बुलेट ट्रेन का सपना देखने वाले देश में आज भी चलती है शकुंतला एक्सप्रैस

Edited By Punjab Kesari,Updated: 08 Feb, 2018 01:35 PM

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एक तरफ देश बुलेट ट्रेन के सपने देख रहा है व हमारे देश का रेल बजट लाखों-करोड़ों का है, वहीं दूसरी तरफ रेल की बात करें तो इसी देश में शकुंतला एक्सप्रैस जैसी ट्रेन एक ऐसी रेल लाइन पर चलती है, जिसका मालिकाना हक भारतीय रेलवे के पास नहीं है।

जालंधर  (रविंदर शर्मा): एक तरफ देश बुलेट ट्रेन के सपने देख रहा है व हमारे देश का रेल बजट लाखों-करोड़ों का है, वहीं दूसरी तरफ रेल की बात करें तो इसी देश में शकुंतला एक्सप्रैस जैसी ट्रेन एक ऐसी रेल लाइन पर चलती है, जिसका मालिकाना हक भारतीय रेलवे के पास नहीं है। ब्रिटेन की एक निजी कंपनी इसका संचालन करती है। नैरो गॉज (छोटी लाइन) के इस ट्रैक का इस्तेमाल करने वाली इंडियन रेलवे हर साल 1 करोड़ 20 लाख रुपए की रॉयल्टी ब्रिटेन की इस कंपनी को देती है। 


इस रेल ट्रैक पर आज भी शकुंतला एक्सप्रैस  नामक सिर्फ एक पैसेंजर ट्रेन चलती है। अमरावती से मुर्तजापुर के 189 किलोमीटर के इस सफर को यह 6 से 7 घंटे में पूरा करती है। अपने इस सफर में शकुंतला एक्सप्रैस अचलपुर, यवतमान समेत 17 छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती है। 100 साल पुरानी 5 डिब्बों की इस ट्रेन को 70 साल तक स्टीम का इंजन खींचता था। इसे 1921 में ब्रिटेन के माचैस्टर में बनाया गया था। 15 अप्रैल 1994 को शकुंतला एक्सप्रैस के स्टीम इंजन को डीजल इंजन से रिप्लेस कर दिया गया। इस रेल रूट पर लगे सिग्नल आज भी ब्रिटिशकालीन हैैं। इनका निर्माण इंगलैंड के लिवरपूल में 1895 में हुआ था।

 

7 कोच वाली इस पैसेंजर ट्रेन में प्रतिदिन एक हजार से ज्यादा लोग ट्रैवल करते हैं। दरअसल अमरावती का इलाका अपने कपास के लिए पूरे देश में फेमस था। कपास की मुम्बई पोर्ट तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजों ने इसका निर्माण करवाया था। उक्त रेल ट्रैक को  बिछाने का काम 1903 में ब्रिटिश कंपनी क्लिक निक्सन की ओर से शुरू किया गया, जो  1916 में जाकर पूरा हुआ। 1857 में स्थापित इस कंपनी को आज सैंट्रल प्रोविन्स रेलवे कंपनी के नाम से जाना जाता है। ब्रिटिशकाल में प्राइवेट फर्म ही रेल नैटवर्क को फैलाने का काम करती थी। 1951 में भारतीय रेल का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। सिर्फ यही रूट भारत सरकार के अधीन नहीं था। इस रेल रूट के बदले भारत सरकार हर साल कंपनी को 1 करोड़ 20 लाख की रॉयल्टी देती है। 

 

खस्ताहाल है ट्रैक
क्योंकि यह आज भी इंडियन रेलवे के अधीन नहीं है तो किसी भी बजट में इस रेल लाइन या इस पर चलने वाली ट्रेन के बारे में सोचा नहीं जाता है और न ही आज तक किसी सरकार ने इसे इंडियन रेलवे के अंतर्गत करने की योजना तैयार की है। यहीं कारण है कि हर साल पैसा देने के बावजूद यह ट्रैक बेहद जर्जर हो चुका है। पिछले तकरीबन 60 साल से इसकी मुरम्मत भी नहीं हुई है। इस पर चलने वाले जे.डी.एम. सीरीज के डीजल लोको इंजन की अधिकतम गति 20 किलोमीटर प्रति घंटे रखी जाती है। इस सैंट्रल रेलवे के 150 कर्मचारी इस घाटे के मार्ग को संचालित करने में आज भी लगे हैं। 

 

दो बार बंद भी हुई रेल
इस ट्रैक पर चलने वाली शकुंतला एक्सप्रैस पहली बार 2014 में मोदी सरकार आते ही और दूसरी बार अप्रैल 2016 में बंद किया गया था। मगर स्थानीय लोगों की मांग और सांसद आनंद राव के दबाव में सरकार को फिर से इसे शुरू करना पड़ा। सांसद आनंद राव का कहना था कि यह ट्रेन अमरावती के लोगों की लाइफ लाइन है। अगर यह बंद हुई तो गरीब लोगों को बहुत दिक्कत होगी। आनंद राव ने इस नैरो गॉज को ब्रॉड गॉज में कन्वर्ट करने का प्रस्ताव भी रेलवे बोर्ड को भेजा है। भारत सरकार ने इस ट्रैक को कई बार खरीदने का प्रयास किया, मगर तकनीकी कारणों से वह संभव नहीं हो सका। 

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