किस्मत का मारा बेघर बना रैन-बसेरा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Dec, 2017 01:49 PM

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देश की जनसंख्या 125 करोड़ से अधिक होने पर आधे से अधिक लोगों के पास अपना घर नहीं है, जबकि कुल जनसंख्या के 10 प्रतिशत लोग आज भी फुटपाथों पर सो कर रात गुजारते हैं। गर्मी, सर्दी व बरसात में उनका आशियाना फुटपाथ ही होता है। इस पर उच्च न्यायालय ने संज्ञान...

बठिंडा: देश की जनसंख्या 125 करोड़ से अधिक होने पर आधे से अधिक लोगों के पास अपना घर नहीं है, जबकि कुल जनसंख्या के 10 प्रतिशत लोग आज भी फुटपाथों पर सो कर रात गुजारते हैं। गर्मी, सर्दी व बरसात में उनका आशियाना फुटपाथ ही होता है। इस पर उच्च न्यायालय ने संज्ञान लेते हुए सभी नगर कौंसिलों, नगर निगमों, पंचायतों को विशेष तौर पर रैन बसेरा बनाने के निर्देश जारी किए हैं। बठिंडा नगर निगम में 2 रैन बसेरा चल रहे हैं जबकि 1 रैन बसेरा रैड क्रॉस की देन है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर रैन बसेरा तो बना दिए गए परन्तु उनका संचालन समाज सेवी संस्था कर रही है जो रैन बसेरा में रहने वाले बेसहारों के लिए बिस्तरे के अलावा खाने का प्रबंध भी करती है। बठिंडा नगर निगम ने इसकी जिम्मेदारी सहारा जन सेवा को सौंप दी है जिसके अध्यक्ष विजय गोयल की देखरेख में उसके वालंटियर बेसहारों को सहारा देने में लगे रहते हैं। खान-पान का प्रबंध भी सहारा जन सेवा की ओर से किया जाता है जबकि नगर निगम की ओर से रैन बसेरा बनाए गए हैं जिनमें बिजली, कूलर, पंखे व शौचालय आदि का प्रबंध भी किया गया है। 

उच्च न्यायालय के आदेश पर बने रैन बसेरा 
वर्ष 2012-13 में उच्च न्यायालय ने बेघरों की दशा के आधार पर सभी राज्यों को प्रत्येक जिले में रैन बसेरा बनाने के लिए आदेश जारी किए थे। आंकड़ों पर नजर डालें तो देश के 10 प्रतिशत लोग अभी भी फुटपाथों पर ही अपनी पूरी जिंदगी गुजार देते हैं, जिसे लेकर रैन बसेरा का निर्माण हुआ। नगर निगम बठिंडा ने निगम के पुराने कार्यालय में 4 कमरों में रैन बसेरा बनाया जबकि एक रैन बसेरा अमरीक सिंह रोड अन्नपूर्णा मंदिर के पास पुराने पटवारखाने के एक कमरे में बनाया गया। इसमें अक्सर ताला ही जड़ा रहता है क्योंकि इन रैन बसेरा में रहना कोई पसंद नहीं करता। न ही वहां कोई ऐसी व्यवस्था है कि इच्छुक बेघर आकर इसका लाभ उठा सकें। नगर निगम ने खानापूर्ति करते हुए रैन बसेरे तो बना दिए, लेकिन उसका प्रबंध सहारा जन सेवा को सौंप दिया। बेशक सहारा अच्छा काम कर रही है परन्तु इसमें नगर निगम व सरकार का कोई योगदान नहीं। वह अपने बलबूते पर ही बेघरों व बेसहारों के भोजन व रहने का प्रबंध करती है। 

