Edited By Punjab Kesari,Updated: 07 Jan, 2018 01:43 AM
नया साल क्या आया, ट्राईसिटी के मेयरों के सितारे ही बिगड़ गए। जी हां, चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली तीनों के मेयर इस वक्त संकट में हैं। कोई अपनों की बेवफाई से आहत है तो किसी की ‘रियासत’ का वजूद संकट में है और तीसरा धांधली के आरोपों से घिरा ...
चंडीगढ़(अजीत धनखड़): नया साल क्या आया, ट्राईसिटी के मेयरों के सितारे ही बिगड़ गए। जी हां, चंडीगढ़, पंचकूला और मोहाली तीनों के मेयर इस वक्त संकट में हैं। कोई अपनों की बेवफाई से आहत है तो किसी की ‘रियासत’ का वजूद संकट में है और तीसरा धांधली के आरोपों से घिरा है।
मेयर चंडीगढ़-जब अपने हो जाएं बेवफा तो दिल टूटे
नगर निगम चुनाव में कभी भारी बहुमत से शहर की सरकार बनाने वाली भाजपा बगावत से जूझ रही है। 9 जनवरी को होने वाले मेयर चुनाव के लिए जब प्रत्याशी चुनने की बात आई तो पार्टी में पड़ी दरारों ने इमारत ही हिला दी। एकजुट होकर सबके विकास का नारा देने वाली भाजपा बिखरती नजर आ रही है।
चंडीगढ़ भाजपा के प्रभारी प्रभात झा ने बुधवार को यू.टी. गैस्ट हाऊस में मेयर के नाम के लिए पार्षदों और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मीटिंग बुलाई जिसमें घंटों माथापच्ची करने के बाद उन्होंने पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के रूप में मेयर पद के लिए देवेश मौदगिल का नाम फाइनल कर दिया। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष संजय टंडन, सांसद किरण खेर खेमे के देवेश को मेयर के पद पर प्रत्याशी मानने को तैयार नहीं थे लेकिन प्रभात झा ने उनकी एक नहीं सुनी। बस फिर क्या था अपनों की बेवफाई से दुखी होकर आशा जसवाल ने भी बागी होकर निर्दलीय तौर पर अपना नामांकन दाखिल कर दिया। वह अभी भी चुनाव लडऩे पर अड़ी हुई हैं। उनका कहना है कि भगवान उन्हें बुला लें तो ही वह चुनावी मैदान से हटेंगी।
मेयर पंचकूला-वो शाख ही न रही जो थी आशियां के लिए
पंचकूला नगर निगम को भंग करने से बचाने के लिए निगम द्वारा जिले के जनसंख्या के आकड़े को जांचने के लिए सर्वे तक शुरू करवाया गया लेकिन यह उपाय भी काम नहीं आया। मुख्यमंत्री मनोहर लाल की अध्यक्षता में हुई मंत्री समूह की बैठक में पंचकूला नगर निगम से पिंजौर-कालका को बाहर करने पर सहमति बन गई। यानी अब न रहा सूत न जुलाहा और न रहेगी चौधर।
पंचकूला में नगर निगम की बागडोर कांग्रेस के हाथ है और मेयर उपिंद्र कौर आहलूवालिया हैं। यहां शुरू से ही कांग्रेस और भाजपा में टकराव होता आया है। मेयर, अधिकारियों और भाजपा के विधायक ज्ञानचंद गुप्ता में तनातनी चलती रही और पंचकूला का विकास थमा हुआ है जिसे रफ्तार देने के लिए हाईकोर्ट भी कई बार निर्देश दे चुका है। अब हालत ऐसे बने हुए हैं कि नगर निगम का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है। पंचकूला नगर निगम का रुतबा भी खोने वाला है। डेढ़ साल बाद दिसम्बर में हुई निगम की बैठक में खूब घमासान हुआ था। पहले जून में एक बैठक हुई थी जिसमें निगम अधिकारियों को ही शामिल नहीं किया गया था। विधायक ज्ञानचंद गुप्ता बोले कि घर पर मीटिंग करने से कुछ नहीं होता। इस पर मेयर ने कहा कि आप विधायक हैं इसलिए आपने ही अधिकारियों को मीटिंग में नहीं आने दिया।
मेयर मोहाली- बुरे काम का बुरा नतीजा क्यों भई...
ट्राईसिटी के तीसरे हिस्से मोहाली में भी कुछ-कुछ पंचकूला नगर निगम जैसी ही हालत है। यानी शहर और स्टेट में अलग-अलग सरकार। वहां शहर की सत्ता पर अकाली-भाजपा का राज था। पंजाब में सरकार पलटी और कांग्रेस काल आया। मेयर कुलवंत सिंह गिल सुखबीर बादल के बेहद करीबी माने जाते हैं। अभी कुलवंत को मेयर की कुर्सी मिले एक वर्ष भी नहीं गुजरा था कि कांग्रेस ने मोहाली के मेयर को तगड़ा झटका दे दिया। निगम में मशीनों की खरीद में हुई धांधली पर कैप्टन सरकार ने मेयर कुलवंत सिंह को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया है। पेड़ों की छंटाई करने वाली मशीन विदेश से 1.79 करोड़ रुपए में मंगवाई जानी थी।
प्रस्ताव पास कर दिया गया लेकिन विभाग के विजीलैंस सैल ने इसकी जांच की। इसकी रिपोर्ट में मिलीभगत से धांधली की बात सामने आई। गाज कमिश्नर राजेश धीमान सहित पांच अधिकारियों पर भी गिरी। इससे पहले निगम कमिश्नर रहे उमाशंकर ने जब शहर में रेहड़ी-फड़ी लगाने में वसूली का मुद्दा उठाया था तो मेयर और कमिश्नर में रिश्ते बेहद खराब हो गए थे। हालांकि इसका खमियाजा कमिश्नर को भुगतना पड़ा और उनका तबादला कर दिया गया। तभी से मेयर कुलवंत विवादों में हैं।