Edited By Punjab Kesari,Updated: 18 Oct, 2017 03:10 AM
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने नरेन्द्र मोदी को तल्ख लहजे में सलाह भी दी है और चेतावनी भी कि उन्हें हिन्दुत्व के रास्ते पर लौट जाना चाहिए। हिन्दुत्व विरोधी रास्ते पर उन्हें नुक्सान होगा और भाजपा का विस्तार भी रुक जाएगा, दुष्परिणाम हार के रूप में सामने आएगा।...
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने नरेन्द्र मोदी को तल्ख लहजे में सलाह भी दी है और चेतावनी भी कि उन्हें हिन्दुत्व के रास्ते पर लौट जाना चाहिए। हिन्दुत्व विरोधी रास्ते पर उन्हें नुक्सान होगा और भाजपा का विस्तार भी रुक जाएगा, दुष्परिणाम हार के रूप में सामने आएगा। सुब्रह्मण्यम स्वामी की यह चेतावनी तथाकथित सैकुलर जमात को गैर-जरूरी या फिर साम्प्रदायिक तो लग सकती है, पर राष्ट्रवादियों को यह चेतावनी काफी पसंद आई है और खासकर सोशल मीडिया पर सुब्रह्मण्यम स्वामी की चेतावनी पर स्वामी को काफी प्रशंसा मिली है और नरेन्द्र मोदी को आगाह किया गया है।
वैसे तो सुब्रह्मण्यम स्वामी बड़बोलेपन और विवाद फैलाने वाली बयानबाजी करने के लिए कुख्यात हैं, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि अपने तल्ख बयानों से नरेन्द्र मोदी के लिए समस्याएं भी खड़ी करते हैं और तथाकथित सैकुलर जमात को हमला करने से संबंधित राजनीतिक मसाला भी उपलब्ध कराते हैं पर इनकी बयानबाजी को खारिज नहीं किया जा सकता है। स्वामी की बयानबाजी उस अवधारणा को साबित करती है जो राष्ट्रवादियों की है। अब यहां यह प्रश्न उठ सकता है कि राष्ट्रवादियों की अवधारणा क्या है और सुब्रह्मण्यम स्वामी राष्ट्रवादियों की अवधारणा का किस प्रकार प्रतिनिधित्व करते हैं। राष्ट्रवादियों की सोच और अवधारणा हिन्दुत्व की प्रगतिशीलता के साथ ही साथ हिन्दुत्व के मूल बिन्दुओं का संरक्षण है।
राष्ट्रवादी यह समझते हैं कि नरेन्द्र मोदी की सत्ता हिन्दुत्व की देन है, पर इस सत्ता ने हिन्दुत्व के मूल बिन्दुओं के संरक्षण और प्रगतिशीलता के लिए कोई खास प्रयास नहीं किया है। सही भी यही है कि नरेन्द्र मोदी ने हिन्दुत्व की प्रगतिशीलता और संरक्षण की जगह विकासवाद को संरक्षण दिया है, विकासवाद से भारत को अग्रणी और शक्तिशाली देश बनाने का झुनझुना बजाया है, जो राष्ट्रवादियों को पसंद नहीं आया है। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव हिन्दुत्व की कसौटी पर अति महत्वपूर्ण हैं। अगर मोदी इन दोनों प्रदेशों में हार गए, तो हिन्दुत्ववादी उनके लिए दुश्मन के तौर पर कांग्रेस और तथाकथित सैकुलर जमात से भी खतरनाक होंगे।
भाजपा और नरेन्द्र मोदी के लिए हिन्दुत्व तो प्राणवायु है। हिन्दुत्व के बिना भाजपा और नरेन्द्र मोदी अधूरे हैं, प्राणहीन हैं, शक्तिहीन हैं, सत्ताहीन हैं। खुद मोदी कभी उग्र हिन्दुत्व के वाहक और सहचर रहे हैं। उनकी उग्रता काफी खलबली मचाती थी, सैकुलर राजनीति को सिंचित करने के साथ ही राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरक जैसे कार्य भी करती थी। जब वह कहते थे कि मुस्लिम आबादी ‘हम पांच और हमारे पच्चीस’ के सिद्धांत से देश का कबाड़ा कर रही है, तो फिर राष्ट्रवादी उनके लिए तालियां बजाते थे, जब वह कहते थे कि पाकिस्तान को सबक सिखाया जाएगा, तो फिर उनकी छवि एक नायक के तौर पर बनती थी। सिर्फ इतना ही नहीं, एक टी.वी. साक्षात्कार में उन्होंने जब महात्मा गांधी की जगह सिर्फ मोहन दास कहा था तब देश में बड़ा विवाद हुआ था, जिसने राजनीतिक तकरार का रूप धारण कर लिया था, पर नरेन्द्र मोदी के लिए कोई चिंता की बात नहीं थी।
इन्हीं विशेषताओं के कारण उन्होंने गुजरात में लगभग 13 सालों तक शासन किया था। 13 सालों तक अपराजित होने के कारण उनकी छवि दो प्रकार की बनी थी और दोनों प्रकार की छवि एक-दूसरे के विपरीत भी थी। एक छवि उनकी कट्टरवादी हिन्दुत्व की थी तो दूसरी विकासवादी राजनीतिक पुरुष की। हिन्दुत्व और विकास को एक साथ खड़ा करने, हिन्दुत्व और विकास को लक्ष्यवादी बनाने की छवि ने नरेन्द्र मोदी को गुजरात से निकाल कर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया था, इस तथ्य को कैसे और क्यों झुठलाया जा सकता है?
