गुरदीप सिंह ने पूर्व DGP की आतंकियों से बचाई थी जान, पूर्व इंस्पैक्टर ने मांगी बेटे के लिए DGP से नौकरी

Edited By Mohit,Updated: 13 Jun, 2019 02:28 PM

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15 मई 1988 का दिन था। जिला जालंधर के भोगपुर थाने के करीब ही पंजाब पुलिस व आतंकियों में मुठभेड़ हो गई। आतंकियों ने तत्कालीन ए.सी.पी. फिल्लौर व पूर्व डी.जी.पी. पंजाब सुमेर सिंह सैनी की गाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया।

अमृतसर (सफर): 15 मई 1988 का दिन था। जिला जालंधर के भोगपुर थाने के करीब ही पंजाब पुलिस व आतंकियों में मुठभेड़ हो गई। आतंकियों ने तत्कालीन ए.सी.पी. फिल्लौर व पूर्व डी.जी.पी. पंजाब सुमेर सिंह सैनी की गाड़ी को चारों तरफ से घेर लिया। आतंकियों की गोलियों के बीच से सुमेर सिंह सैनी को सकुशल बचा कर दूसरी गाड़ी तक लाने वाले पूर्व सब-इंस्पैक्टर गुरदीप सिंह की बहादुरी की मिसाल देनी होगी। मुठभेड़ के दौरान पुलिस की जिप्सी पलट गई और इंस्पैक्टर गुरदीप सिंह की रीढ़ की हड्डी में ऐसी चोट लगी कि तब से अब तक सीधे खड़े नहीं हो पाते। 73 साल की उम्र में बेटे जगजीत सिंह की नौकरी के लिए उन्होंने 2 प्रतिशत आरक्षित कोटा (आतंकियों से मुठभेड़ करने वाले पंजाब पुलिस के जवानों के परिवारों के लिए आरक्षित) पंजाब के डी.जी.पी. से मांगा था, लेकिन अब अमृतसर देहाती पुलिस उनसे सबूत मांग रही है कि आतंकियों से कब-कब मुठभेड़ हुई थी, उसकी एफ.आई.आर. कहां है। आतंकियों की गोलियों से कभी नहीं डरा, 10 मुकाबले किए।

‘पंजाब केसरी’ से बातचीत करते हुए पूर्व इंस्पैक्टर गुरदीप सिंह ने कहा कि जब मैं ए.सी.पी. सुमेर सिंह सैनी को कंधे पर उठाकर गोलियों के बीच से दूसरी गाड़ी तक लेकर गया तो जिप्सी पलटने से जख्मी हो गया। उसके बाद सीधा खड़ा नहीं हो पाया। मेरी बहादुरी पर पीठ थपथपाने वाले तब से अब तक कई डी.जी.पी. आए लेकिन किसी ने मेरी नहीं सुनी। आतंकियों से लडऩा तो आसान था, लेकिन पुलिस तंत्र से मैं लड़ नहीं पा रहा हूं, मेरे विभाग के लोग आज मुझसे पूछते हैं कि आतंक के खिलाफ मैंने किया क्या था, आज पुलिस की कार्यप्रणाली से मैं बहुत आहत हूं।

नाम सुनकर भागते थे आतंकी
इस उम्र में गुरदीप सिंह का जोश देखते ही बनता है। कहते हैं कि मेरा नाम सुनकर आतंकी भागते थे, 12 आतंकियों को जिंदा गिरफ्तार किया है जबकि 45 आतंकियों को स्पैशल कोर्ट से सजा दिलाई। 2003 में सेवामुक्त हुआ हूं लेकिन आज भी दम रखता हूं कि निशाना मेरे चूकेगा नहीं, न मेरे कदम पीछे हटेंगे। 

8 साल हो गए बेटे के लिए नौकरी मांगते-मांगते 
आतंकियों से लडऩे वाले हाथ भले ही कमजोर पड़ गए हों लेकिन बुढ़ापे में भी गुरदीप सिंह किसी से कम नहीं है। कहते हैं कि 7 सितम्बर 2011 को तत्कालीन डी.जी.पी. परमदीप सिंह गिल ने चिी  (नंबर-8635) में बेटे को नौकरी देने के लिए लिखा था। अमृतसर पुलिस कमिश्रर ने 11 अक्तूबर 2013 को नौकरी देने की सिफारिश की थी। चूंकि मैं मजीठा पुलिस (देहाती अमृतसर पुलिस) में था, ऐसे में अब डी.जी.पी. पंजाब ने (चिी नं.-7902-सीडी-19-3-2019) अमृतसर देहाती पुलिस से सारी जानकारी मांगी है कि मैंने कब-कब आतंकियों से मुठभेड़ की। उधर, इस चिट्ठी का जवाब देने में अमृतसर देहाती पुलिस उल्टा हमसे ही जवाब मांग रही है कि सबूत दो, जबकि पुलिस को सबूत पिछले 8 सालों में 10 बार दे चुके हैं। 

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