क्या कहना है सहारा जनसेवा का
सहारा जनसेवा के अध्यक्ष विजय गोयल का कहना है कि उन्होंने रैन बसेरा के लिए 60 रजाइयों व कंबलों का प्रबंध किया हुआ है। बावजूद इसके कोई भी इसमें रहना पसंद नहीं करता। उनका कहना है कि रैन बसेरा के अंदर सो रहे बेसहारा को कोई भी दान नहीं मिलता जबकि फुटपाथ पर सोने पर लोगों की धार्मिक व सामाजिक भावनाएं जागती हैं जिस कारण वे दान के रूप में उन्हें गर्म कपड़े व अन्य सामान दे जाते हैं। गोयल ने बताया कि संस्था द्वारा भी बेसहारों की पूरी मदद की जाती है लेकिन माल गोदाम रोड पर बने रैन बसेरा के साथ लगे फुटपाथ पर रोजाना लगभग 100 से 150 लोग सोते हैं।


नशे की लत, ठिठुरती ठंड फिर भी मिलता है खुला आसमां  
उच्च न्यायालय के निर्देश व नगर निगम के प्रयास से 25-25 बिस्तरों के 2 रैन बसेरा तैयार किए गए परन्तु उनमें ठहरने वालों की संख्या नदारद ही है। आमतौर पर भीख मांगकर गुजारा करने वाले बेसहारा, जो पैसे एकत्र होते हैं उससे नशे का सेवन करते हैं जो सामाजिक संस्थाओं के लिए परेशानी का सबब बनता है। ऐसा कोई कानून नहीं कि भीख मांगकर शराब या अन्य कोई नशा न किया जा सके परन्तु भीख मांगना कानून के दायरे में नहीं आता। बेघरों में कुछ ऐसे दिव्यांग भी हैं जो चल-फिर नहीं सकते। यहां तक कि कइयों के अंग बेकार हैं या कट चुके हैं। उन्होंने अपना अस्थायी आशियाना फुटपाथों को ही बना रखा है। मानवता की भलाई को समॢपत कुछ लोग इनकी दुर्दशा देखकर इन्हें भोजन व रात को ओढऩे के लिए रजाई, कंबल दे जाते हैं परन्तु अगले दिन उनके कंबल गायब मिलते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें नशे की लत लगी है। वे अपना सब कुछ बेचकर भीख मांगते हैं जिससे एकत्र हुए पैसों से वे अपने नशे की आपूर्ति करते हैं। दान में मिले सामान को वे बेचकर उससे नशे का सेवन करते हैं। इसलिए ये लोग रैन बसेरा में न सोकर फुटपाथ पर सोना पसंद करते हैं।  

सर्दी से 2 लोगों की हो चुकी है मौत
रैन बसेरा में न रहकर फुटपाथ पर सोने वाले 2 लोगों की एक माह के दौरान मौत भी हो चुकी है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इनकी मौत फॉग व स्मॉग के समय अधिक ठंड पडऩे के कारण हुई। सहारा जन सेवा ने इन बेसहारों का कानूनी प्रक्रिया के बाद संस्कार तो कर दिया लेकिन बचे हुए लोग भी सर्दी में सुकड़ जाते हैं परन्तु रैन बसेरा में सोने को राजी नहीं होते। अब तक 4200 से अधिक बेसहारा लोगों के शवों का संस्कार कर चुकी सहारा जन सेवा व अन्य सामाजिक संस्थाओं का कहना है कि वे फुटपाथ पर सोने वालों के लिए पुख्ता प्रबंध करने को तैयार हैं अगर वे मानें तो। इनमें से कुछ ऐसे लोग भी है जिनको भोजन की कोई प्रवाह नहीं क्योंकि मंदिरों में रोजाना इन्हीं के लिए लंगर लगाया जाता है वहां से पेट भरकर खाना खाकर वे फुटपाथ पर सो जाते हैं। कुछ ऐसे बेसहारा भी हैं जो साधुओं के कपड़े पहनकर भीख मांगते हैं और शाम ढलते ही नशे का सेवन करते हैं। लोग उन पर तरस खाकर उन्हें दान में राशि व अन्य सामान दे देते हैं जबकि उनका मकसद तो कुछ और होता है। 
 

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