हिन्दुत्व और विकास नरेन्द्र मोदी की अपराजेय शक्ति थी। इन दोनों शक्तियों को साध कर नरेन्द्र मोदी सशक्त प्रधानमंत्री बन सकते थे, उनकी छवि हिन्दुत्ववादियों में भी गहरी पैठ बना सकती थी, पर नरेन्द्र मोदी की नीति प्रारम्भ से ही हिन्दुत्व की कसौटी पर बदल गई। उन्होंने हिन्दुत्व की कसौटी को खारिज कर साइलैंट मोड में डाल दिया। उनकी यह समझ विकसित हो गई कि हिन्दुत्व तो उनका आधार है ही और यह आधार स्तंभ उनसे दूर नहीं जा सकता है, अर्थात हिन्दूवादी उन्हें समर्थन और सहायता करने के लिए बाध्य हैं। इसलिए दूसरी शक्ति का ही सक्रियकरण करना राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण और सफलता की कुंजी हो सकता है।
उनकी यह सोच तो अच्छी थी, पर पूरी तरह चाक-चौबंद और दोषहीन नहीं थी। विकासवाद का रास्ता तो एक अच्छी सरकार के लिए शुभकारी, लोकतंत्र में सत्ता निर्मित करने का साधन और शक्ति होता है, पर ध्यान यह रखना चाहिए कि विकासवाद को चरम पर पहुंचाने के लिए कितनी बड़ी शक्ति, समर्पण और आंतरिक तथा बाह्य समर्थन व सहयोग की जरूरत सुनिश्चित करने की वीरता प्रदर्शित करनी होती है, यह जगजाहिर है। नरेन्द्र मोदी ने विकासवाद को साधने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी है, पर अपने सामने खड़े यक्ष प्रश्नों पर वह विजय प्राप्त नहीं कर सके।
उनकी महती और प्रतापी योजनाएं दहाड़ नहीं मार सकीं, जनाकांक्षी नहीं बन सकीं। नोटबंदी ने काफी उथल-पुथल मचाई थी, लंबे-चौड़े दावे किए गए थे, आतंकवाद और नक्सलवाद समाप्त होने का दंभ भरा गया था, कालाधन समाप्त होने का दंभ भरा गया था। पर ‘खोदा पहाड़ निकली चुहिया’ वाली कहावत ही सच हुई। नोटबंदी की रिपोर्ट आ गई है, रिजर्व बैंक की रिपोर्ट नोटंबदी के उद्देश्यों को तार-तार करती है। यानी कि नोटबंदी की नीति एक बेकार और देश की अर्थव्यवस्था के लिए नुक्सानकुन साबित हुई है।
इसी तरह जी.एस.टी. का प्रसंग भी नरेन्द्र मोदी के लिए खतरे की घंटी साबित हो रहा है। जी.एस.टी. से व्यापारी वर्ग खफा है, जो मोदी और भाजपा के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। व्यापारियों का जब आक्रोश सामने आया, तब जाकर जी.एस.टी. में मोदी को संशोधन करना पड़ा। फिर भी व्यापारियों का आक्रोश कम हो गया, ऐसा नहीं माना जा सकता है। अगर व्यापारी मोदी के खिलाफ गए, तो फिर 2019 ही क्यों बल्कि गुजरात में भी उनका बाजा बज सकता है, भाजपा सत्ता से बाहर हो सकती है। निष्कर्ष यह है कि नरेन्द्र मोदी का ‘विकासवाद’ भी पूरी तरह से नाकाम हो गया है, लक्ष्यहीन और प्रगतिहीन हो गया है।
नरेन्द्र मोदी जब गौरक्षकों को हिंसक बताते हैं, उन्हें कानून का पाठ पढ़ाना चाहते हैं, तब मोदी राष्ट्रवादियों के लिए एक तथाकथित सैकुलरवादी ही होते हैं। एक ऐसे सैकुलरवादी, जिसे देखकर और सुनकर राष्ट्रवादी सिर्फ और सिर्फ घृणा करते हैं। जब नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान जाकर नवाज शरीफ की दावत खाते हैं तो फिर राष्ट्रवादियों के आक्रोश की सीमा टूट जाती है। अगर नरेन्द्र मोदी गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावों में हार गए तो फिर उनका विकासवाद पूरी तरह से परास्त होगा और हिन्दुत्व भी उनके लिए फंदा साबित होगा क्योंकि वह हिन्दुत्व से काफी दूर चले गए हैं। गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों की हमें प्रतीक्षा करनी चाहिए, फिर नरेन्द्र मोदी का भविष्य तय हो जाएगा।