Edited By Updated: 22 Jan, 2017 11:15 AM
चुनाव दौरान शराब मुफ्त बांटने का चलन 70 वर्ष से चला आ रहा है। जैसे ही चुनाव आते हैं, सभी दल मतदाताओं को लुभाने के लिए शराब की सैंकड़ों पेटियां अपने हलके के वर्करों को बांट देते हैं, ताकि वे इलाके में शराब का वितरण करें।
अमृतसर (इन्द्रजीत): चुनाव दौरान शराब मुफ्त बांटने का चलन 70 वर्ष से चला आ रहा है। जैसे ही चुनाव आते हैं, सभी दल मतदाताओं को लुभाने के लिए शराब की सैंकड़ों पेटियां अपने हलके के वर्करों को बांट देते हैं, ताकि वे इलाके में शराब का वितरण करें। शराब देते समय वर्कर एक हाथ में बोतल व दूसरा हाथ मतदाता के घुटने को लगाते हुए अपने-अपने उम्मीदवार को वोट देने की अपील करते दिखाई देते हैं। शराब के आदी इन दिनों इस ‘उम्मीद’ में रहते हैं कि दोनों तरफ से शराब आएगी, किन्तु इस बार ऐसा लगता है कि शराब दो नहीं, तीन तरफ से आएगी और आजाद उम्मीदवारों ने माशाअला इनकी उम्मीदें और बढ़ा दी हैं।
पढ़े-लिखे मतदाता भी समझ चुके हैं कि शराब मतदाताओं को खुश करने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें खरीदने के लिए होती है।इस संबंध में ‘पंजाब केसरी’ ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि लोग अब शराब मुफ्त नहीं चाहते, बल्कि वे अपनी समस्याओं का समाधान भी चाहते हैं। शराब के बारे में बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि यदि हरियाणा में शराब सस्ती है तो पंजाब सरकार इसकी ब्लैक क्यों करती है?
देखा गया है कि मुफ्त की शराब पीकर प्राय: मतदाता का दृष्टिकोण बदल जाता है। 4 वर्ष तक उम्मीदवार को कोसने वाले मतदाता शराब के घूंट लगाते ही पिछली सभी बातें भूल जाता है। बड़ी बात यह है कि पढ़े-लिखे मतदाता अपनी बुद्धि के हिसाब से उम्मीदवारों का चयन अपने मन में किए होते हैं, मगर उनका चयन बीच में ही रह जाता है, जब मुफ्त की शराब के पियक्कड़ मतदान के दिन अपने कीमती मत ऐसे व्यक्ति को देकर जिता देते हैं, जो 5 वर्ष के लिए कहर बन जाता है। यही बात जीतने वाले उम्मीदवार पर ही नहीं, अपितु विपक्ष पर भी लागू होती है।
डा. अर्जुन सिंह
चुनाव दौरान शराब का दुष्प्रभाव उस समय दिखाई देता है, जब एक गरीब व्यक्ति मुफ्त की शराब देखकर बेकाबू हो जाता है और क्षमता से अधिक सेवन करता है, जो क्षेत्र या घर के माहौल खराब कर देता है। कई बार तो वह दुर्घटनाग्रस्त भी हो जाता है। शराब के कारण कई जानें भी जा चुकी हैं।
कर्मजीत सिंह जौहर, ट्रांसपोर्टर
मुफ्त की शराब पीने वाले जहां दोषी हैं, वहीं बांटने वाले भी उनका शोषण करते हैं। मतदाताओं को शराब जब पिलाई जाती है, तब यह कहा जाता है कि आप हमारे अपने हैं इसलिए आप को दावत दी जा रही है, किन्तु चुनाव समाप्ति के बाद वही उम्मीदवार कहता है ‘तुसी वोट पाया ए कोई अहसान नई कीता, असी वी पेटी दी पेटियां शराब दीयां दित्तियां हन’। अत: बाद में मतदाता को महसूस होता है कि वह ठगा गया है, किन्तु तब तक चिडिय़ा खेत चुग गई होती है और फिर आगामी 5 वर्ष के लिए चुनावों के इंतजार में मतदाता हाथ मलता है, जबकि चुनाव आने के बाद फिर वही बूढ़ी घोड़ी और वही रामदास आ जाता है।
इंजी. हरदीप सिंह
अभी उम्मीदवारों के नाम भी घोषित नहीं हुए होते पर शराब के धंधेबाज अपने रंग दिखाना शुरू कर देते हैं। वे जान लेते हैं कि कौन से उम्मीदवारों को टिकट मिलेगी अथवा किस की टिकट कट जाएगी। शराब के धंधेबाज इतने तेज होते हैं कि चुनावों में कई उम्मीदवारों की टिकट को उल्ट-पुल्ट देते हैं। देखा जाता है कि शराब के धंधेबाजों के गुर्गे चुनावों से एक वर्ष पूर्व ही सभी पार्टियों के संभावित उम्मीदवारों की गाडिय़ों में बैठ जाते हैं और खुले हाथों खर्च करते हैं।
अभिषेक, रियल एस्टेट एडवाइजर
चुनाव के दिनों में जहां मुफ्त शराब मिलती है, वहीं 5 वर्ष तक शराब इतनी महंगी रहती है कि कई गुणा के हिसाब से गरीबों का शोषण होता है। जो लोग चुनाव के दौरान मुफ्त की शराब पीकर बड़-बड़ी हांकते हैं, वहीं लोग जब सामान्य दिनों में शराब खरीदने जाते हैं तो उन्हें पता चलता है कि शराब अब कितनी महंगी पड़ रही है। शराब पीने से घर उजड़ते हैं, किन्तु वास्तविकता यह भी कि महंगी शराब घर जल्दी उजाडऩे का कारण बनती है।
दीपक भाटिया, मैंबर शिकायत निवारण कमेटी
जैसे ही चुनाव का बिगुल बजता है, वैसे ही उम्मीदवार बेरोजगार नौजवानों को अपना दास बना लेते हैं। वर्षों बेरोजगारी में से गुजरने के बाद जैसे ही इन्हें मुफ्त की शराब, थोड़े से पैसे और वैन की सवारी मिलती है तो बेरोजगार नौजवान गुंडा तत्वों में बदल जाते हैं। बूथ कैप्चरिंग करनी हो या सिर फुटव्वल, दंगा करना हो या हवाई फायरिंग, ऐसे कामों में उक्त युवा सबसे आगे होते हैं। अक्सर देखा जाता है कि चुनावों की चंद दिनों की चमक इनके पूरे जीवन को अंधकारमय कर देती है। चंद दिनों की मौज-मस्ती के बाद ये भोले-भाले जवान जेल जाकर अपना भविष्य बर्बाद कर लेते हैं।
संदीप सिंह, व्यापारी
चुनावी दौर में हर बार नेता वायदा करते हैं कि शराब चुनावों के बाद सस्ती कर दी जाएगी, किन्तु चुनावों के उपरांत हर बार पहले की अपेक्षा शराब महंगी हो जाती है। ऐसे में हर आदमी के मन में एक ही बात आती है कि सरकार सिर्फ अपना फायदा-नुक्सान ही सोचती है किन्तु गरीब आदमी के हित के लिए सरकार के वायदे किताबों में ही रह जाते हैं।
माधव, रियल एस्टेट व्यापारी