Edited By Updated: 17 Apr, 2017 11:55 PM
दावों के अनुसार पाकिस्तान इस समय ऐसे जासूसों की जकड़ में है जो इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा का कबाड़ा कर रहे हैं....
दावों के अनुसार पाकिस्तान इस समय ऐसे जासूसों की जकड़ में है जो इसकी राष्ट्रीय सुरक्षा का कबाड़ा कर रहे हैं। सबसे पहले भारतीय जासूस कुलभूषण जाधव को सजा दिए जाने का मुद्दा गर्म था और अब हमें बताया जा रहा है कि लयारी गैंगस्टर उज्जैर बलोच ईरानियों के लिए जासूसी करता है। यह मामला उस समय और भी संदिग्ध बन गया जब लै. कर्नल (रिटा.) हबीब जहीर नेपाल में रहस्यमय ढंग से गायब हो गया। सुनने में आ रहा है कि उसे भारतीय जासूसी एजैंसी ‘रॉ’ के एजैंटों ने अगवा कर लिया है।
ऐसी अटकलों का बाजार गर्म है कि लै. कर्नल वास्तव में आई.एस.आई. का एजैंट है और किसी न किसी तरह उसका जाधव प्रकरण से संबंध है। हालांकि पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने इस बात से इंकार किया है कि गत वर्ष बलोचिस्तान से भारतीय जासूस की गिरफ्तारी से हबीब का कोई लेना-देना है। पूर्व भारतीय कूटनयिक मणिशंकर अय्यर सहित कुछ भारतीय विश£ेषकों ने यह संकेत दिया है कि कथित आई.एस.आई. एजैंट को भारतीय जल सेना के पूर्व अधिकारी जाधव की रिहाई के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है।
पाकिस्तानी सेना इस बात पर अड़ी हुई है कि जाधव को हर हालत में सजा दी जाएगी और इस मामले में वह किसी भी दबाव के आगे नहीं झुकेगी। गत दिनों जब पाकिस्तानी चीफ ऑफ स्टाफ जनरल कमर जावेद बाजवा प्रधानमंत्री शरीफ से मिलने गए तो बार-बार उन्होंने सेना का यही स्वर दोहराया था। दिलचस्प बात यह है कि जासूस बनाम जासूस के खेल में अदला-बदली की रिहाई कोई असाधारण बात नहीं। ऐसी अदला-बदली का सबसे प्रसिद्ध मामला है अमरीकी जासूस गैरी पावर्स का। उसे 1960 में पूर्व सोवियत यूनियन के वायु क्षेत्र में जासूसी विमान उड़ाने के दौरान गिरफ्तार किया गया था। उसने पाकिस्तान के पेशावर हवाई अड्डे से सी.आई.ए. की सहायता से उड़ान भरी थी और जब उसका जहाज सोवियत यूनियन के इलाके में काफी दूर तक चला गया तो इसे गिरा दिया गया था।
जहाज गिराए जाने के बावजूद पावर्स को जिंदा दबोच लिया गया था। बाद में उसे 10 वर्ष की सजा हुई और आखिर में रूडोल्फ एबैल नामक रूसी जासूस के बदले में उसे रिहाई मिल पाई थी। रूडोल्फ को काफी पहले अमरीका में गिरफ्तार किया गया था। लम्बे समय तक सैन्य अदालत में मुकद्दमा चलने के बाद अदालत के बाहर हुई सौदेबाजी के फलस्वरूप यह अदला-बदली जर्मनी के शहर बॢलन के ग्लिनेनसाइक ब्रिज पर हुई थी।
