UP के साथ पंजाब में भी है बसपा के लिए चुनौती

Edited By Updated: 20 Feb, 2017 01:50 PM

the challenge for bsp in punjab

यू.पी. की सता में वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही बसपा के सामने जहां भाजपा के अलावा कांग्रेस व सपा गठबंधन की चुनौती है।

लुधियाना(हितेश): यू.पी. की सता में वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही बसपा के सामने जहां भाजपा के अलावा कांग्रेस व सपा गठबंधन की चुनौती है। वहीं, पिछले हालातों को देखते हुए बहुजन समाज पार्टी को पंजाब के हालातों को लेकर भी चिंता सता रही है कि वजूद बचेगा या हालत पहले से भी पतली हो जाएगी। वर्णनीय है कि बसपा के संस्थापक कांशी राम का संबंध पंजाब से है और उन्होंने यहीं से डी.एस. 4 संगठन की स्थापना करने के बाद बहुजन समाज पार्टी का गठन किया था। 1992 में अकालियों द्वारा बायकाट करने के दौरान बसपा के 9 विधायक जीते थे और काफी सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे। इसके बावजूद बसपा ने 1997 में सिर्फ 67 उम्मीदवार ही खड़े किए जिनमें से सिर्फ शिंगारा राम ही जीते। हालांकि उम्मीदवारों का जो आंकड़ा 2002 से लेकर अब तक बढ़ता रहा और मौजूदा चुनावों में 2012 की 117 सीटों की जगह इस बार 111 सीटों पर बसपा के उम्मीदवार खड़े हैं। इसमें से 34 सीटें रिजर्व हैं। लेकिन उनमें से कोई प्रभाव छोड़ता नजर नहीं आ रहा, क्योंकि बसपा की जगह कांग्रेस व अकाली-भाजपा ने दलित वोट बैंक पर डोरे डालने का जोर पिछले कुछ समय से लगाया हुआ है। 

अब ‘आप’ की नजरें भी दलित वोट बैंक पर लगी हुई हैं। इसके संकेत दलित डिप्टी सी.एम. बनाने के ऐलान से मिल चुके हैं। इस दौर में अपना पुराना रिपोर्ट कार्ड देखकर बसपा को डर सताना स्वभाविक भी है, क्योंकि पंजाब में देश के सबसे ज्यादा 32 फीसदी दलित वोटर होने के बावजूद उन पर अपना हक जताने वाली पार्टी बसपा के विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों की संख्या में 1992 के बाद 1997 को छोड़कर भले ही हर बार इजाफा हुआ है लेकिन वोट शेयर डाऊन होने सहित जमानत जब्त होने की औसत भी बढ़ रही है। 

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