चुनावी समझौता करने वाली पार्टियों को तरजीह देती है पंजाब की जनता

Edited By Updated: 15 Dec, 2016 09:51 AM

punjab election 2017

तृणमूल कांग्रेस ने पंजाब में आम आदमी पार्टी अथवा कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में उतरने का विकल्प खुला रखने के बयान के बाद राज्य में चुनावी गठजोड़ को लेकर नई चर्चा छेड़ दी है।

जालंधर: तृणमूल कांग्रेस ने पंजाब में आम आदमी पार्टी अथवा कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में उतरने का विकल्प खुला रखने के बयान के बाद राज्य में चुनावी गठजोड़ को लेकर नई चर्चा छेड़ दी है। पिछले 40 साल में हुए अधिकतर चुनावों में गठबंधन करने वाली पार्टी ही सत्ता में आई है। राज्य में मौजूद अकाली-भाजपा सरकार गठबंधन के दम पर ही लगातार कुर्सी तक पहुंची है जबकि 1997 में भी गठबंधन की बदौलत ही अकाली-भाजपा को जबरदस्त जीत हासिल हुई थी। 1972 से लेकर अब तक हुए 9 विधानसभा चुनावों में से 6 विधानसभा चुनावों में गठजोड़ करने वाली पार्टी ही सत्ता तक पहुंची है। कांग्रेस ने 1972 के चुनाव में लैफ्ट के साथ चुनाव समझौता किया था और कांग्रेस कुल 66 सीटें जीतकर सत्ता में आ गई थी जबकि सी.पी.आई. को भी उस वक्त 10 सीटें हासिल हुई थीं।

इसी प्रकार अकाली दल ने 1977 में जनता पार्टी के साथ समझौता किया तो अकाली दल को 58 और जनता पार्टी को 25 सीटें हासिल हुईं। हालांकि 1980 के चुनाव में अकाली दल लैफ्ट के साथ समझौते के बावजूद चुनाव हार गया था और कांग्रेस 63 सीटें जीत कर सत्ता में पहुंच गई थी। 1985 में अकाली दल और भाजपा के मध्य चुनावी समझौते के चलते ही अकाली दल को 73 और भाजपा को 6 सीटें हासिल हुईं। 1992 के चुनाव का अकाली दल द्वारा बहिष्कार करने के कारण कांग्रेस अपने दम पर चुनाव जीत गई थी लेकिन इस दौरान मत प्रतिशत सिर्फ  23.82 प्रतिशत रहा था।

1997 के चुनाव में गठजोड़ के चलते अकाली दल को 75 और भाजपा को 18 सीटें हासिल हुईं। हालांकि 2002 का चुनाव इस मामले में अपने आप में अपवाद है और कांग्रेस कैप्टन अमरेंद्र की अगुवाई में 62 सीटें जीतकर सत्ता हासिल करने में सफल रही थी। 2007 के चुनाव भी गठजोड़ में लड़े गए और अकाली दल को 48 और भाजपा को 19 सीटें हासिल हुईं जबकि 2012 के चुनाव में अकाली दल को 56 और भाजपा को 12 सीटें हासिल हुई थीं।

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