प्याज फिर निकाल रहा किसानों के आंसू

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Aug, 2017 10:49 AM

देश के किसानों की आर्थिक मंदहाली कभी राजनेताओं के  लिए मजाक बनी तो कभी इसका बड़े व्यापारी वर्ग ने खूब फायदा

फिरोजपुर/जीरा (जैन, अकालियांवाला): देश के किसानों की आर्थिक मंदहाली कभी राजनेताओं के  लिए मजाक बनी तो कभी इसका बड़े व्यापारी वर्ग ने खूब फायदा उठाया। किसान मेहनत करता है और फसल तैयार होने का इंतजार करता है, पर जब फसल मंडी में बिकने आती है तो उसके  पास दाम तय करने का अधिकार नहीं होता। व्यापारियों के हाथों में आई उसकी मेहनत का फायदा किसान को नहीं मिलता। 

अन्नदाता चिंता के आलम में डूबा 
प्याज का दाम इस वक्त लोगों की आंखों में आंसू ला रहा है। जब प्याज को उत्पादक किसान मंडियों में लेकर आए तो कौडिय़ों के भाव बिके इस प्याज को लेकर मंदसौर (मध्य प्रदेश) में कई किसानों की जान तक चली गई, जिसका मुख्य कारण उन्हें पूरी मेहनत न मिलना था। व्यापारियों ने जिस भाव प्याज खरीदा उसका दाम कुछ ही महीनों में 20 गुना ज्यादा हो गया और जिसके चलते अन्नदाता चिंता के आलम में डूब गया। वहीं आलू किसानों के लिए सिरदर्दी बना हुआ है।

पंजाब का प्याज लंबे समय तक नहीं होता स्टोर
पंजाब की भूमि खुश्क होने के कारण यहां से पैदा होने वाले प्याज को लंबे समय तक स्टोर नहीं किया जा सकता। प्याज उत्पादकों का कहना है कि ऐसा नहीं कि राज्य की धरती पर प्याज की खेती कम होती है। किसान पवित्र सिंह नागपाल मुताबिक प्याज को जहां मिर्चों के साथ बोया जा सकता है, वहीं दोहरी फसल लेने के लिए किसान मैथा की खेती के साथ इसकी बिजाई कर सकते हैं।

आलू उत्पादकों को किराया देना हुआ कठिन
प्याज के भाव में तेजी आने से हर तरफ हाहाकार मची है और गृहिणियों का बजट हिल गया है, वहीं आलू उत्पादकों को मंदे की मार व स्टोरों में पड़ रहे किराए की ङ्क्षचता सता रही है। गांव अलीपुर के किसान हरजिन्द्र सिंह ने बताया कि 10 एकड़ की खेती की थी और आसपास गांवों के किसानों ने करीब 500 एकड़ में आलू बोया था। जो लाभ देने की बजाय भाव न बढऩे से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। 

सरकारी नीतियों की मार
किसान को जहां सरकारी नीतियों की मार पड़ रही है, वहीं व्यापारी वर्ग के हाथों किसान लुटता जा रहा है। कभी बेसहारा मवेशी कसानों की फसलें उजाड़ रहे हैं तो कभी कुदरती आपदाएं अन्नदाता के लिए ङ्क्षचता का विषय है, जिसके  चलते उत्पादकों के हाथ कुछ नहीं लगता। खरीदार किसान के पास अनाज, सब्जियों के भंडार हेतु उचित जगह न होने से काफी परेशानी होती है। सरकार द्वारा काऊ सैस लेने के बावजूद बेसहारा मवेशियों से परेशानी से निजात नहीं दिलवाई जा रही। 

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