Edited By swetha,Updated: 29 Sep, 2018 11:18 AM
पंजाब भर में बाल मजदूरी रोकने के लिए सरकार तथा जिला प्रशासन द्वारा कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं। समय-समय पर ढाबों, ईंट भट्ठों, होटलों आदि में छापेमारी भी की जा रही है, परंतु लगता है कि लेबर विभाग इस संबंधी अपनी बनती जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है।
गुरदासपुर(विनोद): पंजाब भर में बाल मजदूरी रोकने के लिए सरकार तथा जिला प्रशासन द्वारा कई तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं। समय-समय पर ढाबों, ईंट भट्ठों, होटलों आदि में छापेमारी भी की जा रही है, परंतु लगता है कि लेबर विभाग इस संबंधी अपनी बनती जिम्मेदारी नहीं निभा रहा है।
विभाग के अधिकारी बाल मजदूरी रोकने की जगह अपने कार्यालयों में आराम फरमा रहे हैं जबकि बच्चे पढने की उम्र में रोजी-रोटी के लिए बस स्टैंड व रेलवे स्टेशनों पर भीख मांग रहे हैं या ईंटों का बोझ ढो रहे हैं। कुछ बाल मजदूरों पर अपने पूरे परिवार की रोटी की जिम्मेदारी होती है परंतु इनके लिए अलग से सरकार को व्यवस्था भी करनी जरूरी है।
हर छोटे-बड़े कस्बों में बाल मजदूरी आम बात
गुरदासपुर सहित आसपास के कस्बों धारीवाल, दीनानगर, कलानौर, बहरामपुर, दोरांगला आदि इलाकों में ईंट भट्ठों, ढाबों व दुकानों आदि में 18 वर्ष की आयु से कम बच्चे बाल मजदूरी कर रहे हैं जबकि अभी तक विभाग द्वारा कोई भी ठोस कार्रवाई इस संबंधी नहीं की गई है। इसके चलते व्यावसायिक छोटी आयु के बच्चों को भी अपने व्यवसाय में शामिल कर अपने व्यवसायों को और प्रफुल्लित कर रहे हैं। बता दें कि लेबर विभाग द्वारा विभागीय निर्देशों अनुसार ही छापेमारी की जाती है।
केवल एक सप्ताह तक ही सीमित बाल मजदूरी मुक्ति सप्ताह
बाल मजदूरी को रोकने के लिए सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष बाल मजदूरी मुक्ति सप्ताह मनाया जाता है लेकिन यह मात्र एक सप्ताह तक ही सीमित रहता है। अगर विभागीय अधिकारियों द्वारा वास्तविकता में बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए मालिकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए तो बाल मजदूरी को यकीनन रोका जा सकता है। लेकिन ऐसा होता नहीं है। अक्सर विभागीय अधिकारी मामूली चालान काटकर व्यावसायियों को दे देते हैं जिसके चलते कुछ समय बाद व्यवसायिक फिर से अपने व्यापार को उन्नत करने के लिए उक्त बाल मजदूरों को काम पर रख लेते हैं। संबंधित विभाग के अधिकारी भी केवल अपनी झूठी वाहवाही लूटने तक सीमित होकर रह गए हैं।
रोजी-रोटी के लिए कूड़ा बिनने के लिए मजबूर बच्चे
भले ही राज्य सरकार द्वारा 10वीं तक की पढ़ाई बच्चों के लिए नि:शुल्क है लेकिन इस संबंधी पूरी तरह से बच्चों एवं जनता में जागरूकता लाए जाने की जरूरत है जिसके चलते अधिकतर बच्चे अपने आर्थिक संकटों की वजह से शिक्षित नहीं हो पाते और वे बाल मजदूरी का रास्ता अपना लेते हैं। गरीब परिवारों से संबंधित अक्सर अभिभावक अपने बच्चों की जिंदगी से खिलवाड़ करते हैं। वे छोटी आयु में ही रोजी-रोटी के लिए अपने बच्चों को भीख मांगने व कूड़ा बिनने के लिए बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन व शहर के सार्वजनिक स्थलों पर भेज देते हैं जिसके चलते जिस आयु में उन्हें स्कूल में शिक्षा ग्रहण करनी होती है, उसमें वे भीख मांगना शुरू कर देते हैं। ऐसे में बाल मजदूरी को रोकना बेहद कठिन है।