इन दोनों जासूसों की अदला-बदली के लिए हुई सम्पूर्ण बातचीत काफी कठिनाई भरी थी और इसकी कैमरा रिकाॄडग की गई थी जिसके आधार पर ‘ब्रिज ऑफ स्पाई’ज’ (जासूसों का पुल) नामक एक प्रसिद्ध फिल्म का निर्माण हुआ था जो 2015 में रिलीज हुई थी। मुझे तब बहुत हैरानी हुई जब बलोचिस्तान में जाधव को गिरफ्तार करने वाले पाकिस्तानी अधिकारी ने इस फिल्म का उल्लेख किया। इस आई.एस.आई. अधिकारी से मैं कुछ अन्य पत्रकारों के साथ क्वेटा में उस समय मिला था जब मैं बलोचिस्तान के दौरे पर गया हुआ था।
उस अधिकारी ने बहुत सीना फुलाते हुए दावा किया था कि भारतीय जासूस जाधव को रंगे हाथों गिरफ्तार किया जाना गैरी पावर्स की गिरफ्तारी के बाद दुनिया में गुप्तचर इतिहास में यह दूसरा सबसे बड़ा कांड था। यह निश्चय ही बहुत बड़ा मामला नहीं और इसे आसानी से सुलझाया जा सकता है। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज संसद को इस मुद्दे पर जानकारी देते समय कुछ हद तक बचाव की मुद्रा में दिखाई दे रही थीं जब उन्होंने यह वायदा किया कि गिरफ्तार भारतीय अधिकारी को हर संभव सहायता उपलब्ध करवाई जाएगी।
इसी बीच पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एन.एस.ए.) लै. जनरल (रिटा.) नसीर जंजुआ नई दिल्ली को सकारात्मक संदेश दे रहे हैं। पाकिस्तानी एन.एस.ए. के अनुसार पाकिस्तान और भारत हमेशा के लिए दुश्मन नहीं बने रह सकते। फिर भी मोदी सरकार पाकिस्तान के साथ वार्ता चलाने की रुचि नहीं दिखा रही। आखिर यह ऐसा करे भी क्यों? जिस प्रकार अभी-अभी भाजपा ने विधानसभा चुनावों में धमाकेदार जीत दर्ज की है उसके मद्देनजर पाकिस्तान विरोधी और मुस्लिम विरोधी स्वर इसके लिए काफी सहायक सिद्ध हो रहे हैं।
कुलभूषण जाधव को मौत की सजा सुनाए जाने के अगले ही दिन पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी के साथ जो व्यवहार हुआ वह वर्तमान भारतीय मानसिकता का परिचायक है। कसूरी दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनैशनल सैंटर में जब भारत-पाक शांति के विषय पर बोल रहे थे तो युद्धोन्मादी श्रोताओं की भीड़ ने बात-बात उनकी हूटिंग की थी। पूर्व भारतीय जल सेना अधिकारी के विरुद्ध पुख्ता आरोपों के बावजूद उज्जैर बलोच पर ईरानी जासूस होने का आरोप लगाया जाना कई नए सवाल खड़े करता है।
आतंकवाद से निपटने के बहाने सऊदी अरब द्वारा बनाए गए इस्लामी सैन्य गठजोड़ में शामिल होने के बावजूद पाकिस्तान सदा से ही यह मानता आया है कि ईरान एक बिरादराना इस्लामी देश है। यह तो किसी अति-यथार्थवादी सपने जैसा है कि कराची के कोर कमांडर और जल सेना कमांडर की जासूसी करने के लिए ईरान उज्जैर बलोच जैसे एक ऐसे बदमाश को भर्ती करेगा जिसका काम हत्या, चोरी, डकैती और छीनाझपटी ही है। जासूसी तो एक प्रोफैशनल खेल है। आखिर वे कौन लोग थे जो उज्जैर बलोच को एक अपराधी से बदल कर तेज-तर्रार जासूस के रूप में उसका कायाकल्प करने में सफल हुए?
