Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Dec, 2017 11:39 AM
भले ही समय-समय पर सरकारें गरीबी दूर करने, प्रत्येक बेघर को मकान देने, प्रत्येक परिवार को शौचालय मुहैया करवाने, गैस सिलैंडर देने, गरीबों के बच्चों के लिए पढ़ाई का प्रबंध करने आदि वायदे करती रही है परन्तु इन स्कीमों का लाभ जरूरतमंदों तक न पहुंचकर...
श्री मुक्तसर साहिब(दर्दी): भले ही समय-समय पर सरकारें गरीबी दूर करने, प्रत्येक बेघर को मकान देने, प्रत्येक परिवार को शौचालय मुहैया करवाने, गैस सिलैंडर देने, गरीबों के बच्चों के लिए पढ़ाई का प्रबंध करने आदि वायदे करती रही है परन्तु इन स्कीमों का लाभ जरूरतमंदों तक न पहुंचकर सिफारिशी लोगों तक ज्यादा पहुंच रहा है।
यदि गरीब बस्तियों और झुग्गियों में जाकर देखा जाए तो ये सरकारी दावे यहां हवा-हवाई साबित होते मालूम पड़ते हैं। श्री मुक्तसर साहिब की स्थिति पर ही नजर मारी जाए तो इन झुग्गियां में रहने वाले निवासियों की कठिनाइयों भरी जिंदगी बारे पता चलता है कि ये लोग कौन-कौन सी कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। इस नगर में नई दाना मंडी, रेलवे लाइन के नजदीक, थांदेवाला रोड, बाईपास, कोटली रोड के नजदीक सैंकड़ों लोग झुग्गियों में बिना मकानों के रहते हैं। रहने के लिए इन अलग-अलग परिवारों ने पॉलीथिन की तिरपालें लगा कर अस्थायी तौर पर झुग्गियां बनाई हुई हैं, जिनमें पूरा परिवार रहकर अपना गुजारा करता है। यह झुग्गी ही उनका बैडरूम है और यही रसोई है।
सरकार नहीं ले रही सुध
इन झुग्गियों में रहने वाले कुछ लोगों उफान बिंद, राम कुमार, रुकमा देवी, रजनी ने बताया कि सरकारी या कोई भी एजैंसी उनकी सार नहीं ले रही। केवल समाज सेवी कुछ संस्थाएं उनके पास कभी-कभी आती हैं और टैस्ट करके नाममात्र दवाइयां मुहैया करवाती हैं जोकि उनकी जरूरत से बहुत कम है। कई सरकारी कर्मचारी उनके पास आते हैं और नाम आदि लिख कर सभी सुविधाएं देने का वायदा करके चलते बनते हैं।
इन लोगों के रोटी का जगाड़ कूड़े-कर्कट में से काम की चीजें ढूंढना और उनको कबाडिय़ों तक बेचना है। जब कभी मजदूरी न मिले तो इनके लिए रोटी का गुजारा करना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बताया कि कुछ लोग कभी-कभी आकर इन झुग्गियों में लंगर और फल आदि बांट जाते हैं जिससे वे पेट पालते हैं।
बारिश होने पर बदलना पड़ता है आशियाना
औसतन प्रति परिवार 5 सदस्यों की संख्या एक झुग्गी में रहकर गुजारा कर रही है। जिन स्थानों पर ये झुग्गियां बनाई गई हैं, वहां कुछ सरकारी बिना इस्तेमाल वाली जगह व कुछ निजी जमीनें भी हैं। बारिश होने के उपरांत पानी इनकी झुग्गियों की तरफ बह जाता है और यह छप्पड़ का रूप धारण करके बीमारियों का कारण बनता है। इस स्थिति में ये लोग अपना सामान उठा कर सड़कों के किनारे या किसी ऊंची जगह पर गुजारा करते हैं और खड़े पानी के सूख जाने के बाद दोबारा फिर इन झुग्गियों को बनाते हैं।
4 साल के दिव्यांग भारत को कब मिलेगा इलाज
इन झुग्गियों में रह रहे गरीबों के लिए इलाज का कोई प्रबंध नहीं है। जिस कारण बहुत से बच्चे, महिलाएं सर्दी कारण स्वाइन फ्लू, नजला, जुकाम, खून की कमी का शिकार हैं। उनका कहना है कि भले ही सेहत विभाग ने इलाज के प्रबंध सिविल अस्पताल में किए हों परन्तु हमारे पास कोई साधन नहीं है कि हम अस्पतालों तक पहुंच सकें।
एक व्यक्ति उफान बिंद ने बताया कि उसका लड़का भारत जिसकी उम्र 4 साल के करीब है, वह दिव्यांग है, वह न चल-फिर सकता है व न ही बोल सकता है। उसके इलाज के लिए कोई सार लेने वाला नहीं है, पता नहीं उसे कब इलाज मिलेगा। सेहत विभाग को चाहिए कि हफ्ते में एक दिन ऐसे स्थानों पर डाक्टरी टीमें भेज कर इनका मुआयना और इलाज के प्रबंध किए जाएं।
बिना आधार कार्ड बच्चों को नहीं मिल रहा स्कूलों में एडमीशन
झुग्गियों में रहने वाले लोगों ने बताया कि वे बच्चों को पढ़ाने की ख्वाहिश रखते हैं परन्तु उनको स्कूलों में दाखिला नहीं मिल रहा क्योंकि स्कूल दाखिल करवाते समय स्कूल के अध्यापक उनसे आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड आदि की मांग करते हैं, जो किसी भी अधिकारी ने उनको बना कर नहीं दिए। हमें कोई भी देश का निवासी नहीं समझता। दाखिला न होने के कारण ये बच्चे पढ़ाई करने से असमर्थ हैं जबकि ये लोग काफी समय से इन स्थानों पर रह रहे हैं।