NGT के आदेश छिक्के पर, बिना जिग-जैग तकनीक के चल रहे 1400 ईंट-भट्ठे हवा में फैला रहे प्रदूषण

Edited By Vatika,Updated: 14 Feb, 2019 10:09 AM

zig zag technique

पंजाब में 1400 से ज्यादा ईंट-भट्ठा मालिकों ने नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) के आदेशों को छिक्के पर टांग ईंटों का उत्पादन शुरू कर दिया है। एन.जी.टी. ने अपील नंबर-1541/2018 में पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को आदेश दिया है कि बिना जिग-जैग तकनीक के...

लुधियाना(धीमान): पंजाब में 1400 से ज्यादा ईंट-भट्ठा मालिकों ने नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) के आदेशों को छिक्के पर टांग ईंटों का उत्पादन शुरू कर दिया है। एन.जी.टी. ने अपील नंबर-1541/2018 में पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को आदेश दिया है कि बिना जिग-जैग तकनीक के भट्ठे न चलने दिए जाएं लेकिन इन आदेशों की परवाह किए बिना बीती 1 फरवरी से पंजाब में बिना नई तकनीक लगाए पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (पी.पी.सी.बी.) की नाक के नीचे भट्ठे को चालू कर दिया गया है। 
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पंजाब में करीब 2700 भट्ठे हैं। इनमें से 500 से ज्यादा भट्ठा मालिकों ने जिग-जैग तकनीक लगा ली है और तकरीबन 800 भट्ठे इस नई तकनीक को लगाने की शुरूआत कर चुके हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि एक माह के भीतर इस जिग-जैग तकनीक के साथ ये भट्ठे भी ईंटों का उत्पादन शुरू कर देंगे लेकिन बाकी के करीब 1400 में से अधिकतर भट्ठा मालिकों ने बिना किसी डर के काम शुरू कर दिया है और जमकर काला धुआं हवा में उड़ा रहे हैं। भट्टा मालिकों के पंजाब में 2 ग्रुप हैं जिसमें एक ग्रुप वह है जिसने जिग-जैग तकनीक लगाकर काम शुरू कर दिया है व दूसरा ग्रुप इस तकनीक के विरोध में है। पूछे जाने पर जवाब दिया गया कि यह जिग-जैग तकनीक लगाने के लिए कम से कम 65 लाख रुपए का खर्चा आता है और यह तकनीक कामयाब नहीं है जबकि पहले ग्रुप के मुताबिक ज्यादा से ज्यादा खर्च 15 से 20 लाख रुपए है। उधर पी.पी.सी.बी. के अधिकारी नई तकनीक न लगाने वालों को पकडऩे की बजाय उनके साथ हमदर्दी से पेश आ रहे हैं।

फोन उठाने से डरते हैं मैंबर सैक्रेटरी
इन 22 फाइलों के बारे में जानने के लिए जब मैंबर सैक्रेटरी पवन गर्ग से पूछने के लिए बार-बार फोन किया गया तो वह हर बार की तरह इस बार भी फोन उठाने से डरे। एक भी काल का जवाब नहीं दिया और न ही एस.एम.एस. का जवाब दिया। उनकी इस हरकत ने तमाम पी.पी.सी.बी. को सवालों के घेरे में लाकर खड़ा कर दिया है। इससे साबित होता है कि इनका इलीगल भट्ठा चलाने वालों के प्रति सॉफ्ट कार्नर है।

