Edited By swetha,Updated: 16 Oct, 2018 09:52 AM
मौजूदा समय दौरान धान की कटाई के बाद खेतों में आग लगाए जाने के बगैर पराली का निपटारा करने के लिए सरकार की तरफ से किसानों से अपील की जा रही हैं। पर बहुत से किसान इसे नजरअंदाज करते हुए यह दावा कर रहे हैं कि आग लगाए बगैर खेतों में से पराली का निपटारा...
गुरदासपुर(हरमनप्रीत): मौजूदा समय दौरान धान की कटाई के बाद खेतों में आग लगाए जाने के बगैर पराली का निपटारा करने के लिए सरकार की तरफ से किसानों से अपील की जा रही हैं। पर बहुत से किसान इसे नजरअंदाज करते हुए यह दावा कर रहे हैं कि आग लगाए बगैर खेतों में से पराली का निपटारा नहीं किया जा सकता ।
वहीं ज्यादातर किसान ऐसे भी हैं जो यह दावा करते आ रहे हैं कि पराली को आग लगाए बगैर निपटाने के लिए तकरीबन 5 से 6 हजार रुपए ज्यादा खर्च हो जाता है । दूसरी तरफ ऐसे किसानों की कमी भी नहीं है जो खेती माहिरों की सिफारिशों अनुसार गेहूं व धान के अवशेष को आग लगाए बगैर ही खत्म कर यह सिद्ध कर रहे हैं कि आग लगाए बगैर भी पराली का आसानी के साथ निपटारा किया जा सकता है। ऐसे किसानों और कृषि माहिरों अनुसार पराली को खेत में खत्म करने के कई तरीके हैं।
हैप्पीसीडर के साथ बिजाई
कम्बाइन के साथ धान की फसल काटने के बाद पराली को बिना जोते खेत में छोड़ कर इसी खेत में हैप्पीसीडर या खुली कतारों वाली ड्रिल के साथ गेहूं की बिजाई की जा सकती है। सुपर एस.एम.एस. वाली कम्बाइन या पी.ए.यू. स्ट्रॉय कटर-कम-सपरैडर के साथ यह काम और भी आसानी के साथ किया जा सकता है। जिसके साथ पराली कुतरने के बाद पी.ए.यू. हैप्पीसीडर के साथ गेहूं की बिजाई की जा सकती है। माहिरों अनुसार इस विधि के द्वारा गेहूं की बिजाई करने के साथ प्रति हैक्टेयर तकरीबन 20 लीटर डीजल की बचत की जा सकती है। इतना ही नहीं इस विधि के साथ खेत में पानी की बचत भी होती है।
पराली को खेत में जोतना
माहिरों अनुसार कम्बाइन के साथ धान की फसल काटने के बाद खेत में बचे धान के अवशेष को मशीन के साथ कुतरने के बाद उल्टाविए हलों, रोटावेटर, कल्टीवेटर और तवों आदि के साथ जोतकर जमीन में मिलाया जा सकता है। कुछ किसान ऐसा इसलिए नहीं करते कि पराली को गलने के लिए समय कम मिलता है और शुरू में गेहूं का रंग पीला पड़ जाता है, परन्तु माहिरों का दावा है कि यदि गेहूं की बिजाई से 20-22 दिन पहले पराली को खेत में जोत कर मिलाया जाए तो यह समस्या दूर हो जाती है। आंकड़ों से पता लगा है कि लगातार पराली खेत में जोतने के साथ 3 सालों के बाद गेहूं के झाड़ और मिट्टी की सेहत पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है।
विभिन्न कामों के लिए पराली का प्रयोग
धान की पराली को कई कामों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जिसके अंतर्गत पराली को खेत में से बाहर निकाल कर इसका चार बना कर, ऊर्जा के स्रोत के तौर पर उद्योगों में उपयोग करने के अलावा इसकी कम्पोस्ट खाद बनाई जा सकती है। पराली को मलङ्क्षचग के लिए, खुंबों की काश्त के लिए और बायोगैस प्लांट आदि में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
कई पक्षों से लाभप्रदहै पराली की संभाल
उपरोक्त विधियों के अलावा किसानों के तजुर्बों और खेती विज्ञानियों के अनुसार पराली के निपटारे के लिए और भी कई आसान विधियां प्रचलित हो गई हैं। यदि किसान इन विधियों अनुसार कार्य करते हैं तो वातावरण की शुद्धता बढऩे के साथ-साथ किसानों के खेती खर्च कम होने और जमीनों की भौतिक अवस्था में सुधार आने जैसे कई कार्यों में राहत मिलेगी। माहिरों के अनुसार पराली के जमीन की सतह पर रहने के साथ मिट्टी में नमी बरकरार रहती है। मिट्टी या पौधे का तापमान ठीक रहता है और यह मिट्टी का अधिक से अधिक तापमान कम रखने में सहायक होती है। एक टन पराली में 400 किलो जैविक कार्बन, 5-8 किलो नाइट्रोजन, 1.6-2. 7 किलो फासफोरस, 14-20 किलो पोटाशियम और 0. 5-1. 0 किलो गंधक मौजूद होते हैं। पराली मिट्टी में मिलाने और गलने के बाद इस बीच वाले तत्वों को धरती में ही छोड़ देती है जो जमीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने में सहायक होते हैं।