Edited By Punjab Kesari,Updated: 17 Jan, 2018 10:45 AM
रेत खनन सौदों में गंभीर आरोपों का सामना कर रहे उर्जा व सिंचाई मंत्री राणा गुरजीत के इस्तीफे ने पंजाब की राजनीति में भुचाल ला दिया है।
जालंधर (जतिन्द्र चोपड़ा) : रेत खनन सौदों में गंभीर आरोपों का सामना कर रहे उर्जा व सिंचाई मंत्री राणा गुरजीत के इस्तीफे ने पंजाब की राजनीति में भुचाल ला दिया है। राणा गुरजीत का बयान सामने आया कि उन्होंने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री को सौंप दिया है, जिसके उपरांत सरकार व कांग्रेस की खासी किरकिरी होती देख मोहाली में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह को बचाव में वक्तव्य देना पड़ा कि राणा गुरजीत ने 12 दिन पूर्व ही उन्हें इस्तीफा सौंपा था, जिस पर फिलहाल कोई विचार नहीं किया है परंतु दूसरी तरफ कार्यक्रम के उपरांत कै. अमरेन्द्र सिंह एकाएक इस्तीफे को लेकर दिल्ली पहुंच गए हैं, जहां ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ उनकी 17 जनवरी को मीटिंग होगी।
पुष्ट सूत्रों के अनुसार कै. अमरेन्द्र सिंह इस मीटिंग के दौरान राहुल गांधी के समक्ष राणा गुरजीत का नाम खनन सौदों में आने व उनके पुत्र राणाइंद्र प्रताप को अपनी कंपनी के लिए विदेशों से जुटाए 100 करोड़ रुपए के मामले में ई.डी द्वारा भेजे गए सम्मन को लेकर अपनी बात रखेंगे। राहुल गांधी व कै. अमरेन्द्र द्वारा इस मामले पर मंथन करने के बाद राणा गुरजीत के भविष्य का फैसला होना तय है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि राहुल कै. अमरेन्द्र को भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे मंत्री का इस्तीफा स्वीकार करने के निर्देश देंगे, जिसके उपरांत राणा गुरजीत की मुश्किलें बढऩी तय मानी जा रही हैं।
उल्लेखनीय है कि विधानसभा में विपक्ष के नेता सुखपाल खैहरा व अन्य विपक्षी दलों के निशाने पर चल रहे राणा गुरजीत पर रेत खनन सौदों में निजी हितों को लेकर अपने पद का लाभ उठाने के सीधे आरोप हैं।
खैहरा ने पिछले दिनों मुख्यमंत्री को भेजे एक आरोप पत्र में राणा गुरजीत के रेत माफिया के संबंध में सी.बी.आई. जांच करवाने की मांग की है। खैहरा ने राणा गुरजीत को मंत्री पद से हटाने की मांग की, क्योंकि वह जांच में साक्ष्यों को प्रभावित कर सकते हैं। इस मामलों की आंच अभी ठंडी नहीं हुई थी कि राणा गुरजीत के पुत्र राणाइंद्र प्रताप को ई.डी. ने 17 जनवरी को कार्यालय में पेश होने का सम्मन भेजा है।
राहुल गांधी के दबाव में लिया राणा गुरजीत का इस्तीफा
कांग्रेस दिल्ली दरबार की मानें तो राहुल गांधी के ही दवाब के चलते मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह को अपने बेहद करीबी साथी राणा गुरजीत का इस्तीफा लेने को मजबूर होना पड़ा।
चूंकि राहुल ने ऑल इंडिया कांग्रेस का प्रधान पद संभालने के दौरान स्पष्ट किया था कि वह भ्रष्टाचार को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे, क्योंकि राहुल गांधी भलि-भांति जानते हैं कि कांग्रेस ने अगर अपने विजन 2019 में सफलता हासिल करते हुए केंद्र की सत्ता पर काबिज होना है तो पार्टी को भष्टाचार के खिलाफ सख्त विचारधारा जनता के समक्ष लानी होगी। केंद्र की यू.पी.ए. सरकार के 10 कार्यकाल के दौरान हुए घोटालों को भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में जमकर कैश किया था।
चूंकि 2014 के लोकसभा चुनावों के उपरांत देशभर में केवल पंजाब ही एक ऐसा राज्य है जहां कांग्रेस ने सशक्त जीत हासिल कर अपनी सरकार बनाई है।