को आकॢषत करने के लिए यातायात विशेषकर विमान सेवाओं की दरकार होती है। इस मामले में एयरपोर्ट तो क्षेत्र में लंबे समय से स्थित है, परन्तु विमान सेवाएं कई वर्षों से ठप्प पड़ी हैं। कई सालों से इस एयरपोर्ट में टूरिस्ट फ्लाइट नहीं उतरी है। ऐसे में पर्यटन संस्कृति गुलजार करने से पहले इस एयरपोर्ट को विमान सेवाओं की रफ्तार देनी होगी।

जब तक एयरपोर्ट पर हवाई उड़ानें आनी-जानी शुरू नहीं होतीं, इस क्षेत्र में पर्यटन हब बनाने के रास्ते में एक बड़ा रोड़ा बना ही रहेगा। हालांकि कई बार इस एयरपोर्ट से दोबारा हवाई सेवाएं शुरू होने के दावे व कयास लगाए जाते रहे, जोकि महज हवा ही सिद्ध हुए हैं। मौजूदा समय में भी स्थिति सुखद नहीं है तथा एयरपोर्ट से हवाई सेवाएं कब दोबारा शुरू होंगी यह फिलहाल मुंगेरी लाल के हसीन सपने से जुदा नहीं है।

क्या-क्या खेलें हो सकती हैं यहां शुरू
चूंकि डैम की झील कई वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है ऐसे में इसकी परिस्थितियां वाटर स्पोर्ट्स खेलों के लिए पूर्णतया माकूल हैं। अगर राज्य सरकार या पर्यटन विभाग इस क्षेत्र में वाटर स्पोर्ट्सखेलों के लिए खाका तैयार करके उपयुक्त इंफ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध करवाए तो निश्चित रूप से यहां पैरा सेङ्क्षलग, स्कूबा डाइविंग आदि वाटर स्पोर्ट्सपर आधारित खेलों का हब इस क्षेत्रों को बनाया जा सकता है परन्तु इसके लिए अभी स्थिति ऊंट के मुंह में जीरे समान भी नहीं है। ऐेसे में वाटर स्पोर्ट्सकल्चर यहां डिवैल्प कर पाना अभी दिल्ली दूर जैसी ही स्थिति है।

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