पी.पी.सी.बी. के मुताबिक सिर्फ 22 भट्ठे इलीगल 
पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों से जब पूछा गया कि एन.जी.टी. के आदेश के बाद आपने क्या कार्रवाई की तो उनका जवाब हैरान करने वाला था। करीब 1400 भट्ठे बिना जिग-जैग तकनीक के चल पड़े हैं और पी.पी.सी.बी. के पास सिर्फ 22 का ही आंकड़ा पहुंचा है। इनकी फाइलें कहां हैं इसका जवाब भी किसी अधिकारी के पास नहीं है। बता दें कि लाइसैंसिंग अथॉरिटी फूड एंड सप्लाई विभाग होता है। यदि भट्ठे पर्यावरण के लिहाज से सही नहीं चल रहे हों तो उनका लाइसैंस रद्द करने के लिए पी.पी.सी.बी. इन्हें कहता है। मजेदार बात यह है कि 22 फाइलों में से भी आज तक पी.पी.सी.बी. ने डिस्ट्रिक्ट फूड एंड सप्लाई कंट्रोलर को केवल एक एस.पी. ब्रिक्स नामक भट्ठे का लाइसैंस रद्द करने के लिए कहा है। पी.पी.सी.बी. प्रदूषण को कितना गंभीरता से ले रहा है इसका अंदाजा उनकी इस कार्रवाई से लगाया जा सकता है।


क्या है जिग-जैग तकनीक
इस तकनीक के लिए भट्ठा मालिकों को कुछ तबदीलियां करनी पड़ती हैं जिसमें भ_ों की शेप गोल की बजाय चौरस करनी होगी। इसमें आई.डी. फैन (इंड्यूस ड्राफ्टिंग फैन) लगाना होता है जो भट्ठे की आग से निकलने वाले धुएं को खींच कर बाहर निकालता है। इससे धुआं जमा न होने के कारण उसमें से कालापन नहीं निकलता। कालापन घटने की एक और वजह है कि कोयला इसमें क्रश यानी चूरा करके डाला जाता है जिससे कोयले के बड़े-बड़े पत्थर अब चिमनी से बाहर निकलकर खेतों में नहीं जाते। 


कितने की है तकनीक और क्या हैं इसके फायदे-नुक्सान 
जिग-जैग तकनीक के साथ ईंटों का उत्पादन शुरू करने वाले सर्बजीत ढिल्लों ने बताया कि इसमें ’यादा से ज्यादा खर्च 15 से 20 लाख रुपए आता है। इससे प्रदूषण काफी हद तक नियंत्रण में आ जाता है। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि कोयले की कम खपत होती है। ईंटों की 95 प्रतिशत क्वालिटी सही आती है। इस तकनीक से उत्पादन थोड़ा कम होता है लेकिन कम उत्पादन की भरपाई पुरानी तकनीक से तैयार होने वाली ईंटों की 65 प्रतिशत क्वालिटी पूरा कर देती है। यानी क्वालिटी में इजाफा होने से नुक्सान नहीं होता। इसके अलावा खेतों में उड़कर जाने वाले साबूत कोयले व उनकी राख से किसानों की फसलें खराब नहीं होंगी। मेरे भट्ठे पर करीब 15 लाख रुपए ही लगे हैं। यह तकनीक कामयाब है। विरोध करने वालों के जवाब में उन्होंने कहा कि बारिश के दिनों में हर भट्टा मालिक का कम से कम 4 से 5 लाख रुपए का नुक्सान होता है। उसे वहन कर सकते हैं तो क्या पर्यावरण को साफ रखने के लिए पैसा खर्च नहीं कर सकते।


विरोध करने वाले अब सरकार से मांगने लगे समय
जिग-जैग तकनीक का विरोध करने वाले ग्रुप में से लुधियाना डिस्ट्रिक्ट ब्रिकलीन ऑनर एसोसिएशन के प्रधान हरमेश मोही ने कहा कि अब सरकार हमें तकनीक लगाने का समय दे तो काफी है। ध्यान रहे कि विरोध करने में यह सबसे आगे थे और इन्होंने तकनीक लगाने वालों पर आरोप भी लगाए थे कि बड़े भट्ठे वाले छोटे भट्ठे बंद करवाने के लिए ऐसी तकनीक लगा रहे हैं ताकि वे महंगे दामों में ईंटें बेच खूब मुनाफा कमा सकें। 

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