सरकारी आशीर्वादों से पूर्व पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल रहील शरीफ को कथित इस्लामिक मिलिट्री गठजोड़ का नेतृत्व करने के लिए भेजे जाने के तत्काल बाद उज्जैर बलोच के बारे में होने वाले खुलासों की टाइमिंग कुछ अजीबो-गरीब सी लगती है। बेशक ऊबा देने की हद तक यह प्रचार किया जा रहा है कि प्रस्तावित सैन्य गठजोड़ किसी भी तरह ईरान के विरुद्ध नहीं, फिर भी स्पष्ट तौर पर ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान ने मध्य पूर्व में रणनीतिक भूमिका अदा करने का रास्ता चुना है।
सऊदी अरब के धार्मिक मामलों के मंत्री और इमाम-ए-काबा सहित सऊदी अरब के कुछ हाई प्रोफाइल अधिकारियों के दौरे के बाद गत सप्ताह इस्लामिक देशों के संगठन ओ.आई.सी. के महासचिव ने भी पाकिस्तान की यात्रा की। इस यात्रा की टाइमिंग अनेक संदेह पैदा करती है। अपनी बातचीत दौरान इमाम-ए-काबा ने खुल कर तेहरान की आलोचना की। उनके अनुसार ईरानियों ने क्रांति के समय से लेकर यमन के हाउती विद्रोहियों का समर्थन करने और शेष खाड़ी देशों में नीतियों की निगरानी करने सहित सऊदी अरब को अस्थिर करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया है।
ऐसा लगता है कि ईरान पर जासूसी का खुलेआम आरोप लगाकर पाकिस्तानी सत्तातंत्र ने यह स्वीकार कर लिया है कि अपने इस पड़ोसी को दोषी करार दिया जाए। पाकिस्तान के अंदर बेशक कितना भी विरोध क्यों न हो रहा हो, मध्य पूर्व के खौलते परिदृश्य में बाहरी और आंतरिक स्तर पर हम किन शक्तियों के साथ खड़े होते हैं, इसके बहुत दूरगामी परिणाम होंगे लेकिन किसी ने इस मुद्दे पर उचित ढंग से ङ्क्षचतन-मनन नहीं किया। उज्जैर बलोच अपराधी हो या न, यह अपने आप में बहुत बड़ा सवाल उठाता है। ऐसा लगता है कि इस्लामाबाद अब चीन को छोड़ कर अपने प्रत्येक पड़ोसी के साथ पंगेबाजी में उलझा हुआ है। इसीलिए शायद अफगान गुप्तचर एजैंसी एन.डी.एस., भारतीय रिसर्च एंड एनालसिस विंग (रॉ) और ईरान के जासूस एकजुट होकर पाकिस्तान को अस्थिर करने पर आमादा हैं।
पाकिस्तान के लिए यह स्थिति किसी भी तरह प्रसन्नतापूर्ण नहीं है क्योंकि यह बिल्कुल अपने आस-पड़ोस में उसके पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाने का प्रमाण है। प्रधानमंत्री शरीफ ने विदेश मंत्रालय का काम अपने पास ही रखा है लेकिन व्यावहारिक रूप में अपने पूर्ण कार्यकाल दौरान विदेशी और सुरक्षा नीतियां उन्होंने सैन्य नेतृत्व को आऊटसोर्स कर रखी हैं। परिणाम यह हुआ है कि एकल आयामी सुरक्षा नीति ने पाकिस्तान को सांप-छछुंदर की स्थिति में फंसा दिया है। अमरीकी विदेश विभाग ने जिस तरह अपने नागरिकों को पाकिस्तान की यात्रा न करने की ताजातरीन एडवाइजरी जारी की है वह हमारी विफल हो चुकी नीतियों पर एक करारी चपत है।
अपनी एडवाइजरी में वाशिंगटन ने कहा है, ‘पाकिस्तान के एक छोर से दूसरे तक विदेशी एवं स्थानीय आतंकी गुट अमरीकी नागरिकों के लिए खतरा बने हुए हैं। साक्ष्यों से यह संकेत मिलता है कि आतंकी गतिविधियों के कुछ शिकारों को केवल इसलिए लक्ष्य बनाया गया क्योंकि वे अमरीकी थे। आतंकी और अपराधी गुटों ने फिरौती लेने के लिए अपहरण करने का काम शुरू कर रखा है।’ इसी एडवाइजरी में आगे कहा गया है : ‘‘पूरे पाकिस्तान में मजहबी गुटों पर आधारित ङ्क्षहसा एक गंभीर चुनौती है। पाकिस्तान सरकार ईशङ्क्षनदा संबंधी कानूनों को लागू करना जारी रखे हुए है। इसी के चलते धार्मिक अल्पसंख्यक लक्षित हमलों के शिकार हो रहे हैं।’’
स्पष्ट है कि बेशक पाकिस्तान सरकार यह दावा करती है कि आतंकवादी भाग उठे हैं, तो भी दुनिया इसे बिल्कुल अलग तरह से देखती है। सीमांत प्रांत के मर्दान जिले में हाल ही में भीड़ द्वारा एक छात्र को पीट-पीट कर मार देने की घटना असहिष्णुता के वातावरण की तस्वीर बयां करती है। फिर भी सरकार बहुत बड़े-बड़े दावे करने से बाज नहीं आ रही हालांकि किसी को भी इनकी सत्यता पर विश्वास नहीं हो रहा।(मंदिरा पब्लिकेशन)