Pathankot : सरकार ‘आप’ की, विधायक भाजपा का, मेयर कांग्रेस का, जनता संशय में

Edited By Subhash Kapoor,Updated: 16 Jul, 2023 09:14 PM

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सूबे में सत्ता परिवर्तन हुए डेढ़ वर्ष होने को है।

पठानकोट (आदित्य): राज्य में सत्ता परिवर्तन हुए डेढ़ वर्ष होने को है। देश की रिवायती पार्टियां कांग्रेस व भाजपा के साथ क्षेत्रीय दल शिअद को करारा हार का झटका देकर अब दिल्ली वाली कहलाने वाली देश की नवोदित पार्टी ‘आप’ सत्ता सुख भोग रही है तथा आगे 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की मंजिल तय करने की तैयारियों का मसौदा गढ़ रही है परन्तु बात अगर पठानकोट वि.स. हलके की करें तो सूबे में सत्ता परिर्वतन होने के बाद से ही अजीबोगरीब राजनीतिक तिलिस्म व राजनीति का अनूठा संयोग बना हुआ है। समूचे सूबे में विपक्षी दलों का सूपड़ा साफ करने वाली ‘आप’ इस वि.स. हलके जिसे समूचे जिले की राजनीति की धुरी कहा जाता है, में भाजपा का तिलस्मि नहीं तोड़ पाई वहीं कांग्रेस के साथ त्रिकोणकीय मुकाबले में ‘हार’ गई। ऐसे में ‘आप’ की चली आंधी के बीच भी जीत की कुंजी इस हलके से भाजपा के हाथ लगी। ऐसे में सूबे में सरकार तो अब ‘आप’ चला रही है तथा विकास के लिए खजाने का मुंह भी उसे ही खोलना है परन्तु यहां व्यय करना है वहां विधायक ‘आप’ के धुर विरोधी दल भाजपा का है। उस पर भी तुर्रा यह है कि जिस साधन यानि व्यवस्था प्रणाली नगर निगम के माध्यम से किया जाना है, वहां के मुखिया यानि मेयर पिछली सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस का है। ऐसे में स्थानीय राजनीति का यह अजीबोरीब तिलिस्म यहां राजनीकि विश्लेषकों के गले में नहीं उतर पा रहा है। वहीं विकास के लिए कुंजी सही मायनों में किसके पास हकीकत में है, आम जनता नहीं समझ पा रही है। यूं भी लोकतंत्र प्रणाली का प्रावधान यही है कि चुनी गई सरकार जिस भी राजनीतिक दल की होती है। उसी का चुना हुआ नुमाईंदा विकास के लिए सरकार के आने वाले फंड को आगे उपयोग करने की दिशा में नीति निर्धारण करता है परन्तु पठानकोट निर्वाचण क्षेत्र में चुना हुआ प्रतिनिधि सूबा सरकार की पार्टी का न होकर विपक्षी दल का है जिससे दोनों ही दलों की राजनीतिक विचारधारा का आपस में कोई मेल नहीं है यां पूरी तरह बेमेल हैं। चूंकि भाजपा जिसके विधायक पठानकोट हलके का नेतृत्व कर रहे हैं देश की सबसे बड़ी अनुशासित पार्टी से आते हैं वहीं सूबे में सत्ता सु:ख रही ‘आप’ आंदोलन से निकली हुई पार्टी है जो अब राष्ट्रीय पार्टी होने की मंजिल भी तय कर चुकी है वहीं केन्द्रिय शासित राज्य दिल्ली से बाहर निकलकर सम्पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त पंजाब का नेतृत्व कर रही है तथा इस मिथ को तोड़ चुकी है कि सत्ता के मामले में वह महज दिल्ली तक ही अब सीमित नहीं रही है। वहीं ‘आप’ का भाजपा के साथ छत्तीस का आंकड़ा सर्वविदित है। दूसरा पिछला चुनाव हारकर सत्ता से बाहर हो चुकी कांग्रेस दम भर ही है चलों क्षेत्र में उसकी सत्ता न सहीं और विधायक भले न सही कम से कम नगर निगम जैसी निकाय बॉडी का मेयर तो उसका है तथा निगम पर उसकी पार्टी का कब्जा है। ऐसे में विकास की असली कुंजी तो उसके पास ही है क्योंकि सूबा सरकार से आने वाले फंड को व्यय तो नगर निगम के माध्यम से ही किया जाना है तथा निगम में उनका अधिपत्य तथा पूर्ण बहुमुत है परन्तु दूसरी ओर लोकतंत्र सिस्टम की माने तो विकास के लिए सरकार वहां के चुने गए विधायक को ये प्रमुख अधिकार के रूप में देखती है। ऐसे में सत्ता के तीनों ही विरोधी दलों का ये बेमेल राजनीति संगम न तो जनता जर्नादन तथा न ही राजनीतिक विश्लेषकों को किसी भी कोण से भा रहा है।

सुजानपुर नगर कौंसिल में हो चुका है अब तक की जिले की राजनीति का बड़ा ‘खेला’:-

वहीं राजनीति में ‘खेला’ जो कि इन दिनों आम हो चुका है। कब कहां और कौन से राजनीतिक हलके में हो जाए इसको लेकर कोई राजनीतिक पंडित क्यास नहीं लगा सकता है। हालांकि पठानकोट नगर निगम में फिलहाल स्थिति कांग्रेस के पाले में ही बहुमुत के मामले में नजर आती है जिसके मेयर सरकार परिर्वतन के बाद भी काबिज है, परन्तु ऐसा इससे सटे निर्वाचण क्षेत्र सुजानपुर में नहीं है यहां कांग्रेस के विधायक हैं। वहां पिछले समय जिले का अब तक सबसे बड़ा राजनीति खेला हो चुका है। विपक्षी दलों के कई धुरंधर पार्षद टूटकर अब ‘आप’ का झाड़ू थाम चुके हैं। यानि सुजानपुर नगर कौंसिल पर खेला होने के बाद अब वहां आप की कौंसिल काबिज है। यानि वहां अब सूबे की सत्तारूढ़ आप पार्टी कौंसिल प्रत्यक्ष रूप से चला रही है तथा फंड का जुगाड़ व व्यय भी वही कर रही है परन्तु पठानकोट नगर निगम को लेकर फिलहाल राजनीतिक शांति का आलम बरकरार है, आगामी समय यानि लोकसभा चुनाव आते-आते बोतल से कौन सा जिन्न निकलेगा, यह देखना अत्यंत रूचिकर होगा।

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