Edited By Vatika,Updated: 01 Nov, 2020 09:53 AM
पहले कोरोना महामारी के चलते लॉकडाऊन के कारण आर्थिक मंदी की मार झेल रहे कुलियों, लोडिंग स्टाफ व स्टालधारकों की हालत अब दोबारा ट्रेनों का चक्का जाम होने के कारण खस्ता होती जा रही है।
लुधियाना/जालंधर/अंबाला छावनी(गौतम, गुलशन,जतिन,बिंद्रा): पहले कोरोना महामारी के चलते लॉकडाऊन के कारण आर्थिक मंदी की मार झेल रहे कुलियों, लोडिंग स्टाफ व स्टालधारकों की हालत अब दोबारा ट्रेनों का चक्का जाम होने के कारण खस्ता होती जा रही है। स्टेशनों और ट्रेनों में यात्रियों की भूख मिटाने वाले फूड वैंडर खुद भूखे रह रहे हैं। लॉकडाऊन के बाद स्पैशल ट्रेनें चलने से उन्हें आशा की किरण दिखाई दी थी लेकिन किसान आंदोलन के चलते उनकी आशाओं पर पानी फिर गया। इससे रेलवे के रैवेन्यू पर भी बुरा असर पड़ रहा है। विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार फिरोजपुर मंडल में 250 के करीब कुली काम करते हैं जबकि इसके अधीन आने वाले रेलवे स्टेशनों पर रिफ्रैशमैंट रूम समेत करीब 200 स्टाल हैं जिनमें बुक्स, खाने-पीने के अलावा मनियारी व अन्य सामान के विक्रेता शामिल हैं। इन स्टालों पर करीब 1000 लोग काम करते हैं जिनके परिवार इससे प्रभावित हो रहे हैं।
भविष्य में भी रोजगार को लेकर है असमंजस
प्रधान सोमनाथ का कहना है कि इस आंदोलन ने तो स्टालधारकों को बेघर कर दिया है। न तो वे कोई काम कर सकते हैं और न ही अभी स्टाल खोल सकते हैं। उन्हें इस बात का डर लगा रहता है कि ट्रेनें चलने के बाद विभाग उन पर रिन्यू फीस लेने के लिए दबाव न बनाना शुरू कर दे। वहीं उनके पास काम करने वाले वैध वैंडरों का कहना है कि उन्हें अभी तक यह नहीं पता कि स्टाल धारक उन्हें दोबारा काम पर लगाते हैं या नहीं। यही हालत रिफ्रैशमैंट रूम चलाने वाले लोगों की है।
कुलियों के इलाज से भी पीछे हटा रेलवे
कुलियों का कहना है कि रेलवे विभाग द्वारा उन्हें कोई भी आॢथक सहायता नहीं दी गई, बल्कि अधिकारियों ने तो यहां तक कह दिया कि अगर किसी भी कुली को कोरोना होता है तो उसे अपना इलाज खुद करवाना पड़ेगा। एकमात्र महिला कुली मायावती को लेकर उसके साथियों ने बताया कि उसे बहुत मुश्किल दौर से गुजरना पड़ रहा है, क्योंकि वह घर में अकेली है जोकि खुद ही कमा कर अपने परिवार का पालन-पोषण करती है।
स्टालों के किराए को लेकर भी नहीं है कुछ स्पष्ट
कुलियों का कहना है कि लॉकडाऊन में तो अफसरों ने कुछ समाज सेवी संस्थाओं के साथ मिलकर उन्हें खाने-पीने के लिए राशन उपलब्ध करवा दिया था, जबकि किसान आंदोलन के दौरान तो किसी ने उनकी सुध ही नहीं ली, जबकि स्टालधारकों का कहना है कि लॉकडाऊन के चलते उन्हें विभाग की तरफ से 26 जून तक कोई भी किराया न लेने के लिए कहा गया था जिससे उन्हें कुछ हौसला हुआ था लेकिन उसके बाद विभाग की तरफ से उन्हें कोई भी सूचना या नोटिस नहीं भेजा गया है।
60 हजार थी एक स्टॉल की महीने की आमदनी, अब रह गई 6 हजार
अम्बाला छावनी के रेलवे स्टेशन पर स्टाल संचालक लीलावती वधावन ने बताया कि पहले एक स्टॉल की एक महीने की आमदन 60 हजार थी लेकिन पहले कोरोना महामारी और अब किसान आंदोलन के चलते एक स्टॉल की महीने की आमदन सिर्फ 6 हजार रुपए ही रह गई है। अब महीने की 6 हजार आमदन से क्या स्टाल का किराया निकाला जाए और क्या स्टाल पर काम कर रहे कर्मचारियों की पगार निकाली जाए। स्टाल चलाना बहुत मुश्किल हो गया है।
‘किसान आंदोलन ने तो हमारी कमर ही तोड़ दी’
‘‘हमारे कुछ साथियों ने रेलवे स्टेशन बंद होने के कारण लेबर का काम शुरू किया है। रूटीन में हम लोग परिवार के पालन-पोषण लायक कमा लेते थे। आशा थी कि फैस्टिव सीजन के दौरान कुछ ज्यादा कमाई होगी लेकिन किसान आंदोलन ने तो हमारी कमर ही तोड़ दी।’’
—सुरिंद्र, कुली
‘कभी भी इतनी बुरी हालत नहीं हुई थी’
‘‘पिछले कई वर्षों से स्टाल का काम कर रहा हूं लेकिन कभी भी इतनी बुरी हालत नहीं हुई थी। अब तो हम खुद ही रोजी-रोटी के लिए भटक रहे हैं। किसानों को ट्रैक खाली कर अपना संघर्ष करना चाहिए, ताकि हम लोग तो रोजी-रोटी कमा सकें।’’
—राजेश कुमार, स्टाल धारक