Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Nov, 2017 05:14 PM
देश भर के ई-रिक्शा भी जी.एस.टी. के चक्रव्यूह में फंस गए हैं। जी.एस.टी. में कानून की धाराओं के मुताबिक ई-रिक्शा कंपनियों की खरीद और बिक्री के बीच 16 प्रतिशत का अंतर न केवल इन लोगों के लिए मुसीबत बन गया है, बल्कि इसकी देनदारी का पूरा भार अंत में गरीब...
लुधियाना/अमृतसर(स.ह., इन्द्रजीत) : देश भर के ई-रिक्शा भी जी.एस.टी. के चक्रव्यूह में फंस गए हैं। जी.एस.टी. में कानून की धाराओं के मुताबिक ई-रिक्शा कंपनियों की खरीद और बिक्री के बीच 16 प्रतिशत का अंतर न केवल इन लोगों के लिए मुसीबत बन गया है, बल्कि इसकी देनदारी का पूरा भार अंत में गरीब चालकों को ही झेलना पड़ेगा।
बहरहाल देशभर में 5000 से अधिक उक्त कंपनियों के उद्यमी इस टैक्स के अंतर की वापसी सरकार से नहीं ले पा रहे हैं। ध्यान रहे कि प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए ई-रिक्शा एक ऐसा वाहन है, जो आने वाले समय के ऑटो का विकल्प बनकर महंगे पैट्रोल व डीजल जैसे ईंधन से भी लोगों को राहत दिला सकता है।
ई-रिक्शा व जी.एस.टी. की धाराएं
ई-रिक्शा पर जी.एस.टी. की दर 12 प्रतिशत है, इसकी खरीद के तौर पर निर्माता को 28 प्रतिशत देने पड़ेंगे, क्योंकि खरीद के मैटीरियल पर कंपनी पहले चरण पर निर्माता अथवा असैंबङ्क्षलग पर देनदारी तय कर देती है। इसका मैटीरियल बेचने वाले अपने इनपुट से सरकार को 28 प्रतिशत का भुगतान देंगे। दूसरी ओर इनसे निर्मित होने वाले वाहन जब सड़क पर तैयार होकर आते हैं तो ग्राहक से टैक्स वसूलने की दर 12 प्रतिशत है।
सरकार टैक्स को सीधी देनदारी
इससे बड़ी बात है कि आम तौर पर टैक्स का रिफंड मात्र कागजों में ही होता है। यदि कोई सामान्य दर से किसी को बिल जारी करता है तो इससे उसे रिफंड मिलता है, लेकिन नकद में नहीं। मात्र व्यापारी अगले खरीदार को बिल देगा व खरीदार अगले चरण में बिल काटने पर ही अधिकृत होगा। दूसरी ओर यदि टैक्स की दर असमानता दिखाती है तो कम वसूली की स्थिति में सरकार की सीधी देनदारी बनती है।
हजारों कंपनियों पर मंडराया टैक्स का संकट
इसमें देखने वाली बात है कि यदि 28 प्रतिशत की देनदारी के बाद टैक्स की वसूली 12 प्रतिशत है तो 4 महीनों में 64 प्रतिशत रकम निर्माता की सरकार के नीचे दब जाती है, जबकि सरकार अभी इन निर्माताओं को पल्ला नहीं पकड़ा रही। दूसरी ओर इन कंपनियों को पार्ट्स भेजने वालों के भुगतान फंसने लगे हैं, जिससे हजारों कंपनियों पर टैक्स का संकट मंडरा रहा है।
ऑटो पार्ट्स असैंबल होते हैं ई-रिक्शा में
ई-रिक्शा रिकार्ड के अनुसार कमॢशयल ए.डी.वी. वाहनों की श्रेणी में आते हैं, जबकि इनमें प्रयुक्त होने वाले पार्ट्स में पहिए के रिम चेतक, एक्टिवा व बजाज स्कूटर के अथवा बड़े ई-रिक्शा में सी.टी. 100 बाइक के होते हैं। अगले शॉक एब्जॉर्बर पल्सर बाइक, हैंडल डिस्कवर बाइक, टायर 350.10 व 300.18, 100.90-18, बैटरी ट्रक अथवा टै्रक्टर की, कुल मिला कर इसके 85 प्रतिशत उपकरण व कल-पुर्जे अन्य वाहनों के निर्माताओं से खरीदे जाते हैं, केवल बॉडी शैल ही बाहर से बनता है। उपरोक्त सभी चीजों पर टैक्स की धारा 28 प्रतिशत होती है।
कहां है ई-रिक्शा कंपनियों के गढ़
इन वाहनों की असैंबलिंग में दिल्ली, एन.सी.आर., उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, वैस्ट बंगाल, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा आदि प्रदेश हैं, जहां ये वाहन कंपनियां चल रही हैं। चूंकि इन वाहनों में इंजन नहीं होते व बैटरी के साथ लगी मोटर के सहारे ही चलते हैं, इसलिए अधिक टैक्नीकल न होने की वजह से इसके निर्माता अब और तेजी से बढऩे लगे हैं।