स्मार्ट सिटी स्कैंडल में विजिलैंस का एक्शन, इस रिपोर्ट पर टिकी नजरें

Edited By Urmila,Updated: 21 Apr, 2024 10:55 AM

vigilance action in smart city scandal eyes fixed on this report

केंद्र में रही मोदी सरकार द्वारा करीब 10 साल पहले शुरू किए गए स्मार्ट सिटी मिशन का कार्यकाल लगभग समाप्त हो चुका है।

जालंधर (खुराना): केंद्र में रही मोदी सरकार द्वारा करीब 10 साल पहले शुरू किए गए स्मार्ट सिटी मिशन का कार्यकाल लगभग समाप्त हो चुका है जिसके चलते जालंधर स्मार्ट सिटी को अपने सभी प्रोजैक्ट समेटने के लिए कह दिया गया है। जब स्मार्ट सिटी मिशन में जालंधर के नाम शामिल हुआ था, तब शहर निवासियों को लगा था कि केंद्र सरकार की इस योजना के तहत उन्हें ऐसी सुविधाएं मिलेंगी जो न केवल विश्व स्तरीय होंगी बल्कि इस मिशन से शहर की नुहार ही बदल जाएगी परंतु स्मार्ट सिटी के ज्यादातर काम खत्म होने के बाद लोगों को लग रहा है कि शहर जरा सा भी स्मार्ट नहीं हुआ और इस मिशन हेतु आए करोड़ों रुपए भ्रष्टाचार की भेंट ही चढ़ गए।

यह मिशन जब शुरू हुआ था तब पंजाब और जालंधर निगम की सत्ता पर अकाली भाजपा की जोड़ी काबिज थी। उसके बाद तत्काल ही कांग्रेस सरकार आ गई जिसने पहले 2 साल तो स्मार्ट सिटी मिशन की ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया परंतु आखिरी 3 साल दौरान स्मार्ट सिटी के प्रोजैक्टों में एकाएक तेजी आई और करीब 370 करोड़ रुपए के काम जालंधर में ही करवाए गए। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत जालंधर शहर में कुल 60 प्रोजैक्ट चले जिनमें से 30 तो पूरे हो चुके हैं परंतु 30 प्रोजैक्ट अभी भी लटक रहे हैं। इन लटके कामों ने लम्बे समय से शहर की हालत बिगाड़ कर रखी हुई है।

आरोप लगते रहे हैं कि स्मार्ट सिटी मिशन के तहत ग्रांट के रूप में आए सैकड़ों करोड़ रुपए खर्च करने के दौरान जमकर भ्रष्टाचार हुआ। खास बात यह रही कि सरकारी पैसों के दुरुपयोग संबंधी ऐसे आरोप करीब सभी राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों ने लगाए।

कांग्रेस सरकार के समय तो यह हालात बन गए थे कि खुद कांग्रेसी नेता ही स्मार्ट सिटी में हो रहे भ्रष्टाचार संबंधी शिकायतें ऊपर तक भेजते रहे परंतु कहीं कोई कार्रवाई नहीं हुई। कुछ माह पहले पूर्व केंद्रीय कानून व विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने केंद्र सरकार के शहरी विकास मंत्री हरदीप पुरी को एक पत्र लिखा था जिसमें मांग की गई थी कि जालंधर स्मार्ट सिटी में केंद्र सरकार के पैसों के दुरुपयोग और उनमें हुए भ्रष्टाचार संबंधी मामलों की निष्पक्ष जांच किसी केंद्रीय एजैंसी से करवाई जाए और इस संबंध में संबंधित अधिकारियों को जल्द निर्देश भेजे जाएं। दूसरी ओर पंजाब सरकार भी जालंधर स्मार्ट सिटी में हुए घोटालों की जांच का जिम्मा स्टेट विजिलैंस को सौंप चुकी है। विजिलैंस जांच चाहे धीमी गति से चल रही है पर माना जा रहा है कि आने वाले समय में एकदम ही कोई न कोई एक्शन सामने आ सकता है।

एल.ई.डी स्ट्रीट लाइट प्रोजैक्ट में गड़बड़ियों की रिपोर्ट तैयार करने लगे अफसर

स्टेट विजिलैंस के जालंधर यूनिट में जालंधर स्मार्ट सिटी के भ्रष्टाचार और लापरवाही संबंधी जो जांच चल रही है, उसमें सबसे पहला एक्शन एल.ई.डी स्ट्रीट लाइट प्रोजैक्ट पर होना माना जा रहा है। गौरतलब है कि विजिलैंस जांच से जुड़े अधिकारी एल.ई.डी. स्ट्रीट लाइट प्रोजैक्ट का काफी रिकार्ड खंगाल चुके हैं और रिपोर्ट तक तैयार की जा रही है जिसमें साफ होगा कि किस प्रकार कदम कदम पर इस प्रोजैक्ट में गड़बड़ी की गई और दिल्ली की कंपनी को भरपूर फायदा पहुंचाया गया।

इस प्रोजैक्ट में सबसे बड़ी गड़बड़ी यह सामने आ रही है कि इस प्रोजैक्ट की लागत जालंधर स्मार्ट सिटी के एक पूर्व सी.ई.ओ ने अपनी मर्जी से ही 14 करोड़ रुपए बढ़ा दी और उसकी मंजूरी चंडीगढ़ बैठे किसी अधिकारी से नहीं ली। गौरतलब है कि एल.ई.डी प्रोजेक्ट का टैंडर 49.44 करोड़ में लगाया गया था तो दिल्ली की एक कंपनी ने 11 प्रतिशत से ज्यादा डिस्काऊंट भरकर यह टैंडर करीब 44 करोड़ में हासिल कर लिया था । उसके बाद स्मार्ट सिटी में रहे अधिकारियों ने अपने कांग्रेसी आकाओं को खुश करने की नियत से उनके विधानसभा क्षेत्रों और वार्डों में ज्यादा लाइटें लगानी शुरू कर दीं।

