Edited By Updated: 20 Jun, 2016 10:39 AM
यह सर्वविदित तथ्य है कि युद्ध में जीत किसी की भी हो, तबाही के अवशेष शेष रह ही जाते हैं। इसकी विभीषिका के गहरे ..
दीनानगर(कपूर): यह सर्वविदित तथ्य है कि युद्ध में जीत किसी की भी हो, तबाही के अवशेष शेष रह ही जाते हैं। इसकी विभीषिका के गहरे जख्म कई पीढिय़ों तक रिसते रहते हैं। 1965 व 1971 के भारत-पाक युद्धों में जीत भले ही भारत की हुई हो, मगर पाकिस्तान ने हमारे 54 सैनिकों को युद्धबंदी बनाकर विभिन्न जेलों में रखा हुआ है, जो इस उम्मीद के साथ घुटन भरी जिन्दगी व्यतीत कर रहे हैं कि शायद केंद्र सरकार उनकी रिहाई के लिए पाकिस्तान पर दबाव बनाए।
भारत-पाक युद्ध में बहादुरी व शौर्य का दिया परिचय
इन्हीं युद्धबंदियों में शामिल हैं जिला तरनतारन के गांव चब्बा कलां के सिपाही बलविन्द्र सिंह, जिनके परिजन आज भी उनके लौटने के इन्तजार में पलकें बिछाए बैठे हैं। सिपाही बलविन्द्र सिंह की बेटी बलजिन्द्र कौर, जोकि शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद द्वारा यहां आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आई थी, ने नम आंखों से बताया कि उनके पिता 1966 में सेना की 10-सिख यूनिट में भर्ती हुए थे, जिन्होंने 1971 के भारत-पाक युद्ध में बहादुरी व शौर्य का परिचय दिया, मगर पाक सेना द्वारा उन्हें बंदी बना लिया गया जो पिछले 45 वर्षों से पाकिस्तान की कोट लखपत जेल में युद्धबंदी के रूप में अथाह जुल्म सहने को विवश हैं। बलजिन्द्र कौर ने बताया कि उसने अपने पिता को देखा भी नहीं है, क्योंकि वह उनके युद्धबंदी होने के अढ़ाई महीने बाद पैदा हुई थी। सरकार ने उनके पिता को शहीद करार देकर उनका बिस्तर व कपड़े घर भेज दिए थे। उसकी मां हरबंस कौर ने कड़े संघर्ष से परिवार का पालन-पोषण किया, मगर उनकी मां का दिल यह मानने को कतई तैयार नहीं था कि उसके पति शहीद हुए हैं। जब भी वाघा बॉर्डर से किसी भी सैनिक की रिहाई का समाचार मिलता तो वह उसे साथ लेकर इस उम्मीद से वहां पहुंचती कि शायद रिहा होने वाले सैनिकों में उसका पति भी हो, मगर हर बार निराशा ही हाथ लगती।
45 वर्ष बाद आई जिंदा होने की खबर
उनके पिता के जिंदा होने का शक उस समय यकीन में बदल गया जब 2 मई 2016 को गांव भिखीविंड में शहीद सरबजीत सिंह का श्रद्धांजलि समारोह था, जिसमें वह तथा पाक से रिहा हुए कुछ कैदी और उनके परिजन पहुंचे। वहां मौजूद 2012 में पाक जेल से रिहा हुए सुरजीत सिंह, निवासी तलवंडी साबो के परिजनों ने उन्हें बताया कि सुरजीत सिंह सिपाही बलविन्द्र सिंह से पाकिस्तान की जेल में मिल चुके हैं जिसने अपना गांव चब्बा कलां बताया था। बलजिन्द्र कौर ने बताया कि जिस दिन से ही उन्हें अपने पिता के पाकिस्तान की जेल में जिंदा होने की सूचना मिली, तब से ही वह पूर्व सैनिकों व शहीद परिवारों को साथ लेकर अपने पिता की रिहाई के लिए संघर्ष कर रही है। उसने राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर भी अपने पिता की रिहाई के लिए गुहार लगाई है। गत दिनों शहीद परिवारों को साथ लेकर अमृतसर के हालगेट से जलियांवाला बाग तक कैंडल मार्च भी निकाला था और 23 जुलाई को भी वह वाघा बॉर्डर पर अपने पिता की रिहाई के लिए शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के सदस्यों, पूर्व सैनिकों व शहीद परिवारों को साथ लेकर एक रोष मार्च निकालेंगी। परिषद के महासचिव कुंवर रविन्दर सिंह विक्की ने सरकार से मांग की है कि पाक जेलों में बंद हमारे 54 युद्धबंदी सैनिकों की रिहाई के लिए कोई ठोस कदम उठाए जाएं ताकि वर्षों से अपनों की जुदाई का दंश झेलने वाले इनके परिजनों की भावनाओं का सम्मान हो सके।