पगड़ी के लिए फ्रांस छोड़ने वाले सिख ने कहा-सिक्खी से समझौता नहीं

Edited By swetha,Updated: 29 May, 2018 02:53 PM

फ्रांस में सिखी के लिए 2 दशकों से कानूनी लड़ाई लड़ने वाले रणजीत सिंह वह अपने धर्म से किसी भी तरह का समझौता बर्दाशत नहीं करेंगे। वह सिक्खी परंपरा को कायम रखने के लिए अपना सबकुछ फ्रांस में ही छोड़कर अपने वतन चले आए। हालांकि धर्म के इस अगाध प्यार से...

जालंधरःफ्रांस में सिक्खी के लिए 2 दशकों से कानूनी लड़ाई लड़ने वाले रणजीत सिंह वह अपने धर्म से किसी भी तरह का समझौता बर्दाशत नहीं करेंगे। वह सिक्खी परंपरा को कायम रखने के लिए अपना सबकुछ फ्रांस में ही छोड़कर अपने वतन चले आए। हालांकि धर्म के इस अगाध प्यार से यूरोपीय देशों के शासन को कोई फर्क नहीं पड़ता।


पिछले दिनों दिल्ली में फ्रांस से आए जिस शख्स का स्वागत किया गया, उन्होंने फ्रांस की धरती को त्याग कर अपने वतन की तरफ रुख किया। उन्होंने यह कदम फ्रांस सरकार द्वारा पगड़ी को लेकर तुगलकी फरमान के कारण उठाया। पूरा मामला राष्ट्रीय पहचान पत्र को लेकर है। राष्ट्रीय पहचान पत्र के लिए फ्रांस में  कोई शख्स पगड़ी पहनक फोटो नहीं खिंचवा सकता।  बाबा रणजीत सिंह को फ्रांस सरकार का यह नियम उचित नहीं लगा।

इसके बाद अंबाला के रहने वाले बाबा रणजीत सिंह ने फ्रांसीसी सरकार के इस आदेश को लेकर लंबी लड़ाई लड़ी। आखिरकार बाबा रणजीत सिंह के हक में यू.एन. का फैसला आया। उनकी राह में फ्रांस सरकार ने फिर से रोड़े डाल दिए। हक में फैसला आने के बाद भी यूएन के फैसले को पलटने के लिए फ्रांस सरकार ने वीटो पावर का इस्तेमाल किया। उसने यू.एन. के फैसले को मानने से इंकार कर दिया।  बाबा रणजीत सिंह के लिए सिक्खी प्यारी थी। आखिरकार उन्होंने हमेशा-हमेशा के लिए पकड़ी के लिए फ्रांस छोड़ने का फैसला किया और चले आए अपने वतन ।

उन्होंने बताया  कि सेना की तरफ से 1974 में एक आदेश आया था कि सिख कर्मचारियों को अपनी दाढ़ी बांधनी होगी। पर उन्होंने यह आदेश मानने से इंकार कर दिया और सेना की नौकरी छोड़ दी। अब उन्होंने पगड़ी को लेकर फ्रांस की धरती को छोड़ने का फैसला कर उन नौजवानों के लिए एक मिसाल पेश की है, जो सिक्खी त्यागकर विदेश जाने का फैसला कर लेते हैं।इस समय अपने बेटे मनप्रीत सिंह के साथ अंबाला में रह रहे हैं। उन्होंने आधार कार्ड तथा अन्य दस्तावेजों के लिए अप्लाई कर दिया है। उन्होंने कहा कि उन्हें सिक्खी और सेवा की प्रेरणा  नाना-नानी से मिली है। वह गुरुधामों के दर्शन कर पंजाब में आखिरी सांस लेना चाहते हैं। उन्हें राजनीति में कोई रूचि नहीं है। वह अपनी बाकी जिंदगी असहाय लोगों की सेवा में बताना चाहते हैं। 

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