तब जो काम 44 करोड़ रुपए में निपट जाना चाहिए था, वह 58 करोड़ तक पहुंचा दिया गया। टैंडर में साफ लिखा था कि पुरानी लाइटों को उतारकर नया लगाना है। तब शहर में 43 हजार के करीब पुरानी लाइटें उतरी, इनके स्थान पर 72 हजार से ज्यादा नई लाइटें लगा दी गई ।

नियमों के मुताबिक टैंडर की राशि 14 करोड़ रुपए बढ़ाने के लिए स्मार्ट सिटी के अफसरों ने चंडीगढ़ में बैठी स्टेट लेवल टेक्निकल कमेटी से इसकी मंजूरी लेनी थी परंतु तब स्मार्ट सिटी के सी.ई.ओ. और अन्य अधिकारियों ने इसकी परवाह नहीं की और स्टेट लैवल टेक्निकल कमेटी से इस बढ़ोतरी की मंजूरी ही नहीं ली गई। तब यह प्रोजैक्ट चाहे स्मार्ट सिटी ने बनाया और पैसे भी दिए परंतु कंपनी ने देसी तरीके से काम किया। कई जगह लाइटों को क्लम्प तक न लगाए गए। सिस्टम को पूरे तरीके से 'अर्थ' नहीं किया गया जबकि यह कांट्रैक्ट में शामिल था । पुरानी लाइटों को ऐसे ठेकेदार के हवाले कर दिया गया जिसके पास टैंडर ही नहीं था। स्मार्ट सिटी ने कंपनी को फालतू पेमैंट कर दी जिसे बाद में पंजाब सरकार ब्याज समेत वापस मांगती रही । गांवों में कम वाट की लाइटें लगाकर भी टैंडर की शर्तों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया गया।

रिटायर्ड व दागी अधिकारियों ने नहीं की कोई परवाह, पारदर्शिता गायब रही

देश की बड़ी-बड़ी प्राइवेट कंपनियां युवा इंजीनियर व आई.टी. प्रोफेशनल रखने पर बल देती हैं, जिनमें नया विजन होता है परंतु जालंधर स्मार्ट सिटी में नगर निगम के रिटायर्ड तथा दागी अधिकारियों को ही भर्ती कर लिया गया और नए विजन, नई स्फूर्ति को दरकिनार कर दिया गया। निगम के यही रिटायर्ड अधिकारी अपने चहेते ठेकेदारों को ही स्मार्ट सिटी में ले आए और उनसे करोड़ों के काम करवा डाले। जैसे काम निगमों में होते थे उससे भी घटिया काम स्मार्ट सिटी में हुए परंतु रिटायर्ड अधिकारियों ने ऐसी सैटिंग दिखाई कि चंडीगढ़ और दिल्ली बैठे किसी बड़े अधिकारी ने स्मार्ट सिटी जालंधर के किसी स्कैंडल की जांच तक के आदेश नहीं दिए। आरोप यह भी हैं कि ऐसे अधिकारियों ने किसी की कोई परवाह नहीं की और उनके होते जालंधर स्मार्ट सिटी में पारदर्शिता नाम की कोई चीज नहीं दिखी।

स्मार्ट सिटी कंपनी ने अपनी कोई वेबसाइट नहीं बनाई, किसी आरटीआई का जवाब नहीं दिया, कोई पब्लिक इनफॉरमेशन ऑफिसर नहीं बनाया, किसी शिकायत पर जांच के आदेश नहीं दिए, किसी ठेकेदार को ब्लैक लिस्ट नहीं किया, किसी अधिकारी की जवाबदेही तय नहीं की गई, किसी साइट पर पब्लिक को जानकारी देने हेतु बोर्ड तक नहीं लगाया गया।

स्ट्रीट लाइट सिस्टम पर लग चुके हैं करीब 100 करोड़, अभी भी आधा शहर अंधेरे में डूबा

58 करोड़ की नई लाइटें लगाने के साथ-साथ शहर में इस समय हजारों ऐसी एल.ई.डी. स्ट्रीट लाइटें हैं जिन्हें या तो पुरानी कंपनी ने लगाया हुआ है या उन्हें नगर निगम, सांसद या विधायक की ग्रांट से लगवाया गया है। ऐसी लाइटें आज भी टैंडरों के माध्यम से लगाई जा रही हैं। कई लाइटें स्मार्ट सिटी के अन्य प्रोजेक्टों के तहत भी लगी हैं । कुछ लाइटें इंप्रूवमैंट ट्रस्ट और पी.डब्ल्यू.डी. जैसे विभागों द्वारा भी लगाई गई हैं, इसलिए शहर के स्ट्रीट लाईट सिस्टम पर करीब 100 करोड़ खर्च हो चुके हैं। इसके बावजूद आधा शहर अंधेरे में डूबा हुआ है।

इसका कारण यह है कि शहर में नई एल.ई.डी. लाइटें लगाने वाली कंपनी दूसरे विभागों या ग्रांट से या पुरानी कंपनी द्वारा लगाई गई लाइटों को न तो रिपेयर कर रही है न ही इन्हें मेंटेन किया जा रहा है, जिस कारण वारदातें हो रही हैं और लोग काफी परेशान हैं।

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