BSF के जवानों के सहारे रहते हैं भरियाल इलाके के लोग

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Jan, 2018 09:01 AM

gurdaspur bsf security

जिला गुरदासपुर बेशक सारा ही पिछड़ा हुआ है और इस जिले में विकास संबंधी किसी भी राजनीतिज्ञ ने कभी कोई पहल नहीं की परंतु इसके बावजूद जिले में एक इलाका ऐसा भी है जहां पर बिजली सप्लाई 24 घंटे उपलब्ध रहती है। अन्य सुविधाओं के नाम पर इस इलाके में कुछ भी...

 गुरदासपुर(विनोद): जिला गुरदासपुर बेशक सारा ही पिछड़ा हुआ है और इस जिले में विकास संबंधी किसी भी राजनीतिज्ञ ने कभी कोई पहल नहीं की परंतु इसके बावजूद जिले में एक इलाका ऐसा भी है जहां पर बिजली सप्लाई 24 घंटे उपलब्ध रहती है। अन्य सुविधाओं के नाम पर इस इलाके में कुछ भी नहीं है जिससे इस इलाके के लोग गर्व से अपने आपको पंजाब जैसे खुशहाल राज्य के नागरिक महसूस कर सकें। 

क्या भौगोलिक स्थिति है इस भरियाल टापू की
विधानसभा हलका दीनानगर तथा भोआ अधीन पड़ते इस भरियाल इलाके के तीन तरफ रावी दरिया तथा उ"ा दरिया बहता है जबकि एक और पाकिस्तान की सीमा लगती है। यह भरियाल इलाका लगभग 3000 एकड़ भूमि में फैला हुआ है। इस इलाके में पड़ते गांवों में तूर, चेबे, लसियान, भरियाल, मम्मी चक्करंगा, कुकर, कजले, झूमर, निक्का, ममका, मंझवाल सहित कुछ अन्य बेचराग गांव हैं। दरिया के पानी से होने वाले भूमि कटाव के कारण मंझवाल तथा ममका गांव पूरी तरह से दरिया की भेंट चढ़ चुके हैं। लगभग 3500 की आबादी वाला इलाका बरसात के दिनों में तो देश से पूरी तरह से कट कर रह जाता है और कई दिन इस इलाके से सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाता। तब इन लोगों की सरकार सीमा सुरक्षा बल के जवान होते हैं जिनके सहारे वे इस इलाके में रहते हैं। ऐसा ही एक इलाका घनिय के बेट भी है।

क्या स्थिति है स्वास्थ्य सुविधाओं की
इस इलाके में भरियाल गांव में एक डिस्पैंसरी मंजूर है परंतु वहां से बंद कर तूर गांव में सब-सैंटर शुरू किया गया है। यहां पर डिस्पैंसरी की इमारत तो नई बना दी गई है परंतु डाक्टर कभी नहीं आया। सारा इलाका केवल एक नर्स पर ही निर्भर है। यदि आपात स्थिति में किसी मरीज को दरिया पार लाना हो तो सीमा सुरक्षा बल के जवान इन लोगों की मदद करते हैं। 

काफी मात्रा में उपजाऊ भूमि दरिया की भेंट चढ़ चुकी है
इस इलाके के लोगों के अनुसार दरिया के पानी से होने वाले भूमि कटाव के कारण गांव तूर की लगभग 500 एकड़, गांव मंझवाल की सारी ही भूमि तथा अन्य गांवों की लगभग 150 एकड़ भूमि दरिया की भेंट चढ़ चुकी है। इसी तरह से गांव ममका भी पूरी तरह से दरिया की भेंट हो चुका है जबकि मम्मी चक्क रंगा गांव तो दरिया में बुर्द हो चुका है तथा इसकी अधिकतर कृषि योग्य भूमि भी दरिया बुर्द हो चुकी है। यही कारण है कि इन दोनों गांवों के लोग दरिया के इस ओर आकर बसे हुए हैं या गांव के लोगों ने अब अपने घर दरिया से दूर बना लिए हैं। लोगों के अनुसार उनकी सरकार तो सीमा सुरक्षा बल के जवान हैं जो हर दुख-सुख में साथ देते हैं। 

शिक्षा की हालत
इस इलाके में एक मिडल व 2 प्राइमरी स्कूल चल रहे हैं। एक मिडल तथा एक प्राइमरी स्कूल तो भरियाल में चल रहा है जिसमें 100 से कम ब"ो हैं। दोनों ही स्कूलों के पास एक -एक कमरा है। इसी तरह गांव तूर में प्राइमरी स्कूल चल रहा है और इस स्कूल की इमारत भी एक कमरे की बना दी गई है। यहां पर 2 अध्यापक तैनात थे। एक अध्यापक तो लम्बे समय से ड्यूटी पर नहीं आ रहा है जबकि दूसरी महिला अध्यापक मैडीकल छुट्टी पर गई है। अब मात्र एक शिक्षा कर्मी ही सारा स्कूल चला रहा है। इलाके के लोगों के अनुसार शिक्षा विभाग व प्रशासन इस इलाके को भारत का हिस्सा नहीं मानता। लसियान गांव में भी कभी एक स्कूल चलता था जो अध्यापक ड्यूटी पर न आने के कारण बंद कर दिया गया है। इस इलाके के बच्चों को 8वीं कक्षा की शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए रावी दरिया पार कर बहरामपुर, दीनानगर या गुरदासपुर आना पड़ता है। कुछ माह तो रावी दरिया पर पलटून पुल बना रहता है परंतु जून के अंत में यह पलटून पुल खोल दिया जाता है और इसके बाद अक्तूबर तक दरिया को आर-पार करने के लिए लोगों के पास लोक निर्माण विभाग की एक किश्ती ही सहारा होती है परंतु जब दरिया में पानी बहुत अधिक हो तो यह किश्ती भी दरिया में नहीं डाली जाती जिस कारण अध्यापक दरिया पार जाते नहीं हैं और बच्चों को स्कूल से छुट्टी करनी पड़ती है। कई बार तो वार्षिक रीक्षाओं से भी यह बच्चे वंचित हो जाते हैं। लोग बताते हैं कि 8वीं कक्षा की शिक्षा पूरी करने के बाद 60 प्रतिशत लड़कियां तथा 30 प्रतिशत लड़के शिक्षा से दूर हो जाते हंै। 

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